रायगढ़। जिले में कांग्रेस के अभेद्यगढ़ खरसिया विधानसभा सीट की इस बार तगड़ी घेराबंदी की संभावना बन रही है। भाजपा ने सामान्य वर्ग की इस सीट पर जातीय समीकरण को साधने के लिए जहां अन्य पिछड़ा वर्ग से साहू समाज के महेश साहू को प्रत्याशी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने तीसरी बार स्वर्गीय नंदकुमार पटेल के पुत्र उमेश पटेल पर विश्वास व्यक्त किया है। उमेश पटेल लगातार दो बार से इस सीट से चुनाव जीत रहे हैं। पार्टी ने इस बार उन्हें हैट्रिक लगाने का मौका दिया है। हालांकि बीते 2018 के चुनाव में भी भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था, लेकिन भाजपा प्रत्याशी रहे ओपी चौधरी ने बीते चुनावों के मुकाबले वोट के आंकड़े बढ़ाने में कामयाबी दर्ज की थी। बिते 2018 के चुनाव में इस सीट से भाजपा को अपने खाते में करीब 22 हजार बढ़त थी। जिससे भाजपा इस बार जातीय समीकरण के आधार पर मतदाताओं को साधने नई रणनीति पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश में है।
कांग्रेस के इस गढ़ में लगातार अन्य पिछड़ा वर्ग से अघरिया समाज का दबदबा रहा है। बताया जाता है कि खरसिया विधानसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद 11 चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। जिसमें 1988 का उपचुनाव शामिल है। इस उप चुनाव में अभी अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह कांग्रेसी प्रत्याशी रहे और भाजपा से दिलीप सिंह जूदेव को मैदान में उतारा था। उसके बाद के चुनाव में नंदकुमार पटेल लगातार चुनाव जीतते रहे। उनके बाद उमेश पटेल अपने पिता की राजनैतिक विरासत को संभालते हुए इस सीट से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वैसे इस सीट पर जीत का खाता खोलने की मंशा से पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को मैदान में उतारा था। बड़ी राजनीतिक सूझबूझ के साथ भाजपा उसे चुनाव को अपने पक्ष में करने की रणनीति से चुनाव लड़ रही थी। लेकिन मतदाताओं को पूरी तरह से साध पाने में भाजपा असफल रही। कांग्रेस प्रत्याशी उमेश पटेल से भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी चुनाव हार गए। लेकिन बीते चुनाव के मुकाबले भाजपा को मिलने वाले वोट के आंकड़ों में बढ़ोतरी करने में सफल रहे।
यही वजह है कि भाजपा खरसिया के इस सीट पर साहू समाज के महेश साहू को उतार कर इस बार जातीय समीकरण को साधने की कोशिश में है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि ओबीसी वर्ग के अघरिया समाज का इस क्षेत्र में करीब 25प्रतिशत की आबादी है। उसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के साहू समाज, जयसवाल समाज और अन्य जाति की आबादी है। हालांकि खरसिया साीट में अनुसूचित जनजाति वर्ग से सबसे ज्यादा मतदाता हैं। इनका प्रतिशत अघरिया समाज के मतदाताओं से 10 से 15 फ़ीसदी अधिक है। खास बात यह है कि आदिवासी इस क्षेत्र में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। इस पर सेंध लगाने की अलग-अलग राजनीतिक दल लगातार कोशिश में है, लेकिन अब तक किसी अन्य दल को सफलता नहीं मिल पाई है। भाजपा इस बार साहू समाज के एक बड़े तबके को साधने की मंशा से आगे बढ़ रही है। भाजपा ने पहली लिस्ट में ही खरसिया सीट से महेश साहू को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। प्रत्याशी घोषित होने के बाद से महेश साहू जनसंपर्क कर रहे हैं। चर्चा है कि समाज को एकजुट करने भाजपा प्रत्याशी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भी जातीय समीकरण के हिसाब से इस चुनाव को लडऩे की तैयारी में है। जयसवाल समाज से विजय जायसवाल को आप पार्टी प्रत्याशी बना सकती है। इस स्थिति में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं के धुर्वीकरण की स्थिति में किसे इसका फायदा मिलेगा यह कहना तो फिलहाल मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस के इस गढ़ को भेदने कि जिस तरह से घेराबंदी की रणनीति बनाई जा रही है, उससे कांग्रेस के कम होते मत प्रतिशत के लिए चिंताजनक स्थिति मानी जा सकती है। अब कांग्रेस अपने इस गढ़ को बरकरार रखने के लिए क्या रणनीति अपनाती है आने वाले दिनों में ही इसका पता चल पाएगा।
आंकड़े के खेल में कौन मारेगा बाजी?
