पखांजुर। पुलिया की राह ताक रहे ग्रामीण को लकड़ी का पुल ही एक मात्र सहारा,3 ग्राम पंचायत के बीच मे फंसे इस गांव विकास से कोसो दूर,शंकरनगर ग्राम पंचायत के आश्रित बोकुल टोला गांव 10 से 12 परिवार निवास करते हैं,यहाँ गांव विजयनगर और सावेर ग्राम पंचायत के बीचो बीच मे है,सर्वे करने वाली की गलती के कारण आज इस गांव 3 पंचायत के बीच मे पीस रहे है आज भी इस गांव के ग्रामीण विकास की राह ताक रहे है,पंचायत की सीमांकन सर्वे करने वाले अधिकारी के छोटी सी चूक गांव से लगा 2 ग्राम पंचायत सावेर एवं विजयनगर और इस गांव ले जो पंचायत हैं शंकरनगर ग्राम पंचायत गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर है,इस गांव से बांदे शहर आने जाने के लिए एक मात्र कच्ची सडक़ हैं, जिसमे कई साल पहले एक पुलिया भी बना था जो पुलिया 5-6 सालो से टूटा हुआ है,ग्रामीणों को बांदे से संपर्क टूट चुका था कई बार ग्रामीण इस पुलिया का मांग भी कर चुके पर जनप्रतिनिधियों द्वारा ग्रामीणों की समस्या पर ध्यान नही दिया,जब सारे दरवाजे बंद हो गया फिर ग्रामीणों ने लकड़ी का पुल बना लिया,देशी जुगाड़ कर पानी परेशानी का समाधान किया, इस पुलिया से सिर्फ गांव वाले नही शंकरनगर पंचायत के सरपंच सचिव भी आना जाना करते हैं,गांव को विकास से जोडऩे के लिए ग्राम पंचायत भी बड़ी भूमिका रहता हैं,सरकार की योजनाओं को घर घर तक पहुचने का काम ग्राम पंचायत का होता है, गांव की विकास कार्य मे ग्राम पंचायत एजेंसी के रूप में काम करता है, पर यहाँ के सरपंच सचिव इस पुलिया के ऊपर से रोजाना गुजरते हैं पर लकड़ी की इस पुलिया को नजरअंदाज कर दिया जाता है जिसके चलते लगभग 6 साल बाद भी पुलिया बन नही पाया, ग्रामीण के साथ साथ स्कूली बच्चों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है रोजना इस लकड़ी के पुल के ऊपर से दर्जनों गांव के ग्रामीणों के साथ साथ स्कूली बच्चे आना जाना करते हैं,कहीं ना कही बच्चों के मन मे हमेशा डर भी बना रहता है,ऐसा लगता हैं की इस ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधियों को इससे कोई फर्क नही पड़ता होगा,या फिर पंचायत के जनप्रतिनिधि बड़े हादसे के इंतेजार कर रहे है।टूटे हुए पुलिया में आये दिन हादसा होते रहते है कोई न कोई रात के अंधेरे में पुलिया के नीचे गिरते रहते हैं,अब ग्रामीणों को आदत सी पड़ गई है गिरना फिर उठना खुद की जिम्मेदारी खुद निभाना क्योंकि उनकी आवाज कोई नही सुनता लिहाजा अब लकड़ी की पुलिया ही उनके लिए सहारा बन गया है।