मां और पापा के डॉक्टर होने से मैं बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थी। मेरा खेल भी डॉक्टर-डॉक्टर का होता। पापा-मंमी के मरीजों के प्रति अप्रोच और मरीजों के उनके प्रति कृतज्ञता के भाव बचपन से ही रोमांचकारी लगता। पढ़ाई और जरूरी अनुभव लेकर अब मैं अपने माता-पिता के विरासत को आगे बढ़ाने आई हूं। यह कहना है डॉ. स्वाति मिश्रा का जो रायगढ़ के प्रसिद्ध डॉ. प्रकाश मिश्रा और ज्योत्सना मिश्रा की बेटी हैं। मंगलौर से एमबीबीएस करने के बाद देवगिरी, केरल से एमएस ऑब्स गायनिक पूरा किया। वह यूनाटेड किंगडम के विख्यात रॉयल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की सदस्य भी हैं जिसके लिए तीन चरणों में परीक्षा पास की। तीन साल दिल्ली के सरकारी अस्पताल और दो साल रायपुर के बालाजी अस्पताल में सेवा देने का बाद बीते साल से वह रायगढ़ में प्रैक्टिस कर रही हैं।
दूसरी जनरेशन की डॉक्टर और अपने ही शहर में प्रैक्टिस करने को लेकर डॉ.स्वाति कहती हैं कि मैं 6 साल से प्रैक्टिस कर रहीं हूं पर रायगढ़ में आने से बेहतर करने का दबाव मुझमें स्वंय में आ गया है। पापा की विरासत है लोगों की उम्मीदें भी हैं ऐसे में इन मानदंडों पर खरा उतरने के लिए काम ज्यादा और बेहतर करना पड़ता है। अभी तक मैं दूसरों के लिए काम करती थी अब मैं अपने लिए कर रही हूं, यह सुकून देने वाला तो है ही पर जिम्मेदारी बढ़ गई है। यह मेरा काम नहीं, ऐसा नहीं कह सकती। पापा का अस्पताल है यानी मेरा अस्पताल है। स्त्री रोग विशेषज्ञ होने के अलावे मेरी जिम्मेदारी यहां और बढ़ जाती है। मेरे पति डॉ. यश चड्ढा ( सर्जिकल ऑनकोलॉजिस्ट, रोबोटिक सर्जरी) का भी पूरा सहयोग मिलता है।
हमारे यहां ग्रामीण परिवेश से ज्यादा मरीज आते हैं और जागरूकता के अभाव समस्याएं भी उनमें ज्यादा होती हैं फिर भी हम जच्चा-बच्चा को बेहतर करने की पूरी कोशिश में लगे रहते हैं। शहर के लोगों में स्वास्थ्य के प्रति नजरिए में बदलाव है अब वे पूरी गर्भावस्था के पूरे महीने निगरानी रखते हैं और फॉलोअप में आते हैं। कुछ दिन पहले खरसिया से एक प्रसूता आई थी डिलीवरी के दौरान शिशु नहीं बचा, लगातार खून बह रहा था तो बच्चादानी निकालना पड़ा फिर भी उसकी हालत में सुधार नहीं आया। 5 दिन तक उसे मैंने अपनी निगरानी रखा और ईलाज किया वह स्वस्थ हो गई। यह रायगढ़ में मेरे अच्छे ईलाज में से एक है। डॉ. स्वाति आगे कहती हैं कि किसी भी विशेष मामले को लेकर परिवार में हम सभी विमर्श करते हैं और फिर ट्रीटमेंट प्लांट करते हैं। हमारा मेट्रो अस्पताल अब और बढ़ रहा है यहीं रहकर पापा की विरासत को बेहतर ढंग से संभालने की कोशिश करूंगी। मां डॉ. ज्योत्सना मिश्रा (सोनोलॉजिस्ट) मेरी प्रेरणास्त्रोत है वह खुद एक बेहतर डॉक्टर हैं पर परिवार को देखने और हमारी परवरिश के कारण प्रैक्टिस पर ध्यान कम दिया। उनकी ही त्याग का परिणाम है आज हम अपने पैरों पर खड़े हैं।
डॉ. स्वाति के पिता डॉ. प्रकाश कुमार मिश्रा, रायगढ़ का शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो इस नाम को नहीं जानता। शहर 10 से 9 लोग तो इनके पास परामर्श के लिए जाते हैं। रामगुड़ी पारा के अपने पैतृक आवास से शुरू किया क्लीनिक चक्रधर नगर चौक से होते हुए आज रायगढ़ का सबसे बड़ा अस्पताल है नाम तो जानते ही होंगे श्री बालाजी मेट्रो हॉस्पिटल। बुर्ला मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमडी मेडिसीन करने के बाद उन्होंने जिला अस्पताल रायगढ़ में काम किया। इस बीच क्रिटिकल केयर के लिए दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ट्रेनिंग ली। विशेषज्ञता हासिल करने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के अस्पतालों में गए। उन्होंने 1987 से 2023 रिटायर्ड होने तक उन्होंने जिला अस्पताल में अपनी सेवाएं दीं। जहां पिछड़े तबके और जरूरमंदों की उन्होंने सेवा की मर्ज को पकडऩे और सटीक इलाज मिलने के कारण लोगों में डॉ. प्रकाश के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ता गया। डॉ. मिश्रा कहते हैं कि समाज सेवा के भाव और गरीबों की सेवा के लिए उन्होंने डॉक्टरी पेशा चुना। मरीज का ज्यादा पैसा खर्च न हो, परेशानी कम हो और समय पर राहत मिल जाए यही मेरी सोच है और इसी सोच में 40 साल परामर्श के निकाल दिए। अब अस्पताल इस मोड में भी हम जरूरमंदों की हरसंभव मदद करने की कोशिश करते हैं। यह अस्पताल लोगों का है क्योंकि उनके ही आशीर्वाद से तो उनका प्रकाश- बड़े आज इतना बढ़ पाया है।
डॉ. प्रकाश : 4 दशक से लोगों का विश्वास
