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NavinKadam > रायगढ़ > चक्रधर समारोह 2025 : रायगढ़ की बेटी आराध्या ने शास्त्रीय संगीत में बांधा समां
रायगढ़

चक्रधर समारोह 2025 : रायगढ़ की बेटी आराध्या ने शास्त्रीय संगीत में बांधा समां

lochan Gupta
Last updated: September 1, 2025 12:46 am
By lochan Gupta September 1, 2025
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15 Min Read

अन्विता विश्वकर्मा ने लखनऊ घराने की अद्भुत प्रस्तुति से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध, पुणे की डॉ.मेघा राव ने अपनी सुमधुर गायन से चक्रधर समारोह को किया सराबोर, भिलाई की आद्या पांडेय ने भरतनाट्यम एवं रायगढ़ की शैल्वी ने कथक में दी शानदार प्रस्तुति, कोरबा की अश्विका ने कथक की भावभंगीमाओं से लोगों को किया मंत्र मुग्ध, 1300 से अधिक मंचों पर एकल प्रस्तुतियाँ देने वाली भरतनाट्यम नृत्यांगना एम.टी.मृन्मयी ने बाँधा समां, डॉ. कृष्ण कुमार सिन्हा ने कथक में शिव स्तुति, गंगा अवतरण सहित विभिन्न प्रतीतियों से किया दर्शकों को मंत्रमुग्ध, शास्त्रीय एवं लोक कलाओं से सजा पांचवां दिन, देश-प्रदेश के कलाकारों की शानदार प्रस्तुतियों ने जीता दर्शकों का दिल, शास्त्रीय संगीत, कथक, भारतनाट्यम, गायन और क्लासिकल डांस से सजा मंच

रायगढ़। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के पांचवें दिन संगीत, नृत्य और लोक प्रस्तुतियों की मनमोहक छटा ने सांस्कृतिक मंच को जीवंत कर दिया। छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग, पर्यटन मंडल एवं जन सहयोग से जिला प्रशासन द्वारा आयोजित इस ऐतिहासिक समारोह में शास्त्रीय संगीत, कथक, भरतनाट्यम, क्लासिकल डांस और मधुर गायन की अद्भुत संगम से दर्शक देर रात तक मंत्रमुग्ध रहे। रायगढ़ की बेटी आराध्या कुमारी सिंह ने अपने शास्त्रीय संगीत से समारोह में समां बांधा। कोरबा की अश्विका साव ने कथक की भाव-भंगिमाओं और अदाओं से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वहीं रायपुर से पहुंचे सुश्री अन्विता विश्वकर्मा का क्लासिकल डांस आकर्षण का केंद्र रहा। पुणे की डॉ.मेघा राव एवं बहन शुभ्रा तलेगांवकर ने अपनी मधुर गायन से समारोह को सुरमय बनाया, जबकि भिलाई की आद्या पांडेय ने भरतनाट्यम में अपनी श्रेष्ठता का परिचय दिया। दुर्ग के प्रख्यात कलाकार डॉ.कृष्ण कुमार सिन्हा और रायगढ़ की शैल्वी सहगल ने कथक की मनभावन प्रस्तुति से उपस्थित जनसमूह का दिल जीत लिया। दुर्ग की सुश्री एम.टी.मृन्मयी ने भरतनाट्यम नृत्य से आकर्षित किया।
समारोह में स्थानीय कलाकारों की लोक प्रस्तुतियों ने खासा प्रभाव छोड़ा। चक्रधर समारोह का हर दिन जहां एक नई छाप छोड़ रहा है, वहीं पांचवें दिन की प्रस्तुतियों ने इसे और भी यादगार बना दिया। शास्त्रीय और लोक कला का यह अद्भुत संगम न केवल दर्शकों को आनंदित कर रहा है बल्कि रायगढ़ को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक धरोहर के केंद्र के रूप में स्थापित कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के पांचवें दिन का शुभारंभ गरिमामय वातावरण में हुआ। राज्यसभा सांसद श्री देवेंद्र प्रताप सिंह, चंद्रपुर विधायक श्री रामकुमार यादव और पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री आर.एस. विश्वकर्मा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया। उन्होंने भगवान श्री गणेश के चरणों में पूजन और रायगढ़ चक्रधर सिंह के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर समारोह का विधिवत शुभारंभ किया।

