बरमकेला। व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा का मूल उद्देश्य हैं। आज की शिक्षा व्यवस्था में मानसिक विकास को सबसे अधिक महत्व दिया गया हैं। शारीरिक विकास के लिए विभिन्न खेलकूद, योग, व्यायाम जैसी गतिविधियों का समावेश तो है लेकिन नैतिक शिक्षा की अभाव देखा जा रहा है। नैतिक मूल्यों एवं सुसंस्कारों का सारा उत्तरदायित्व परिवार एवं समाज पर है। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति के चलते परिवारों से भी नैतिक मूल्य गायब होते जा रहे हैं। यह संस्कृति व्यक्ति को उपभोग करना सिखाती है- त्याग करना नहीं। यही कारण है कि वर्तमान पीढी स्वार्थी एवं आत्मकेंद्रीत होती जा रही है। वर्तमान समाज में नैतिक मूल्यों के संवर्धन और परिवर्तन के लिए विद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है जहाँ बच्चों को नैतिक शिक्षा से जोडक़र एक स्वच्छ समाज का निर्माण किया जा सके।यह कहना है आज समर केम्प में शिक्षक बनकर नैतिकता का पाठ सिखाने वाले बच्चों का। स्वस्थ समाज तभी बन सकता है जब इसकी शुरुआत परिवार से किया जाय। माता पिता और बड़ों का आदर तथा अनुजों के प्रति स्नेहाशीष भाव ही नैतिक शिक्षा की प्रारंभिक चरण है जिससे आने वाली पीढ़ी को अच्छे समाज के निर्माण के लिए प्रेरित किया जा सके। समर केम्प में बच्चों ने अपने गाँव के इतिहास से सभी को परिचित कराया।बरमकेला विकासखण्ड में कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल जैसे पोरथ, पुजेरीपाली जिनकी गौरवगाथा आज भी प्रासंगिक हैं।गाँव में कई विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं का निवास होते हैं। गाँव का नाम कैसे पड़ा? गांव विभिन्न ऐतिहासिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए बच्चों ने सभी को अचम्भित कर समर केम्प की सार्थकता को पूर्ण करने में अपनी महति भूमिका निभाई।