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NavinKadam > पंखाजूर > पखांजूर में आयोजित हुआ विश्व आदिवासी दिवस का जिला स्तरीय कार्यक्रम
पंखाजूर

पखांजूर में आयोजित हुआ विश्व आदिवासी दिवस का जिला स्तरीय कार्यक्रम

lochan Gupta
Last updated: August 10, 2025 12:13 am
By lochan Gupta August 10, 2025
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6 Min Read

पखांजूर। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर सर्व आदिवासी समाज की ओर से जिला स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन पखांजुर में किया गया। जिसमें पूरे जिले से पखांजूर क्षेत्र में लगभग 10 से 15 हजार आदिवासी समुदाय के लोगों की भीड़ इक_ा हुई। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर आदिवासी समुदाय के लोगों के द्वारा लंबी रैली डीजे बाजे के साथ नगर का भ्रमण किया, उसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम पुराना बाजार में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। विश्व के सबसे पुराने लोग हैं आदिवासी, जिन्हें एथनिक समाज कहा जाता है। एथनिक समाज वैसे लोगों के समूह को कहा जाता है कि जिनकी अपनी पहचान, संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज और परंपराएं होती हैं, जो उन्हें मुख्यधारा के समाज से अलग बनाती हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1994 में इस एथनिक समाज को अपनी विशिष्ट पहचान के साथ रहने देने और उसकी सुरक्षा के लिए विश्व आदिवासी दिवस (ङ्खशह्म्द्यस्र’ह्य ढ्ढठ्ठस्रद्बद्दद्गठ्ठशह्वह्य क्कद्गशश्चद्यद्गह्य स्रड्ड4)मनाने की शुरुआत की थी। आज भी जब विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन होता है, तो इस बात पर बहस जरूर होती है कि क्या आदिवासियों को उनका हक मिल रहा है या उन्हें अपनी विशिष्ट पहचान से दूर किया जा रहा है?
आदिवासियों का सबसे बड़ा मुद्दा है जल-जंगल-जमीन
आदिवासी समाज सामूहिकता में जीता है और इसी वजह से उनके सारे रीति-रिवाज समाज आधारित हैं, चाहे जन्म हो, मृत्यु् हो या फिर कोई पर्व-त्योहार। आदिवासी समाज के लोगों की अपनी भाषा, संस्कृति है। वे अपने पारंपरिक पहनावे को पसंद करते हैं और उनका खान-पान भी अलग है। उनकी धार्मिक मान्यताएं भी अलग है। सबसे बड़ी बात यह है कि आदिवासी अपने इन विशिष्ट पहचान के साथ जीना पसंद करता है और वह खुश है। समस्या यह है कि आदिवासियों को उनकी पहचान के साथ जीने से रोका जा रहा है, उन्हें अपमानित करने की कोशिश हो रही है और इसी वजह से आज का आदिवासी मुखर है और अपने अधिकारों के लिए मांग कर रहा है। हल्बा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंतुराम पवार का कहना है कि आदिवासियों का एक ही मुद्दा है जल-जंगल और जमीन सीधे-सीधे कहें तो धरती। इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द उसके जीवन की सारी बातें घूमती हैं, चाहे हम बात संस्कृति की करें या फिर समुदाय की बात करें। पवार ने आगे बताया कि पेसा कानून के तहत आदिवासियों को अपने जल-जंगल-जमीन पर अधिकार मिल गया है। यह कानून आदिवासियों के पारंपरिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को सुरक्षित करता है, लेकिन यह कानून आज तक लागू नहीं हो पाया है। इसकी वजह यह है कि इस कानून को लागू करने के लिए जो नियमावली राज्यों को बनाना चाहिए वह अबतक बनकर तैयार नहीं हुआ है। पेसा कानून केंद्र सरकार ने पास किया है, लेकिन यह लागू होगा पंचायतों में जो राज्य के अधीन है, इसलिए पेसा कानून को पंचायतों में लागू करवाने के लिए जरूरी नियम की जरूरत है, जैसे कि ग्राम सभा की बैठक कब और कैसे होगी? खनिज संपदा पर ग्राम सभा को किस तरह का अधिकार मिलेगा इत्यादि। स्थिति यह है कि आदिवासी अपनी पहचान के साथ जिएं इसके लिए सरकार ने नियम तो बना दिए हैं, लेकिन वे लागू कैसे होंगे इस पर कोई काम नहीं हुआ है, जिसकी वजह से आदिवासियों की जमीन पर गैरकानूनी कब्जा हो रहा है। आदिवासियों के पास अगर जमीन नहीं होगी, तो उसकी पहचान भी खत्म हो जाएगी।
संस्कृति के नाम पर महिला अधिकारों की उपेक्षा ना हो
सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष कन्हैया उसेंडी कहते हैं कि आदिवासियों की संस्कृति को बचाना आदिवासी दिवस का उद्देश्य नहीं है, बल्कि आदिवासियों को उनकी संस्कृति और जीवनशैली के साथ जीने देने का अधिकार मिले इसके लिए आदिवासी दिवस मनाया जाता है। पहले यह माना जाता था कि आदिवासी जिस तरह से जीते हैं और जिस तरह का उनका खानपान या पहनावा है, वो खराब है, सोच की इस स्थिति को बदलने और आदिवासियों को अपने जीवन में अपने कंफर्ट के अनुसार जीने देने के लिए आदिवासी दिवस की शुरुआत हुई थी। कन्हैया उसेंडी ने आगे बताया कि आजकल आदिवासी लड़किया पढ़ाई लिखाई तो कर रही है और बड़े से बड़े पद पर पहुंच रही है, लेकिन जब विवाह की बात आती है तो उनके बराबर में आदिवासी लडक़ों में योग्यता की कमी हो रही है। आदिवासी लडक़ों में पढ़ाई की कमी और योग्यता के अभाव होने के चलते आदिवासी समाज की लड़कियां अन्य समाज में जाकर के विवाह कर रही है जो की पूरी तरीके से समाज को कलंकित करने का काम कर रही है। सभ्यता संस्कृति बचाने के नाम पर गलत चीजों को बचाना सही नहीं होगा। कार्यक्रम के अंत में सर्व आदिवासी समाज की ओर से स्ष्ठरू पखांजूर को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम अपने समस्याओं के निवारण के लिए ज्ञापन सौंपा।

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