रायगढ़ की नन्ही बालिका आराध्या सिंह ने दी मनमोहक प्रस्तुति

कार्यक्रम की शुरुआत रायगढ़ की नन्ही बालिका कुमारी आराध्या सिंह की मनमोहक शास्त्रीय संगीत प्रस्तुति से हुई। अपनी मधुर वाणी और स्वरलहरियों से उन्होंने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुमारी आराध्या सिंह ने राग वृंदावली सारंग में छोटा खयाल, तीन ताल, द्रुत लय, तराना और मीरा भजन प्रस्तुत कर कार्यक्रम को सुरमयी बना दिया। उनकी प्रस्तुति में तबले पर राम भावसर, सारंगी पर शफीन हुसैन, हारमोनियम पर लालाराम और पलक प्रधान ने संगत दी, जिससे माहौल और अधिक जीवंत हो उठा। बता दे कि रायगढ़ की बेटी कुमारी आराध्या सिंह पिछले चार वर्षों से चक्रधर कला एवं संगीत महाविद्यालय में गुरु माता श्रीमती चंद्रा देवांगन से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। बाल्यावस्था से ही संगीत के प्रति गहरी रुचि रखने वाली आराध्या, देश की प्रसिद्ध भजन गायिका मैथिली ठाकुर को अपना आदर्श मानती हैं। समारोह के मंच पर इस नन्ही बालिका के आत्मविश्वास और स्वर माधुर्य ने उपस्थित संगीत प्रेमियों को गहराई तक प्रभावित किया।

कोरबा की अश्विका साव ने कथक नृत्य से बिखेरा जादू

कलाकारों ने अपनी कला प्रतिभा से चक्रधर समारोह के मंच को रोशन कर दिया। कार्यक्रम में बच्चों की प्रस्तुतियों ने जहां दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, वहीं उनकी लय, ताल और भावभंगिमाओं ने कला के प्रति समर्पण को भी दर्शाया। इसी क्रम में कोरबा की कुमारी अश्विका साव ने अपनी शानदार कथक नृत्य प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया। दक्षिण भारत की इस शास्त्रीय नृत्य शैली में सुर, ताल और लय का ऐसा संगम देखने को मिला। कुमारी अश्विका साव तीन वर्ष की आयु से ही कथक का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। वर्तमान में वह लखनऊ घराना से सीनियर डिप्लोमा पूर्ण कर चुकी हैं। वह विद्यालय, स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के मंचों पर प्रस्तुति देकर कई बार सराही जा चुकी हैं। साथ ही, विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट स्थान भी हासिल कर चुकी हैं। अश्विका के लिए कथक केवल मंचीय कला नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है, जो उन्हें अनुशासन, साधना और आत्म-अभिव्यक्ति से जोड़ती है।

भिलाई की नन्ही प्रतिभा आद्या पाण्डेय ने भरतनाट्यम नृत्य से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

भिलाई की 16 वर्षीय नृत्यांगना आद्या पाण्डेय ने अपनी भरतनाट्यम प्रस्तुति से ऐसा समां बाँधा कि पूरा सभागार तालियों की गडगड़़ाहट से गूँज उठा। भारतीय इतिहास और शास्त्रीय नृत्य की भाव-भंगिमाओं को उन्होंने जिस सहजता और शुद्धता से प्रस्तुत किया, उसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आद्या पाण्डेय अब तक 25 राष्ट्रीय और 3 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं। भरतनाट्यम की शिक्षा उन्होंने मात्र 4 वर्ष की आयु में प्रारंभ की और अपने गुरु नृत्य चूड़ामणि अलंकृत डॉ.जी.रतीश बाबू से विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त की हैं। भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा को जीवंत करने वाली यह नन्ही कलाकार शिक्षा में भी उतनी ही दक्ष हैं। कक्षा 11वीं की छात्रा आद्या पाण्डेय ने हाल ही में सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में उत्कृष्ट अंक हासिल किए हैं।

14 वर्षीय नन्ही कलाकार शैल्वी सहगल ने कथक की मधुर प्रस्तुति से मोहा दर्शकों का मन

