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Reading: संगीत गुरू वेदमाणी सिंह ठाकुर का निधन
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NavinKadam > रायगढ़ > संगीत गुरू वेदमाणी सिंह ठाकुर का निधन
रायगढ़

संगीत गुरू वेदमाणी सिंह ठाकुर का निधन

गुरुजी से सांस्कृतिक राजधानी का तमगा है कायम, कला एवं सांस्कृतिक नगरी में शोक की लहर

lochan Gupta
Last updated: June 10, 2025 12:28 am
By lochan Gupta June 10, 2025
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10 Min Read

रायगढ़। वेदमणि सिंह ठाकुर ‘बेदम’रविवार का दिन, दरोगा पारा, सुबह 10 बजे से ही तबले और हारमोनियम की आवाज गली में दूर तक सुनाई दे रही थी। लोग भी इन्हें बड़े चाव से सुन रहे थे। जिस घर से ये संगीत सुनाई दे रहा था वो घर वेदमणि सिंह ठाकुर ‘बेदम’ का था। 84 साल के ये संगीत गुरू अपने शिष्यों के साथ तबले के संगत पर थे। अपने एक नए शिष्य को तबले की थाप धा..धा..धिन धा…तिकतिक धा.. को बता रहे थे। इसके बाद जुगबंदी का जो सिलसिला चला वो रुकने कहां वाला था। इतनी उम्र में उनकी सक्रियता देखते ही बनती है।
वेदमणि गुरुजी वो शख्स है जिनकी वजह से रायगढ़ को आज भी सूबे की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है वरना यह तमगा तो राजा चक्रधर सिंह के निधन के समय ही छीन जाता। वेदमणि गुरुजी अपने साथ बेदम का तख्लुल्स जोड़ते हैं। वो अपनी रचनाओं (गीत, कविता और शायरी) को डायरी में लिखते हैं। डायरियों के नाम ्र र्से ं तक हैं और हर एक डायरी में करीब 300 रचनाएं हैं। देश का शायद ही कोई ऐसा मंच होगा जहां वेदमणि गुरुजी ने कार्यक्रम नहीं किया होगा। अपनी संगीत यात्रा पर वो कहते हैं कि संगीत उनके खून में बसा हुआ है। उनके बाबा धन सिंह ठाकुर लोकसंगीत से जुड़े थे, पिता ठाकुर जगदीश सिंह ‘दीन’ राजा चक्रधर सिंह के दरबार में कलाकार थे। इन्हीं के सानिध्य में उनका बचपन गुजरा। पहली बार बड़ी परफॉर्मेंस को याद करते हुए गुरुजी कहते हैं कि साल 1947 का समय था देश आजाद हुआ और उन्होंने राजा ललित सिंह के दरबार में तबला बजाया था। उसके बाद परफॉर्मेंस देने का जो सिलसिला शुरू हुआ फिर कभी बंद नहीं हुआ। इसी बीच उन्होंने तबला में संगीत प्रवीण (एमए) 1963 में किया जिसमें पूरे देश में दूसरा स्थान पाया। फिर इसके बाद 1965 में सितार में और 1966 में गायन में प्रयाग से प्रभाकर (बैचलर्स ऑफ म्यूजिक) की डिग्री हासिल की।

1962 में नौशाद का ऑफर ठुकराया

रायगढ़ संगीत की धुरी बन चुके वेदमणि सिंह ठाकुर के बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि उन्हें बॉलीवुड के मशहूर संगीतज्ञ नौशाद जानते थे। जानते ही नहीं बल्कि उन्हें अपने साथ काम करने के लिए बॉम्बे आने का न्यौता भी दिया था। इस वाकये पर गुरूजी कहते हैं कि उन दिनों काका हाथरसी की दो मैगजीन छपा करतीं थी संगीत मासिक और फिल्म संगीत मासिक। इसमें मेरी रचनाएं छपतीं थी। नौशाद ने इन्हीं रचनाओं से प्रभावित होकर मुझ से संपर्क किया और बॉम्बे आने को कहा। लेकिन मेरे पिताजी ने कहा कि शास्त्रीय संगीत सबकुछ है और तुम एक शिक्षक हो। शिक्षक के लिए शिक्षा ही सर्वोपरि है। पिताजी के ये सूत्रवाक्य आज भी कंठस्थ हैं। मैं शिक्षक हूं। मैने तबले से कभी पैसा नहीं कमाया।

विदेशों में छात्र, वहीं शुरू किया संगीत स्कूल

वेदमणि ठाकुर के कई शिष्य विदेश में बसे हैं। जिन्होंने रायगढ़ में ही उन्हीं से शिक्षा ली है और आज वहां अपना संगीत स्कूल चला रहे हैं। कैलिफोर्निया में एम रामाराव, न्यू यार्क में कमला एम त्रिपाठी, लंदन में वंदना जोशी, सिडनी में सत्यकेदानंद जैसे उनके शार्गिद संगीत स्कूल चला रहे हैं। यहां देश में गुरुजी के लक्ष्मण सिंह संगीत महाविद्यालय के 4 ब्रांच हैं। दो रायगढ़ में एक बिलासपुर और एक भोपाल में है। इस बार 210 लोगों ने परीभा फॉर्म भरा है। संगीत महाविद्यालय के नाम पर वे कहते हैं ठाकुर लक्ष्मण सिंह उनके मामा थे और राजा चक्रधर सिंह के प्रथम गुरु थे। वो संगीत की बड़ी हस्ती थे।

