सारंगढ़। जिले में कलेक्टर डॉ. संजय कन्नौजे के मार्ग दर्शन और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एफ आर निराला के निगरानी में तैयारी प्रारंभ कर दी गई है। प्रतिवर्ष कुछ बीमारियां कुछ माह या सीजन विशेष में अधिक होती है। अक्सर मौसम व पर्यावरण बदलाव के कारण बैक्टेरियल, वायरल अन्य प्रोटोजोवल बीमारियां वाटर बॉर्न होती। इसी के साथ साथ वेक्टर बोर्न डिजीज भी होती है जिसमें मुख्य रूप से सर्दी, खांसी, बुखार, मलेरिया, डेंगू, डायरिया एलर्जी, टाइफाइड फंगल की संक्रमण दिखाई देती है। 5 वर्ष के अंदर के उम्र में आज भी लगभग एक तिहाई मौत का कारण डायरिया ही होती है। शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए डायरिया नियंत्रण जरूरी है। वही वर्षा काल में जलजनित बीमारी की श्रेणी में गैस्ट्रोएंटराइटिस, पेचिश दस्त आदि की प्रकरण वर्षा काल में ज्यादा दर्ज होती है और मृत्यु के आंकड़े दिखाते है। इसलिए उपरोक्त सभी मौसमी बीमारियों के बचाव के लिए आवश्यक तैयारियां समय पूर्व की जानी चाहिए इसी कड़ी में जिला सारंगढ़ के तीनों विकास खंडों में इस की समीक्षा की गई। जिसमें जिले अंतर्गत ऐसे गांव जहां विगत 3 वर्षों के भीतर डायरिया के प्रकरण ज्यादा हुए है ऐसे गांव की संख्या 8 है, जहां 3 वर्षों में कभी न कभी इसकी शिकायत हुई है इसे हम संवेदनशील गांव की श्रेणी में रखे है दूसरे केटेगरी में बाढ़ प्रभावित गांव होते है ऐसे गांव तीनों ही विकास खंड में है क्योंकि महानदी तीनों ही विकासखंड से हो कर गुजरती है सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित गांव विकासखंड बरमकेला में 23 गांव है, सारंगढ़ में 17 गांव है जबकि बिलाईगढ़ में 10 गांव चिन्हांकित किए गए है।
जब ज्यादा बारिश होती है और बांधो से पानी महानदी में छोड़ी जाती है तब ये गांव बहुत प्रभावित हो जाते है।ऐसे इन गांवों की समय रहते तैयारी जरूरी हो जाता है।तीसरे में पहुंच विहीन गांव होती है ऐसे गांव जहां बारिश के मौसम में आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता ऐसे गांव जिले में कुल 11 है।समय रहते चिंता करना अति अत्यावश्यक है। उपरोक्त तीनों केटेगरी के गांव में 10 जून के पहले दवा का भंडारण करना जरूरी हो जाता है। वही जल शुद्धि करण के समान व्यवस्था करना जरूरी है साथ इन गांवों में जनजागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। इनको बाढ़ आ जाने की स्थिति में किन किन बिंदुओं की जानकारी रखनी होती है पब्लिक को बताना होता है।बाढ़ की स्थिति में अनेकों प्रकरण सांप बिच्छू काटने के भी आते है जिसकी व्यवस्था जरूरी हो जाता है। विकास खंड चिकित्सा अधिकारी को निर्देशित किया गया है स्वयं व्यवस्था की समीक्षा करे और जल्द ही इन गांवों में जागरूकता अभियान चला कर पब्लिक को इन मौसमी बीमारी के बारे जानकारी देवें। बारिश के मौसम में जल जनित रोग के बचाव के जिले में 19 कॉम्बैट टीम बनाई गई है जिसमे डॉक्टर एवं अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को चिन्हांकित कर निर्देशित किया गया है कि – जब भी इसकी सूचना मिले बिना देरी किए तत्काल संबंधित गांव की ओर