सारंगढ़। विजयादशमी का पर्व सिर्फ रावण दहन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। छग का सारंगढ़ इलाका इस पर्व को अपने विशेष अंदाज़ में सदियों से मनाता आ रहा है। यहां दशहरा का नाम आते ही लोगों की जुबान पर सबसे पहले गढ़ विच्छेदन की परंपरा का जिक्र होता है। रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा इस बार भी पूरे वैभव और श्रद्धा के साथ निभाई गई। खेलभाठा मैदान में जुटी हजारों की भीड़ शहर का खेलभाठा मैदान शांम को जनसैलाब में बदल गया। मैदान के चारों ओर खड़े लोगों की भीड़ से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पूरा सारंगढ़ इस नजारे का गवाह बनने पहुंच गया हो। अनुमान लगाया गया कि करीब 20 से 30 हजार लोग परंपरा को देखने पहुंचे। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में, बच्चे उत्साह से लबालब और बुजुर्ग भावुकता के साथ इस अनोखे आयोजन में शामिल हुए।
मैदान में मिट्टी से तैयार किया गया गढ़ बुराई, असत्य और अन्याय का प्रतीक माना जाता है। इस पर चढऩा आसान नहीं होता। प्रतिभागियों को बार-बार गिरना, फिसलना और चोट लगने जैसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ा। भीड़ हर प्रयास पर तालियों की गडग़ड़ाहट व जय-जयकार से उत्साह बढ़ाती रही। लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार अजय नामक युवक ने गढ़ फतह किया। उसके गढ़ फतह करते ही पूरा मैदान गूंज उठा। लोगों ने जय श्रीराम और जय सारंगढ़ के नारे लगाए। इसके बाद परंपरा अनुसार विजेता अजय ने ही रावण दहन कर विजयदशमी का संदेश दिया। गढ़ जीतने वाले अजय को सारंगढ़ राजपरिवार की ओर से विशेष सम्मान दिया गया। उन्हें धोती, राशि और शील्ड भेंट की गई। यह सम्मान सारंगढ़ की वर्तमान राजा पुष्पा देवी सिंह व डॉ. मेनका देवी सिंह ने प्रदान किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि – सभी देशवासी को दशहरा की शुभकामनाएं व मातेश्वरी सम्लेश्वरी सब पर कृपा बनाए रखे और गढ़ विच्छेदन सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि यह हमें सिखाता है कि- चाहे संघर्ष कितना भी कठिन क्यों न हो, अंतत: जीत सदैव सत्य और धर्म की ही होती है।
पुलिस प्रशासन की व्यवस्था चाक-चौबंद रही। भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस विभाग ने सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की थी। मैदान के चारों ओर पुलिस जवानों की तैनाती रही। यातायात व्यवस्था को भी दुरुस्त किया गया, जिससे भीड़ के बावजूद कहीं अव्यवस्था की स्थिति नहीं बनी। मंच पर विशेष रूप से जिला कलेक्टर डॉ. संजय कन्नौज, डॉ परिवेश मिश्रा और सारंगढ़ विधायक उत्तरी जांगड़े उपस्थित रहें। उन्होंने आयोजन की परंपरागत गरिमा और स्थानीय लोगों के उत्साह की सराहना की। गढ़ विच्छेदन की परंपरा का इतिहास सारंगढ़ रियासत काल से जुड़ा है। बुजुर्ग बताते हैं कि राजाओं के दौर में दशहरे को सिर्फ रावण दहन तक सीमित नहीं रखा जाता था। उस समय मिट्टी का गढ़ तैयार किया जाता था और उसे जीतना ही असली विजय का प्रतीक माना जाता था। आज जब पूरे देश में दशहरा रावण दहन के रूप में मनाया जाता है, तब सारंगढ़ का गढ़ विच्छेदन इस पर्व को प्रदेश में और भी खास बनाता है। यही वजह है कि प्रदेशभर से लोग यहां पहुंचते हैं और इस परंपरा के साक्षी बनते हैं।
रियासत कालीन गढ़ का विच्छेदन अजय ने किया, धूं धूं कर जलता रहा 35 फीट का दशानन
