खरसिया। श्रवण पवित्र पावन महीने में शिव भक्त कावडिय़े आदि देव महादेव को रिझाने अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए कावड़ में गंगाजल भरकर 110 किलोमीटर पैदल यात्रा करते हुए बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग में कावड़ का जल अर्पण करते हैं। खरसिया नगर से हजारों की संख्या में भक्त कावडिय़े बाबा बैद्यनाथ धाम कावड़ यात्रा में सम्मिलित होते हैं खरसिया नगर में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जिसने बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचकर बाबा बैद्यनाथ को गंगाजल अर्पण ना किया हो।
आज बाबा बैद्यनाथ धाम रवाना हुए पूर्व सांसद प्रतिनिधि रतन अग्रवाल लायंस क्लब अध्यक्ष संजय अग्रवाल चेंबर ऑफ कॉमर्स अध्यक्ष मुकेश मित्तल सचिव राजेंद्र नूतन ने बताया कि कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। सावन के महीने में कावड़ यात्रा एक धार्मिक उत्साह का माहौल बनाती है, जिसमें भक्त नाचते-गाते, भजन गाते हुए अपनी यात्रा पूरी करते हैं।
कावड़ यात्रा विभिन्न जातियों और समुदायों को जोड़ती है एक साथ – कैलाश शर्मा
कावड़ के एक लोटा जल से प्रसन्न होने वाले भगवान भोलेनाथ की कावड़ यात्रा विभिन्न जातियों और समुदायों के लोगों को एक साथ जोड़ती है, जो एक साथ मिलकर इस यात्रा को सफल बनाते हैं बाबा भोलेनाथ के दरबार में ना कोई छोटा है ना बड़ा ना कोई अमीर होता है ना गरीब भगवान भोलेनाथ सब पर बराबर कृपा करते हैं। सावन मास और शिवलिंग के संबंध में पत्रकार कैलाश शर्मा ने बताया कि हिंदू दर्शन में शिव निराशा, निशा, काल, सर्प, दानव, मृत्यु, विनाश, प्रलय के देव यानी अंत हैं सृष्टि का जन्म भी अंधकार से हुआ था, यानी शिव अनादि के देव हैं अंत और अनादि यानी जब आदि नहीं थी तब और जब अंत होगा तब भी शिव हैं इसीलिए शिव को लिंग अर्थात् बोध यानी पहचान के रूप में पूजा जाता है यह लिंग ना तो स्त्री है ना ही पुरुष है. अर्थ पहचान के बोध से परे है ना विकृति है और ना ही प्रकृति है विकृति यानी कोई ऐसा स्वरूप जो पहचान से विकृत और ना ही प्रकृति में है कुछ इसे शिव पुराण में वर्णित अग्नि स्तंभ भी मानते हैं वह भी संभव है, लेकिन शिव चंद्र यानी शीतलता के भी देव हैं, पारद यानी धातु भी हैं, यानी पारद एक ऐसी धातु जो धातु होकर भी तरल है, बिना अग्नि के तरल है तो शैव दर्शन को पदार्थ में बांधना संभव नहीं है, और चूँकि यह चौमासा भीषण वर्षा, भीषण जल प्रलय और भीषण सर्प और विष यानी वायरस बैक्टीरिया का होता है इसीलिए इस काल को शैव काल ही माना जाता है जहाँ अंत होना बहुत आसान है इसीलिए यह काल शिव हैं एवं श्रावण मास में भगवान शिव की भक्ति का विशेष महत्व होता है। सभी कावडिय़ा भक्तों को उनकी मनोकामना पूर्ण होने की शुभकामना।
बोल बम के उद्घोषक से गूंजा खरसिया नगर
सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर बाबा बैद्यनाथ को अर्पण करते हैं भक्त कावडिय़े