रवाना हो जाना होता है। बारिश के मौसम में जल जनित बीमारी के साथ साथ वेक्टर बोर्न डिजीज ( मच्छरों के द्वारा फैलाने जाने वाले बीमारी) की शिकायतें मिलती है जिसमे मलेरिया, फाइलेरिया और डेंगू है। जिले में मलेरिया के प्रकरण तो नगण्य है लेकिन फाइलेरिया के बहुत प्रकरण चिन्हांकित है। वहीं पिछले कुछ वर्षों में डेंगू के प्रकरण किए गए है वेक्टर बोर्न डिजीज के बचाव के लिए जरूरी है कि पेयजल स्रोतों के आसपास पानी जमा न होने दे, घर के छत में पुराने टायर, टूटे हुए बर्तन,गमले आदि की सफाई कर दे वहां पानी जमा नहीं होना चाहिए वही कूलर में भी पानी की नियमित 7 दिनों के भीतर सफाई करनी चाहिए साथ साथ गलियों के नाली की सफाई कर लेनी चाहिए क्योंकि मलेरिया के मच्छर ठहरे हुए साफ पानी में अंडे देती है जबकि फाइलेरिया के मच्छर गंदे पानी में अंडे देती है। बचाव के दृष्टिकोण से जरूरी है इन नालियों में जले हुए ऑयल या मिट्टी के तेल डालने से मच्छर के लार्वा मर जाते है जबकि डेंगू के मच्छर भी साफ पानी में अपने अंडे देती है अत: अपने कूलर के पानी की सफाई,गमले में पानी की ठहराव नहीं होना चाहिए।
जून माह विभाग मलेरिया रोधी माह के रूप में मनाता है। जिसमे ऐसे स्रोतों की सफाई करना,मलेरिया से बचने के उपाय के बारे में लोगों को जागरूक करना मच्छर के लार्वा को नष्ट करने के तरीके बताना तथा वही मलेरिया के मच्छर काटने से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना हो सके तो मेडिकेटेड मच्छरदानी का उपयोग करना,मच्छरदानी को दवा से उपचारित करना,मच्छर को भगाने के लिए विभिन्न प्रकार के टिकिया या अगरबत्ती का उपयोग करने से बचा जा सकता है आम आदमी को भी इस मौसम में मच्छरों से बचने के सारे उपाय करने से इससे पीडि़त नहीं होंगे। वही डायरिया से बचने के लिए शुद्ध पानी जो नल से या बोरिंग से आता है पीये या पानी को आधाघंटा उबाल कर ठंडा करके धक के रखे और इसकी सेवन करे तो डायरिया के प्रकोप नहीं होंगे क्योंकि ये जल जनित रोग है दूषित पानी के कारण होता है साथ में हमे दूषित भोजन या बासी खाना से भी डायरिया होती है ऐसे मौसम में दूषित पानी व दूषित भोजन से बचना चाहिए, सड़े गले फल,सब्जी से भी सतर्क रहना होता है,चाट गुपचुप या सडक़ पर बिकने वाले नाश्ता आदि को खाने से पहले देख ले खाने लायक है कि – नहीं देख ले मौसमी बीमारी के नियंत्रण के लिए मजबूत सूचना प्रणाली भी होना चाहिए इसके लिए भी सभी विभाग से समन्वय करके सूचना तंत्र को मजबूत किया जा रहा है ब्लॉक से डेली रिपोर्ट लेने की व्यवस्था बनाई गई है जिससे सूचना सीधे कॉम्बैट टीम या कंट्रोल रूम को मिले जिससे टीम जल्द रवाना किया जा सके। प्राइवेट अस्पताल को भीबर लाइनअप करके रखेंगे इनसे भी ऐसे मौसमी बीमारियों की जानकारी नियमित रूप से ली जावेगी गांव गांव में अपंजीकृत रूप से इलाज कर रहे लोगों पर निगरानी की जाएगी कभी कभी ये भी सूचना को छिपाते है आम नागरिकों से भी आग्रह करते है वे भी जरूरी सावधानियां रखे, आप सबके सहयोग, सह भागिता से ही जलजनित और मच्छर जनित बीमारियों से बचने सहायक होगी।
मौसमी बीमारी के बचाव की तैयारी
मौसमी बीमारी के बचाव की तैयारी
