सारंगढ़। बरमकेला अंचल के ग्राम लेंधरा के भागीरथी दास गुरूजी परिवार में उपनयन संस्कार कार्यक्रम वैदिक विधी से सम्पन्न हुआ। हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार। इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है। उप यानी पानस और नयन यानी ले जाना अर्थात् गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। प्राचीन काल में इसकी बहुत ज्यादा मान्यता थी। वर्तमान की बात करें तो आज भी यह परंपरा कायम है। लोग आज भी जनेऊ संस्कार करते हैं। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन सूत्र तीन देवता के प्रतीक हैं यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश। यह संस्कार करने से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज की प्राप्ति होती है। यही नहीं, शिशु में आध्यात्मिक भाव जागृत होता है। शास्त्रों तथा पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि इस संस्कार के द्वारा ब्राह्मण-क्षत्रिय और वैश्य का द्वितीय जन्म होता है। विधिवत् यज्ञोपवीत धारण करना इस संस्कार का मुख्य अङ्ग है।
4 बटुको का हुआ सामूहिक यज्ञोपावित –
बरमकेला अंचल के सम्मानित भागीरथी दास वैष्णव परिवार में एक साथ 04 बालकों बटुक लीलाधर, बटुक पृथ्वीधर, बटुक नमन, बटुक ईशान्त का एक साथ उपनयन संस्कार ना सिर्फ लेंधरा में अपितु पूरे बरमकेला अंचल मे चर्चा का विषय रहा जिसे देखने 03 दिनों तक लोगों की भीड़ उमड़ती रही। अंतिम दिवस में नगर भ्रमण किया गया जिसमे बटुको द्वारा द्वार द्वार जाकर भिक्षावाटन किया गया यह परिदृश्य बेहद ही भावुक और हृदयस्पर्शी रहा। उक्त कार्यक्रम में प्रदेश वैष्णव युवा अध्यक्ष विश्वनाथ बैरागी, डमरूधर वैष्णव, अकाश बैरागी समेत सैकड़ों वैष्णव जन उपस्थित रहे।
ग्राम लेंधरा के वैष्णव परिवार में सम्पन्न हुआ 4 बटुकों का उपनयन संस्कार
