कोसीर। छग में भोजली का त्यौहार रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है। छग में सावन महीने की नवमी तिथि पर छोटी-छोटी टोकरीयों में थालियों में मिट्टी डालकर उसमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। यह दाने कुछ धान, गेहूं, जौ, कोदो, अरहर मूंग, उड़द आदि के होते हैं,इसे भोजली कहते है। प्राचीनकाल से देवी- देवताओं की पूजा अर्चना के साथ प्रकृति की पूजा किसी न किसी रूप में की जाती है।ग्रामीण अंचल में भोजली बोने की परंपरा का निर्वहन पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाता है। छग में भोजली पर्व का विशेष महत्व है।? इस दिन गांव में लोग अपने कच्चे मित्रता को भोजली भेंटकर पक्के करते हैं और सभी वर्ग को भेंटकर आदर करते हैं। भोजली में लोकगीत हैं जो श्रावण मास शुक्ल से रक्षाबंधन के दूसरे दिन तक गांव गांव में गूंजती है और भादो कृष्ण पक्ष में भोजली विसर्जन किया जाता है।
कोसीर में आज भी भोजली मनाने की परंपरा है यहां रक्षा बंधन के दूसरे दिन बाजे गाजे के साथ भोजली का विसर्जन किया जाता है।शांम 4:30 बजे भोजली को लेकर ग्रामीण अपने अपने घर से समूह के रूप में निकले और गांव के बड़े तालाब में पूरे विधि विधान पूजा अर्चना कर विसर्जन किये।एक दूसरे को भेंट किया गया वही कोसीर के ऐतिहासिक देवी मंदिर माँ कौशलेश्वरी देवी पर अर्पण कर अच्छी फसल के लिए मन्नत मांगे गांव की खुशहाली के लिए प्रार्थना किये। ग्राम्य देवी के मंदिर परिसर में गांव की माता बहनें उपस्थित होकर उत्साह से भोजली पर्व को मनाए देवी की पूजा अर्चना भी किए। भोजली विसर्जन कार्यक्रम में गांव के सरपंच श्रीमती सुमन राव अपने परिवार के साथ पहुंचे हुए थे वहीं उपसरपंच श्रीमती लता बनज, जपंस श्रीमती हीरा जाटवर, पूर्व विधायक कु. कामदा जोल्हे, राजेंद्र राव, अधिवक्ता पोलेश्वर बनज, भैरव नाथ जाटवर, श्याम कुमार पटेल, अशोक आदित्य गांव के पंच गण मान्य लोग उपस्थित रहे वही इस वर्ष गांव में महिलाएं सुआ नृत्य किए जो गांव में पहली बार नृत्य किया गया, गांव में पूरे दिन उत्साह रहा।
भोजली पर्व मना ग्राम्य देवी कौशलेश्वरी देवी पर भोजली अर्पण कर मन्नत मांगे



