रायगढ़। अविभाजित रायगढ़ जिले की पांचो विधानसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मी भले ही तेज हो गई है। लेकिन इस क्षेत्र में बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण को लेकर कांग्रेस-भाजपा दोनों ही राजनीतिक दलों में किसी तरह की गंभीरता नजर नहीं आ रही है। जिससे आने वाले वक्त में प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में किसी सार्थक उम्मीद की गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। जिससे अविभाजित रायगढ़ जिले के रायगढ़, सारंगढ़, खरसिया, लैलूंगा और धरमजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण की चिंता सता रही है। राजनीति के जानकारों की माने तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक पार्टियों का चुनावी घोषणा जारी हो चुका है। लेकिन बढ़ते प्रदूषण को लेकर किसी भी तरह के पहल करने की बात सामने नहीं है। जिससे औद्योगिक क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्र के लिए बेहद चिंताजनक कहीं जा सकती है। इस विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा-कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणा पत्र जारी कर दिए हैं। जिसमें अलग-अलग बिंदुओं में दोनों ही राजनीतिक दलों ने अपना फोकस किया है। लेकिन औद्योगिक विकास की आड़ में पर्यावरण संरक्षण की बिना चिंता किए उत्सर्जित होने वाले औद्योगिक धुएं और फ्लाईएस के समुचित निष्पादन को लेकर कोई सार्थक पहल की बात सामने नहीं आई है। जो अविभाजित रायगढ़ जिले के रायगढ़, सारंगढ़, लैलूंगा, खरसिया, धमरजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए बेहद चिंता जनक है। बताया जाता है कि रायगढ़ जिले में छोटे बड़े ढाई सौ औद्योगिक इकाइयों के अलावा सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र में छोटे बड़े सौ से अधिक क्रशर उद्योग संचालित है। परंतु दोनों ही जिलों से संबंधित विधानसभा क्षेत्र के दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने स्थानीय तौर पर प्रदूषण की इस बड़ी समस्या को लेकर अब तक किसी तरह की घोषणा नहीं की है। बताया जाता है कि औद्योगिक इकाइयों से बड़े पैमाने पर फ्लाईएस का उत्सर्जन होता है जिसे औद्योगिक इकाइयों के द्वारा जंगल से लेकर सडक़ किनारे खाली जगह के अलावा खेतों में डालकर फ्लाईएस का निष्पादन करते देखे जा सकते हैं। सूत्रों की माने तो रायगढ़ जिले में प्रतिवर्ष करीब डेढ़ लाख मैट्रिक टन फ्लाईएस का उत्सर्जन उद्योगों के द्वारा किया जा रहा है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर क्रेशर उद्योगों से उड़ते डस्ट और जर्जर सडक़ों की उड़ती धूल लोगों के सेहत पर प्रतिकूल असर कर रहे हैं। सबसे ज्यादा नुकसान फ्लाईएस से खेतीहर जमीन को हो रहा है। इससे जहां उपजाऊ जमीन बंजर होने के कगार पर हैं, वहीं बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लेकिन इस समस्या के निदान के लिए राजनीतिक पार्टियां किसी भी तरह की घोषणा करने से कतराते नजर आ रहे हैं। बताया जाता है की अविभाजित जिले की पांचों विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी भी इस मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं दिखते हैं। जिससे राजनीतिक दलों के प्रत्याशी इस बड़ी समस्या से आंख मूंद लेने की मुद्रा में है। जिसका दुष्परिणाम इन सभी क्षेत्रों की आम जनता को भुगतना पड़ सकता है।
किसान की चिंता, खेती किसानी की नहीं
घोषणा पत्र को लेकर दोनों ही राजनीतिक दल चुनावी लाभ मिलने की उम्मीद पाल रखे हैं। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों ने धान खरीदी को ऐसा मुद्दा बना दिया है कि आम किसान समर्थन मूल्य को लेकर पेशोपेश में है। दूसरी तरफ औद्योगिक प्रदूषण को लेकर प्रभावित क्षेत्र के किसान और आम जनता चिंतित हैं। इस मुद्दे को लेकर आखिर राजनीतिक दल गंभीर क्यों नहीं है? प्रदूषण की बढ़ती समस्या को लेकर कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दल के प्रत्याशियों की ओर से कोई सार्थक पहल की उम्मीद नहीं रखने का असर इस विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। इन विधानसभा क्षेत्रों के किसान औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में चौपट होती खेती किसानी को लेकर बेहद चिंतित हैं। प्रदूषण पर अंकुश लगाने के पहल नहीं होने से लोगों में यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि किसानों की चिंता करते राजनीतिक दल दिख तो रहे हैं। लेकिन खेती किसानी और बढ़ते प्रदूषण की बातें हवा हवाई नजर आ रही है।