रायगढ़ की मात्र 14 वर्षीय नृत्यांगना शैल्वी सहगल ने अपनी कथक प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। कक्षा 9वीं की छात्रा शैल्वी ने ताल, लय और भाव-भंगिमाओं की अद्भुत अभिव्यक्ति से रायगढ़ कथक की समृद्ध परंपरा को जीवंत कर दिया। शैल्वी सहगल अब तक अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुतियों से सराहना प्राप्त कर चुकी हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रति समर्पित शैलवी का सपना है कि वे भविष्य में एक प्रोफेशनल कथक नर्तक बनकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करें।

अन्विता विश्वकर्मा ने लखनऊ घराने की अद्भुत प्रस्तुति से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के पांचवें दिन का मंच तब तालियों की गडगड़़ाहट से गूंज उठा जब रायपुर की नन्ही नृत्यांगना अन्विता विश्वकर्मा ने लखनऊ घराने की भावपूर्ण एवं सधी हुई प्रस्तुति दी। मात्र 11 वर्ष की आयु में अन्विता ने अपनी अद्भुत नृत्यकला से दर्शकों का मन मोह लिया। उन्होंने पहले उठान, विष्णु वंदना, ठाठ, आमद, बोल-तोड़े एवं परन और कविता रूपी ठुमरी के साथ अंत में तत्कार के प्रकार की प्रस्तुति दी। अन्विता वर्तमान में कक्षा सातवीं की छात्रा हैं और बचपन से ही नृत्य के प्रति विशेष रुचि रखती हैं। उन्होंने मात्र तीन वर्ष की उम्र से नृत्य प्रशिक्षण लेना शुरू किया। लखनऊ घराने से ताल्लुक रखने वाली अन्विता अपनी गुरु अंजनी ठाकुर के मार्गदर्शन में लगातार निखर रही हैं। देश और प्रदेश के कई प्रतिष्ठित मंचों एवं प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अन्विता अनेक पुरस्कार जीत चुकी हैं। चक्रधर समारोह के मंच पर उनकी प्रस्तुति ने न केवल दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि समर्पण और साधना से नन्ही उम्र में भी बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। अन्विता का सपना है कि वह आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारतीय शास्त्रीय नृत्य का परचम लहराएं और लखनऊ घराने की परंपरा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएं।

1300 से अधिक मंचों पर एकल प्रस्तुतियाँ देने वाली भरतनाट्यम नृत्यांगना एम.टी.मृन्मयी ने बाँधा समां

दुर्ग से आयी भरतनाट्यम नृत्यांगना सुश्री एम.टी.मृन्मयी ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रसिद्ध भरतनाट्यम आचार्य डॉ.जी.रतीश बाबू की सुपुत्री एवं शिष्या मृन्मयी ने अपनी साधना और अनुशासन से भरतनाट्यम की परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। अब तक 1300 से अधिक मंचों पर एकल प्रस्तुतियाँ देकर उन्होंने शास्त्रीय नृत्य मंच पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मृन्मयी ने देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों जैसे-चिलंका फेस्ट (केरल सरकार), संगीत नाटक अकादमी युवा महोत्सव, प्रयागराज कुंभ, हॉल ऑफ फेम चेन्नई, तपस नृत्यउत्सव चेन्नई, पुनर उत्सव बैंगलुरु समेत कई प्रमुख आयोजनों में अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने भारत की शास्त्रीय नृत्य परंपरा का प्रतिनिधित्व बैंकॉक, मलेशिया एवं अन्य देशों में किया है। उन्हें सीसीआरटी छात्रवृत्ति से सम्मानित है और कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है। कला और शिक्षा दोनों में श्रेष्ठता हासिल करते हुए उन्होंने कक्षा बारहवीं में 95′ अंक अर्जित किए हैं तथा वर्तमान में अंग्रेजी साहित्य में स्नातक एवं भरतनाट्यम में बैचलर ऑफ परफॉर्मिग आर्ट शिक्षा की ग्रहण कर रही हैं।

डॉ. कृष्ण कुमार सिन्हा ने कथक में शिव स्तुति, गंगा अवतरण सहित विभिन्न प्रतीतियों से किया दर्शकों को मंत्रमुग्ध