अपने पिता के साथ वेदमणि सिंह ठाकुर

अभी का संगीत बर्गर-पिज्जा

वर्तमान संगीत की स्थिति पर गुरुजी कहते हैं कि शास्त्रीय संगीत दाल-भात-रोटी की तरह है जो ऊर्जा और पोषण देता है। वर्तमान संगीत बर्गर पिज्जा की तरह है जो तुरंत भूख तो मिटाता है लेकिन बीमार कर जाता है। वेदमणि सिंह कहते हैं कि आजकल लोग संगीत मतलब फिल्मी गीत को ही जानते हैं। जबकि वो तो सुगम संगीत की एक विधा है। सुगम संगीत में कई विधाएं हैं जैसे भजन, लोकगीत, फिल्मी, कवि रचना इत्यादि। ऐसे में केवल फिल्मी गीत है सब मान लेना नई पीढ़ी की सबसे बड़ी अज्ञानता है। शास्त्रीय गीत/संगीत अथाह सागर है, इसमें जो जितना डूबता है उतना ही तरता है। शास्त्रीय संगीत की छाप पुराने बॉलीवुड में देखने को मिलती है इसिलए आज भी वो सारे गाने सुने जाते हैं और उनकी मांग अभी तक है। वरना अभी के गाने तो 1 महीने बाद कोई पूछता भी नहीं है। इसका ताजा उदाहरण यह है कि कई पुराने गाने को तोड़ मरोड़ कर फिर से परोसा जा रहा है।
संगीत की दशा पर गुरुजी कहते हैं कि सरकार को चाहिए की संगीत को शुरू से ही स्कूलों में अनिवार्य किया जाए। संगीत स्कूलों में रस्मोअदायगी न बने जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी में बस ढर्रे के गानों पर नाच दिया। इसकी बाकायदा क्लास होनी चाहिए। क्योंकि शास्त्रीय संगीत की रीढ़ कहा जाने वाला लोक संगीत भी खतरे में। नए गायक रैप और कुछ गीत-संगीत इसमें डाल रहे हैं। जैसे माता के भजन में बोरे-बासी संग मा पाताल चटनी… इस गाने में भगवान का अपमान है। का साबुन चिपरथस गोरी… सौंदर्य को बताने का सबसे घटिया तरीका। ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए बच्चों को स्कूल से ही संगीत की शिक्षा दी जाए।
तबले की संगत पर गुरुजी

एप्लाईड कॉमर्स के प्रसिद्ध शिक्षक भी

वेदमणि सिंह ठाकुर 1953 से 1995 तक सरकारी शिक्षक भी रहे हैं। हिंदी और अंग्रेजी की कक्षाओं के अलावा वे एप्लाईड कॉमर्स के बेहतरीन शिक्षक रहे हैं। डॉ. रुपेन पटेल, डॉ. प्रकाश मिश्रा, डॉ. जीएस अग्रवाल, पूर्व विधायक रोशन लाल अग्रवाल, पूर्व विधायक विजय अग्रवाल जैसे कई नामी लोग उनके शिष्य रहे हैं। एक ओर स्कूल और दूसरी ओर अपने दोस्त बिरजू महाराज के साथ देश भर के मंचों में तबले की संगत पर गुरुजी कहते हैं कि स्कूल से जब भी छुट्टी होती तो उसके अनुसार दौरे तय होते थे। स्कूल से रिटायर्ड होने के बाद मैंने ज्यादा स्टेज परफॉर्म किया। अपनी संगीत विरासत को आगे ले जाने पर गुरुजी ने बताया की चौथी पीढ़ी में उनकी बेटियां गीता पटेल और मीना ठाकुर संगीत से जुड़ीं हैं। पांचवीं पीढ़ी की उनकी नातिन प्रियंका और नाती शांतनु उनके विरासत को आगे लेकर जाएंगे।

सीएम साय ने कलागुरु वेदमणि के निधन पर व्यक्त किया गहरा शोक

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने चक्रधर सम्मान से सम्मानित, संगीत साधना के महान पुरोधा, कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर ‘बेदम’ के निधन पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री साय ने अपने सोशल मीडिया एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा, कलागुरु ‘बेदम’ जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन संगीत की साधना एवं प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया। रायगढ़ को ‘सांस्कृतिक राजधानी’ के रूप में गौरवान्वित करने में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा। उनके व्यक्तित्व, साधना और कला ने न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश के सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध किया। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि देशभर के अनेक प्रतिष्ठित मंच उनकी प्रतिभा से आलोकित हुए हैं। उनके शिष्यों और संगीत साधकों के लिए उनका जाना अपूरणीय क्षति है। मुख्यमंत्री ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने तथा शोकाकुल परिवार और शिष्यों को इस दु:ख की घड़ी में संबल देने की प्रार्थना की।

संगीत कला के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति-ओपी चौधरी

वेदमणि सिंह ठाकुर के निधन को कला क्षेत्र की अपूरणीय क्षति निरूपित करते हुए विधायक रायगढ़ ओपी चौधरी ने कहा 97 वर्षीय संगीत साधक, चक्रधर सम्मान से अलंकृत कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर ‘बेदम’ जी के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है। अपनी कला साधना से रायगढ़ को सांस्कृतिक राजधानी का गौरव दिलाने वाले वेदमणि गुरुजी का निधन कला और संस्कृति जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें एवं परिजनों को दुख सहने की शक्ति प्रदान करे।

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