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NavinKadam > रायगढ़ > स्वास्थ्य विभाग में इंसेंटिव पर मचा रार, पद एक पर राशि का अंतर कई गुना
रायगढ़

स्वास्थ्य विभाग में इंसेंटिव पर मचा रार, पद एक पर राशि का अंतर कई गुना

कंसलटेंट को 3 लाख तो सिविल सर्जन को सिर्फ 31 हजार, डाटा इंट्री ऑपरेटर्स को डॉक्टर्स से कई गुना अधिक मिला इंसेंटिव

lochan Gupta
Last updated: March 19, 2024 1:54 am
By lochan Gupta March 19, 2024
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7 Min Read

रायगढ़। स्वास्थ्य सेवाओं में कमी और लापरवाही का पर्याय बन चुके जिला अस्पताल के स्टाफ के बीच डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के सालाना इंसेंटिव को लेकर रार मचा हुआ है।
हुआ यूं कि कई सारे स्टाफ का नाम तो इस सूची में है ही नहीं। जिनका है उसमें डॉक्टर्स से अधिक इंनसेंटिव डाटा इंट्री ऑपरेटर्स को मिला है। सिविल सर्जन से अधिक जतन केंद्र के कंसलटेंट को मिला है जो कि एनएचएम के द्वारा संविदा पर नियुक्ति में है मजे की बात यह है कि जो वास्तव में यहां के कंसल्टेंट हैं उन्हें कुछ भी नहीं मिला। ऐसे बहुत सारे स्टाफ को आशानुरूप इंसेटिव नहीं मिला है। केस की संख्या और उसके अनुपात में राशि के वितरण पर इनसेंटिव तय होता है।
जिला अस्पताल के स्टाफ का आरोप है केस और उसे देखने वालों की सूची सीएमएचओ कार्यालय द्वारा अपने मन से तैयार की गई है जो हकदार है उन्हें वंचित किया गया है। किसी सिस्टर को 100 केस तो किसी को 3800 केस तक दिया गया है और प्रति केस रूपयों के आबंटन में बंदरबाट दिख रहा है। जैसे किसी को 4 रूपये प्रति केस किसी को 80 रूपये से अधिक प्रति केस दिये गए हैं।
नाम न छापे जाने की शर्त पर एक स्टाफ डॉक्टर्स ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सामान्य ड्यूटी वाले डॉक्टर्स के साथ भेदभाव हुआ है पर कैजुएल्टी में तो आया को नर्स से अधिक इनसेंटिव मिला है। डॉक्टर-सिस्टर जो हमेशा अपने समय से अधिक कैजुएल्टी में काम करते हैं उनके केस को कम किया और इनसेंटिव भी कम दिया गया है। पारदर्शी तरीके से प्रोत्साहन राशि का वितरण हो इसके लिए नियमावली बनी है पर यहां तो इसका पालन ही नहीं हुआ है। जो सीएमएचओ कार्यालय में बने दीवान साहेब का करीबी उनको जमकर उपकृत्य किया गया है।
कैसे होता है इनसेंटिव वितरण
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी निर्देश के अनुसार मेडिकल कॉलेज एवं जिला चिकित्सालय के लिए प्रोत्साहन राशि का वितरण इस प्रकार है जिसमें प्रत्यक्ष उपचारकर्ता समूह है इसके अंतर्गत उपचारकर्ता चिकित्सक या सर्जन को देय प्रतिशत 45, सहायक चिकित्सक को 15 प्रतिशत, ओटी तकनीशियन को 4 प्रतिशत का प्रावधान है। अन्य उपचार समूह जिसमें क्लीनिकल एवं नर्सिंग स्टाफ-चिकित्सक, नर्स, फार्मासिस्ट, लैब टेक्नीशियन को 20 प्रतिशत। चतुर्थ वर्ग-सफाई कर्मचारी इत्यादि को 6 प्रतिशत। प्रशासनिक कर्मचारी-हॉस्पिटल कंसलटेंट इत्यादि को 0.5 प्रतिशत। डाटा इंट्री को 5 प्रतिशत और अस्पताल प्रमुख को 0.5 प्रतिशत राशि देय होगी।
विवाद के कारण
प्रोत्साहन राशि को लेकर मचे विवाद के कारणों में से पहले यह कि केस को लेकर अस्पष्टता है। सीएमएचओ कार्यालय पर मनमानी का स्टाफ ने आरोप लगाया है। कई लोगों का नाम छूटा। जिला अस्पताल में कितने केस आए इसकी जानकारी नहीं। कितने केस और किस आधार पर बंटे कोई जानकारी नहीं है। कुछ लोग तो लगभग हर केस में हैं ऐसा कैसे और कुछ को बहुत कम केस दिया गाय है। सिविल सर्जन के 4,051 केस पर 31 हजार रूपये का भुगतान किया गया है तो वहीं जतन केंद्र के संविदा में रखे गए प्रोग्राम एसोसिएट को 3,969 केस पर 2 लाख 92 हजार का भुगतान। प्रोग्राम एसोसिएट न तो किसी का मरीज इलाज करते हैं और न ही किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय सहायता। अगर संस्था प्रमुख के हिस्से 0.5 प्रतिशत की दर देखें तो इस हिसाब उनका भी हिस्सा सिविल सर्जन के बराबर होता न कि उनसे करीब 10 गुना अधिक। नर्स अर्थात सिस्टर्स में भी काफी रार मचा हुआ है। उनका आरोप है कि एक सिस्टर को 3467 केस पर 2 लाख 48 हजार यानी 71 रूपये प्रति केस तो दूसरे को 1021 केस पर 4121 रूपये अदा किये गए हैं यानी 4 रूपये प्रति केस। ऐसे कई सिस्टर्स के केस हैं जहां अनियमितता है। कुल मिलाकर इंसेंटिव बांटने में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों नें अपनी मनमानी चलाई है। जिसा अस्पताल के कई कर्मी इसकी शिकायत स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री से करने की योजना बना रहे है।