राजनांदगाँव के प्रख्यात कथक कलाकार डॉ. कृष्ण कुमार सिन्हा और उनकी टीम ने नृत्य की अद्भुत छटा बिखेरी। कथक की विविध झलकियों से सजे मंच पर उन्होंने शिव स्तुति, शिव तांडव, गंगा अवतरण, रायगढ़ एवं जयपुर घराना, लखनऊ घराने की छटा, तोड़ा, तराना, जुगलबंदी, नाव की गत और अष्ट नायिका जैसी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। भाव-भंगिमाओं की जीवंतता और लय की गहराई ने कार्यक्रम को अविस्मरणीय बना दिया। डॉ. सिन्हा ने कहा कि कथक केवल नृत्य नहीं, बल्कि संस्कृति, साधना और जीवन मूल्यों का जीवंत प्रतिबिंब है। चक्रधर समारोह केवल मंचीय कला नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति को जोडऩे वाली अमर धारा है।
बता दे कि डॉ.कृष्ण कुमार सिन्हा का जन्म 12 दिसंबर 1960 को राजनांदगाँव में हुआ था। बचपन से ही नृत्य के प्रति गहरे लगाव ने उन्हें कथक की साधना की ओर प्रेरित किया। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने बी.ए., एम.ए. और कथक नृत्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। लोक कला के प्रति गहरी रुचि रखते हुए उन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में ‘चंदेनी गोंदा’ नामक लोक कलाकार समूह से जुडक़र छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य और गीतों को नई पहचान दिलाई। वे अपने गुरु श्री खुमान लाल साव को जीवन का मार्गदर्शक मानते हैं, जिनसे उन्होंने लोकगीत और लोकनृत्य की प्रेरणा प्राप्त की। कला साधना को विस्तार देते हुए उन्होंने चक्रधर कथक कल्याण केंद्र, राजनांदगाँव और संगीत महाविद्यालय, ग्राम सांकरा की स्थापना की। इसके साथ ही वे समारोहों और सेमिनारों के माध्यम से युवाओं को कौशल उन्नयन और कैरियर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। कला जगत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए शासन और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया है। डॉ. सिन्हा ने लगातार 20 वर्षों से छत्तीसगढ़ के दुर्गम क्षेत्रों में लोक कलाओं के माध्यम से जनजागरूकता फैलाने का कार्य किया है।

डॉ. मेघा राव और बहन शुभ्रा तलेगांवकर ने शास्त्रीय संगीत से बांधा समां
दोनों बहनों की भक्तिमय भजनों की सुरमयी धारा में डूबे श्रोता

समारोह में ख्याति प्राप्त शास्त्रीय गायिका डॉ. मेघा तलेगांवकर राव और उनकी छोटी बहन शुभ्रा तलेगांवकर ने अपनी मनमोहक भक्तिमय भजन गायकी से उपस्थित दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया और समारोह में शास्त्रीय संगीत की खुशबू बिखेर दी।
डॉ. मेघा राव और शुभ्रा तलेगांवकर परिवार की तीसरी पीढ़ी की प्रतिभाशाली कलाकार हैं। उन्होंने बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की साधना शुरू की और मेघा प्रारंभिक प्रशिक्षण ग्वालियर घराने के प्रख्यात संगीतज्ञ पंडित रघुनाथ तलेगांवकर के सानिध्य में शुरू हुआ। अपने पिता पंडित केशव तलेगांवकर एवं माता श्रीमती प्रतिभा केशव तलेगांवकर से उन्नत प्रशिक्षण हुआ। उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा का लोहा पूरे भारत और विदेशों में मनवाया है। शुभ्रा तलेगांवकर आकाशवाणी की चयनित कलाकार हैं और देशभर के प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। उनकी उल्लेखनीय प्रस्तुतियों में एनजेडसीसी पटियाला, प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़, रज़ा फाउंडेशन दिल्ली, घराना फेस्टिवल, सांदीपनि संगीत महोत्सव पोरबंदर, सुनाद पंजाब यूनिवर्सिटी, ताज महोत्सव आगरा, अलीगढ़ महोत्सव, रामोत्सव अयोध्या प्रमुख हैं।समारोह में उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और भजन गायकी के माध्यम से ऐसा समां बांधा कि पूरा सभागार तालियों की गडगड़़ाहट से गूंज उठा। बीते दो दशकों से भारत, चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप में शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियों और साधना के लिए ख्याति प्राप्त डॉ. मेघा और शुभ्रा तलेगांवकर की यह प्रस्तुति दर्शकों के लिए अविस्मरणीय रही।

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