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NavinKadam > रायगढ़ > आश्रम में विवाह पद्धति से दहेज प्रथा व खर्चीली शादी पर लगेगी रोक-बाबा प्रियदर्शी
रायगढ़

आश्रम में विवाह पद्धति से दहेज प्रथा व खर्चीली शादी पर लगेगी रोक-बाबा प्रियदर्शी

आश्रम के सम्पन्न विवाह के दौरान पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम जी का आशीर्वचन, छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय विवाह समारोह में हुए शामिल

lochan Gupta
Last updated: December 7, 2025 11:32 pm
By lochan Gupta December 7, 2025
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6 Min Read

रायगढ़। आश्रम में विवाह से दहेज जैसी कुप्रथा एवं खर्चीली शादी पर रोक लगेगी। खर्चीला विवाह आज समाज के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है बेटी का खर्चीला विवाह मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। उक्त बाते पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम जी ने बिंदेश्वर साहू के बेटे डॉक्टर कुमार विक्रम साहू राजेश साहू की सुपुत्री डॉक्टर हेम पुष्पा साहू के विवाह संपन्न होने पर आशीर्वचन के दौरान कही। विदित हो कि इस विवाह आयोजन में सूबे के मुखिया विष्णु देव साय वर के पिता बिंदेश्वर साहू के न्यौते पर अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा रायगढ़ में आयोजित विवाह में शामिल हुए।
विवाह पश्चात वर बधू को गृहस्थ जीवन में प्रवेश पर शुभकामनाएं देते हुए पूज्य बाबा बाबा जी ने बताया गृहस्थ जीवन भी महान होता है। केवल संत बनकर ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि गृहस्थ जीवन के मार्ग में चलने वाले शील शालीनता का पालन करते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते है एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए बड़ों का आदर छोटो से स्नेह पूर्वक व्यव्हार करते हुए गृहस्थ जीवन की बुनियाद को मजबूत किया जा सकता है। बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर का जिक्र करते हुए बाबा ने कहा केवल बड़ा होना महान बनने के लक्षण नहीं है जैसे खजूर का पेड़ बहुत लम्बा तो होता है लेकिन उससे राहगीरों को छाया नहीं मिलती और ना ही राहगीरों को उसका फल मिलता। खजूर के पेड़ की तुलना में बरगद का पेड़ भले ही छोटा होता है लेकिन राहगीरों के विश्राम हेतु छाया देने के काम आता है। जीवन भी बरगद वृक्ष की तरह लोगो के लिए लाभदाई होना चाहिए। पूज्य अघोरेश्वर द्वारा स्थापित उद्देश्यों में शामिल आश्रम पद्धति से विवाह का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा आश्रम पद्धति से विवाह का उद्देश्य वैवाहिक आयोजनों में धन के अपव्यव को रोकना है ।खर्चीली शादियों की वजह से बेटियों के पिता की जीवन भर की कमाई खर्च हो जाती है। शादियों में धन के अपव्यय को रोकने के लिए पूज्य अघोरेश्वर ने आश्रम में विवाह की आश्यकता पर जोर दिया और इस दिशा में बनोरा आश्रम लगातार प्रत्याशील है । आज जो विवाह संपन्न हो रहा है यह आयोजन आश्रम के स्थापित उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है। आने वाली पीढ़ी को संदेश देने के लिए बाबा प्रियदर्शी राम ने युवाओं से आह्वान किया कि वे वैवाहिक आयोजनों में भव्यता की बजाय आश्रम में विवाह अथवा मंदिर विवाह को प्राथमिकता दे। सनातन धर्म के चार चरण ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास में गृहस्थ आश्रम दूसरा चरण है ।,मनुष्य के जन्म के पश्चात शिक्षा दीक्षा पूरी होने पर विवाह के बाद गृहस्थ आश्रम शुरू होता है और इसमें नवदंपति परिवार के साथ रहकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लक्ष्यों को प्राप्त करता है, जिसमें धन कमाना, बच्चों का पालन-पोषण करना, अतिथि सत्कार करना और सामाजिक-पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाना शामिल है। गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों का आधार माना गया है। गृहस्थ आश्रम की जिम्मेदारियो के संबंध में पूज्य बाबा जी विस्तार से बताते हुए कहा गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते ही परिवार में पत्नी, बच्चों और बुजुर्गों का पालन-पोषण, सम्मान और देखभाल करना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।घर आए मेहमानों का सत्कार करना, परिवार के भरण-पोषण और धर्म-कार्य के लिए धन कमाना,संतान उत्पन्न करना और उनका पालन-पोषण करना करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशरण करते हुए यथा संभव दान-पुण्य करना, भक्ति करना और परमार्थ कार्य करना गृहस्थ के साधकों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। पूज्य पाद बाबा प्रियदर्शी ने कहा गृहस्थ आश्रम जीवन का वह संतुलित चरण है जहाँ व्यक्ति सांसारिक जिम्मेदारियों और आध्यात्मिक उन्नति के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है। पूज्य बाबा ने गृहस्थ को धर्म का पालन करने के नियम बताते हुए कहा परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए बच्चों को संस्कारवान बनाना, बच्चों की वैध आवश्यकताओं को पूरा करना और उन्हें स्नेह देना।सात्त्विक भोजन के सेवन को आवश्य बताते हुए पूज्य पाद ने कहा संयमित जीवन हेतु खान पान पर नियंत्रण सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि जैसा अन्न वैसा मन और जैसा मन वैसा कर्म जैसा कर्म वैसा ही फल मिलना नियति का सिद्धान्त है । गृहस्थ जीवन हेतु आत्म-संयम और संतोष को आवश्यक बताते हुए कहा एक दूसरों से बहुत अधिक अपेक्षाएं दुखो का कारण है। इसलिए अपनी तुलना कभी किसी से नहीं करना चाहिए। जो कुछ भी व्यक्ति के पास उपलब्ध हो उसमें संतोष रखना चाहिए। पति-पत्नी के मध्य प्रेम और सद्भाव को आवश्यक बताया। गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी भक्ति और साधना के माध्यम से आध्यात्मिक विकास किया जा सकता है। सामाजिक उत्तरदायित्व के संबंध में बाबा ने सदा दूसरों की मदद करने का भाव रखना चाहिए और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। आर्थिक नैतिकता पर बल देते हुए कहा शुद्ध और पवित्र धन अर्जित करने और उसका उपयोग समाज के कल्याण में करने का प्रयास सभी को करना चाहिए।

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