सारंगढ़। छग का शांत और श्रद्धा भाव से ओतप्रोत नगर सारंगढ़ एक बार फिर धर्म की ध्वजा तैयार कर 27 जून को संध्या के समय जगत के नाथ जय जगन्नाथ स्वामी की ऐतिहासिक रथयात्रा निकली यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि नगर की आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन भी है। सैकड़ो वर्ष पूर्व राजाधिराज छत्रपति महाराज राजा जवाहर सिंह के द्वारा नगर में रथ निकालें। इसके साथ ही साथ स्वतंत्रता पूर्व बड़े मठ महंत कृष्णदास के द्वारा भी रथ निकाली गई। यह जहां एक तरफ लोगों में आस्था, परंपरा,भक्ति, प्रेम और संस्कृति के साथ साथ मनोरंजन विहीन नगर में वैकल्पिक मनोरंजन का साधन भी बना। रथ यात्रा में शहर मेला की तरह दिखाई देता था। रथ की कारीगरी, सजावट और कलात्मकता श्रद्धा की ऊंचाइयों को छुती हुई दिखाई देती है। गिरि विलास राजघराने के द्वारा तैयार की गई रथ सबसे पहले निकली, जिसमें राजा साहेब, पूर्व सांसद पुष्पा देवी सिंह, डॉक्टर परिवेश मिश्रा, नंदकिशोर गोयल के साथ ही साथ गणमान्य प्रतिष्ठित नागरिकों की उपस्थिति रही। इसके पीछे गोपाल जी मंदिर बड़े मठ का रथ, उसके पीछे गंगाराम केसरवानी का रथ के पीछे मुरली केसरवानी का रथ तदुपरांत गोपाल जी मंदिर छोटे मठ महंत बंशीधर दास के द्वारा रथ निकाली गई। जो नगर के मुख्य मार्गो से होते हुए नंदा चौक, जय स्तंभ चौक, सिनेमा हॉल चौक होते हुए जेलपारा पहुंची, जहां रथारुढ़ प्रभु जगन्नाथ स्वामी, सुभद्रा मां और बलराम जी की विधि विधान के साथ पूजा की गई। महंत बंशीधर मिश्रा ने बताया कि – देव स्नान पूर्णिमा के पश्चात भगवान स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए रथारुढ़ हुए नगर के सभी मार्गों से घूमते हुए श्रद्धालु भक्तों को दर्शन दिए। पूरा नगर जय जगन्नाथ के जयकारों से गूंज उठा। यह रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी की परंपरा से प्रेरित है, भक्ति का यह उत्सव, रथों की झांकियां, करमा नृत्य रोशनी से सजा मार्ग जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तों ने रथ को खींचें। रथ में बैठे हुए विप्र के द्वारा सभी को प्रसाद वितरण किया जा रहा था। साथ ही साथ छोटे-छोटे बाल गोपाल को रथारुढ़ जगन्नाथ स्वामी का धोक खिला रहे थे।
भक्ति और संस्कृति का महा संगम ऐतिहासिक रथ यात्रा

By
lochan Gupta

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