खरसिया सीट में इस साल कुल मतदाता 2 लाख 15 हजार 223 है। बीते 2018 में जबकि कुल मतदाता 2लाख 3 हजार 561 रहे। इस बार करीब साढे सात हजार नए मतदाता जुड़े हैं। कांग्रेस प्रत्याशी उमेश पटेल ने 93 हजार 794 मत हासिल कर जीत दर्ज किया था। भाजपा के ओपी चौधरी 77 हजार 152 मत लेकर दूसरे नंबर पर रहे। बीते 2018 के चुनाव में मतदान का प्रतिशत 86.81 प्रतिशत रहा। इस तरह कांग्रेस प्रत्याशी को भाजपा प्रत्याशी से 16 हजार 642 मतो की बढ़त मिली थी।
बसपा 965 वोट लेकर तीसरी और आम आदमी पार्टी 600 वोट के साथ चौथे स्थान पर रही। चर्चा है कि भाजपा उस जीत के अंतर को पटने की तैयारी में है। बीते 2018 के चुनाव में भाजपा ने अपने परंपरागत वोट में करीब 22 हजार की वृद्धि की थी। इस बार प्रत्याशी बदलकर भाजपा उसी रणनीति पर काम कर रही है। आदिवासी वोट के बांटने के लिए जहां बरगढ़ खोला क्षेत्र के आदिवासी समाज से दो अलग-अलग दलों से प्रत्याशी सामने आ रहे हैं। वहीं आम आदमी पार्टी भी इस बार सेंध मारी की तैयारी में है। जिससे हर जीत को लेकर आंकड़े बाजी शुरू हो गई है। आदिवासी समाज के दो लोगों के पहले ही दिन नामांकन फार्म लेने के साथ कांग्रेस प्रत्याशी उमेश पटेल के माथे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी है। हालांकि पहले ही दिन उमेश पटेल ने भी नामांकन फार्म ले लिया है। पिछले आंकड़ों के साधने की कोशिश कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। अब आंकड़ों के इस खेल में कौन बाजी मारेगा इसके लिए मतदान के बाद मतगणना के दिन का सबको इंतजार रहेगा।
बरगढ़ खोला क्षेत्र पर सबकी नजर
खरसिया सामान्य सीट के बरगढ़ खुला क्षेत्र में आदिवासी समाज की बहुलता है बताया जाता है कि करीब 30 से 35 प्रतिशत आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में करने की हर बार कोशिश होती है। परंतु कांग्रेस के इस परंपरागत वोट पर भाजपा सहित अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों की नजर है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी हमर राज पार्टी इस बार भी चुनाव मैदान में उतरने तैयार है। बीते 2018 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस-भाजपा के प्रत्याशी सहित 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इस बार आदिवासी समाज से हमर राज पार्टी ने भवानी सिंह सिदार को प्रत्याशी बनाया है। जबकि गोंगपा से भूरे सिंह राठिया को प्रत्याशी घोषित किया है। गौर करने वाली बात है कि नामांकन फार्म लेने की तिथि शुरू होते ही पहले ही दिन दोनों प्रत्याशी ने नामांकन फार्म ले लिया है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी से पूर्णिमा जायसवाल और विजय जायसवाल ने भी नामांकन फॉर्म लिया है। विजय जायसवाल की पत्नी पूर्णिमा जायसवाल बरगढ़ खोला क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य रह चुकी है। बरगढ़ खोला क्षेत्र के 52 गांव में करीब 40 हजार मतदाता है। इस वोट बैंक पर सबकी नजर है। चर्चा है कि विजय जायसवाल इस क्षेत्र में बेहद सक्रिय रहे हैं। इस स्थिति में आम आदमी पार्टी मतदाताओं के नब्ज पकडऩे में कामयाब हो सकती है। कहा जाता है कि कांग्रेस के इस क्षेत्र में हमेशा से बढ़त रही है। अब कांग्रेस अपनी इस बढ़त को बरकरार रखने में कितनी कामयाब होती है या इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में एंटी इंकमबेसी का खामीयाजा भोगना पड़ेगा। यह तो क्षेत्र के मतदाताओं पर निर्भर करता है, यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल और प्रत्याशी अपनी पैठ मजबूत करने की युगत तलाशते दिख रहे हैं।
मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार
उमेश पटेल के दूसरे कार्यकाल में क्षेत्र में बड़े विकास कार्य होने की उम्मीद की जा रही थी। कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहने के दौरान उमेश पटेल ने जिस कार्यशैली को अपनाया है उसे लेकर पार्टी के बुजुर्ग नेताओं के अलावा युवाओं में अंदर ही अंदर आक्रोश पनप रहा था। जिससे क्षेत्र के बुजुर्ग नेता और उनके समाज से जुड़े लोग स्व. नंदकुमार पटेल की कार्यशैली को याद करते रहे हैं। अब चुकी फिर से उमेश पटेल को कांग्रेस ने मैदान में उतार दिया है। तो सरकार की एंटी इंकमबेसी का उन्हें सामना करना पड़ सकता है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि युवा मतदाता अब सीधे तौर पर उमेश पटेल से सवाल जवाब करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। हालांकि अब तक खरसिया क्षेत्र में खुले तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी को विरोध का सामना करना नहीं पड़ा है, लेकिन अंदर ही अंदर नाराजगी बताई जा रही है। पूर्व आईएएस ओपी चौधरी के पराजय और खरसिया सीट छोडक़र चले जाने के बाद कांग्रेस प्रत्याशी उमेश पटेल के सामने एक बड़ी चुनौती है कि अपने ही समाज के एक बड़े तबके को अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है। यह अभी चर्चा है कि समाज का एक बड़ा तबका उमेश पटेल से नाराज चल रहा है। ऐसे में इस चुनाव में कांग्रेस को अपना अभेद्यगढ़ बचाने की चुनौती रहेगी। जिस तरह से भाजपा ने महेश साहू को चुनावी मैदान में उतर कर जातीय समीकरण को साधने की तैयारी की है। और आम आदमी से जयसवाल समाज से प्रत्याशी के मैदान में रहने की संभावना दिख रही है। वैसे में ओबीसी और ट्रायबल वोटो का बंटवारा त्रिकोणीय मुकाबले का संकेत दे रही है। अब जातीय समीकरण की रणनीति से अपनी राह बनाने में कौन कितनी तेजी से आगे बढ़ता है यह भी बेहद दिलचस्प नजारा हो सकता है। जिस तरह से खरसिया क्षेत्र में आम आदमी पार्टी ने अपनी धमक दी है उससे लगता है आप पार्टी अपने जनाधार को बढ़ाने में हर संभव कोशिश करेगी और इसका असर कांग्रेस पर पड़ सकता है।
कांग्रेस के अभेद्यगढ़ में घेराबंदी की तगड़ी रणनीति!