आयुष्मान के मामले में सीएमएचओ कार्यालय रहा बदनाम
आयुष्मान कार्ड योजना हो या डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना इसका संचालन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय स्थित दफ्तर से होता है। इस विभाग को देखने वाले अधिकारी और कर्मचारी वर्षों से यहां जमे हैं और आयुष्मान कार्ड के नाम पर कई गंभीर अपराधों को अंजाम दे चुके हैं बावदूज इसके बड़े लोगों के प्रश्रय के वे यहां वर्षों से जमे हैं। आम लोगों को दुत्कारकर भगाने वाला यह विभाग अपने कर्मियों की भी नहीं सुनता और सिर्फ अपने कट से मतलब होता है जिसके लिए कोई नियम कानून नहीं है।
क्या कहते हैं अधिकारी
सिविल सर्जन डॉ आरएन मंडावी ने कहा कि प्रोत्साहन राशि वितरण केस और वर्ग के अनुसार होता है। हमारे यहां से इसकी फाइल नहीं बनती है, हां मेरे पास फाइल आती है मैं बढ़ा देता हूं। कहां कमी-बेसी हुई जानकारी नहीं है। अगर कर्मचारियों में रोष है देखता हूं पूरे मामले को। वहीं आयुष्मान भारत के जिला नोडल अधिकारी डॉ तुलेश दीवान का कहना है कि सिविल सर्जन के यहां से आए नामों की ही एंट्री करवाई गई है। मेरे पास एक एक दस्तावेज लिखित में है। नियमानुसार प्रोत्साहन राशि संबधित के खाते में गई है जिसे रायपुर से जारी किया गया है। हमारा काम डिटेल भरना होता है। मेरे पर लगाए सारे आरोप बेबुनियाद है। प्रोत्साहन राशि में गड़बड़ी अफवाह हैं।

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