रायगढ़। ये तस्वीरें दिल दहला देने वाली हैं। कोटमार गांव के पास एक गाय फ्लाई ऐश के दलदल में धँसी हुई है सिर्फ उसका सिर और गर्दन बाहर हैं, बाकी पूरा शरीर राख के दलदल में फँसा है। सोचिए, कितनी देर तक वह जानवर अपनी जान बचाने की कोशिश करता रहा होगा। हाल ही में धनागर गांव में भी यही हुआ। कई मवेशी इसी राख में धँसकर मर गए और कोकड़ीतराई में तो हालत और खतरनाक हैं, वहाँ एक जलाशय को ही फ्लाई ऐश से पाटने की कोशिश की जा रही है।
सबको पता है कि ये सब कौन कर रहा है लोकल ट्रांसपोर्टर, प्लांट और प्रशासन की चुप्पी की मिलीभगत। ट्रांसपोर्टर पैसा और डीजल बचाने के लिए फ्लाई ऐश को निर्धारित डंपिंग साइट तक नहीं ले जाते, बस किसी भी खाली जमीन पर गिरा देते हैं और भाग जाते हैं। बरसात में ये राख दलदल में बदल जाती है। मवेशियों के लिए जाल, किसानों के लिए जहर, राख का पानी खेतों में बहकर मिट्टी की ताकत खत्म कर देता है, मेहनत से बोई फसल बर्बाद हो जाती है।
सब जानते हैं कि यह खेल चल रहा है। बड़े अफसर जानते हैं, स्थानीय प्रशासन जानता है। पर सब ऐसे दिखते हैं जैसे कुछ पता ही नहीं। यह वही ‘जानते हुए भी अनजान बने रहना’ है, जो रायगढ़ को इस हालत में ला रहा है। अब सवाल सिर्फ एक गाय या कुछ मवेशियों की मौत का नहीं है। सवाल यह है कि कब तक? कब तक प्लांट और ट्रांसपोर्टर मुनाफा गिनते रहेंगे और रायगढ़ राख के पहाड़ तले दबता रहेगा? कब तक खेत राख निगलते रहेंगे और लोग बीमार होते रहेंगे? अब वक्त है कि प्रशासन दिखावा करना बंद करे और वाकई कुछ करे। अवैध फ्लाई ऐश डंपिंग पर सख्त रोक लगे, ट्रांसपोर्टरों की लापरवाही रुके और कंपनियों को अपने कचरे की जिम्मेदारी लेने पर मजबूर किया जाए।वरना आने वाले सालों में रायगढ़ को याद किया जाएगा दृ उस जिले के नाम से, जो धीरे-धीरे राख में बदल गया।
फ्लाई ऐश के दलदल में धँसी गाय
कब रुकेगा जिले में अवैध राख डंपिंग का खेल?
