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NavinKadam > रायगढ़ > डॉ श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ
रायगढ़

डॉ श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ

50 साल से लोगों की सेवा कर रहा डॉ. श्रीवास्तव परिवार

lochan Gupta
Last updated: July 2, 2025 12:12 am
By lochan Gupta July 2, 2025
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6 Min Read

शुक्रवार रात करीब 8 बजे डॉ. श्रीवास्तव घर से मेडिकल कॉलेज अस्पताल राउंड के लिए निकलने वाले होते हैं कि साथ में उनकी पत्नी डॉ. श्रीमती श्रीवास्तव भी अपने मरीज को देखने उनके साथ चल पड़ती हैं। ठीक 45 साल पहले अपने सास ससुर की तरह। ये और कोई नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एमएम श्रीवास्तव और महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीमती चंद्रकला श्रीवास्तव के बेटे डॉ. अंशुल और उनकी पत्नी नेहा हैं जो अपने माता-पिता की विरासत को उसी तरह आगे बढ़ा रहे हैं जैसा उन्होंने 50 साल तक लोगों की सेवा की। डॉ. श्रीवास्तव के परिवार के सभी सदस्य डाक्टर हैं, बेटा-बेहू, बेटी-दामाद सभी डॉक्टरी में मास्टर्स करने के बाद सरकारी संस्थाओं में सेवाएं दे रहे हैं। बेटी डॉ. अंकिता श्रीवास्तव (प्रोस्थो) और दामाद प्रशांत श्रीवास्तव (यूरोलॉजिस्ट,एमसीएच) दोनों ग्वालियर में सेवाएं दे रहे हैं।
बेटा डॉ. अंशुल श्रीवास्तव अपने पिता की ही तरह बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ (एमबीबीएस,एमडी) हैं जो 3 साल से रायगढ़ मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डॉ. अंशुल बताते हैं कि मरीजों की सेवा और मर्ज को पकडऩा उन्होंने अपने माता- पिता से सीखा है। कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई से ज्यादा तो उन्होंने अपने पापा से पढ़ा है। आज भी घर में हर दिन बीमारी और मरीजों के संबंध में चर्चा होती है। कोशिश है कि मैं भी अपने पिता के पद चिन्हों पर चलूं।
करीब 5 दशक तक जिले के लोगों की सेवा करने वाले 77 वर्षीय डॉ. एमएम श्रीवास्तव आज भी नियमित रूप से मेडिकल अपडेट, नई दवाईयों और उनके कंपोजिशन के बारे पढ़ते हैं। भले ही वह कितने भी तकलीफ में हों मरीज को देखना उनकी प्राथमिकता रहती है। पेन से बच्चों का दाढ़ी मूंछ बनाना हो या फिर टॉफी देने यह उनकी प्रैक्टिस का हिस्सा है। डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि समय के साथ मेडिकल क्षेत्र में बहुत बदलाव आया है। अब सुविधाओं के साथ साधन बढ़ गए हैं। उसके बाद भी जब मेरे पास दर्द से कराहते बच्चे अपने परेशान परिजन के साथ आते हैं और दवा सलाह के बाद जब वो खुशी खुशी लौटते हैं यही सबसे बड़ा सुकून है। 1997 में जब चांपा में अहमदाबाद एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी तब उसके घायलों को जिला अस्पताल रायगढ़ में लाया गया था, उनकी सेवा करना उन्हें ठीक करना कुछ यादगार लम्हों में से एक है। क्योंकि हादसे से डरे लोग छोटी सी चोट से भी घबराए थे, बच्चों की हालत गंभीर थी।
वर्तमान में डॉक्टर्स को धैर्य रखते हुए मर्ज को समझना ज्यादा जरूरी हो गया है। आजकल के पालक शिक्षित, एकल और एक बच्चे वाले हो गए हैं इस कारण बच्चे की थोड़ी से तबियत खराब हो जाने पर घबरा जाते हैं। जो गलत है। संयुक्त परिवार में बच्चे की छोटी मोटी बीमारियों में बड़ों का अनुभव काम आ जाता जो अब एकल परिवार में पैनिक हो जाता है। दवा जरूरत पडऩे पर ही दी जाती है वो भी डॉक्टर की सलाह पर।
बहू डॉ. नेहा श्रीवास्तव रायगढ़ मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में 2 साल से जनरल सर्जन हैं। कम समय में इन्होंने अपने काम से नाम कमा लिया है। बड़े अस्पतालों के अच्छे ऑफऱ ठुकराकर वह शासकीय चिकित्सालय से जुडक़र गरीब, वंचितों और जरूरतमंदों की सेवा कर रही हैं। डॉ. नेहा का कहना है कि डॉक्टर परिवार की बहू होना गर्व की बात है। घर में माहौल सपोर्टिव रहता है नियमित बीमारी, मर्ज और दवा के बारे में विमर्श होता है। मेडिकल कॉलेज में ज्यादातर मरीज आर्थिक रूप से कमजोर, पिछड़े, देहात और सुदूर क्षेत्रों से आते हैं। इनके लिए कार्य करने का जो आनंद और संतुष्टि है वह और कहीं नहीं है।
76 साल की उम्र में डॉ. चंद्रकला श्रीवास्तव चुनिंदा केस देखती हैं जो बाकियों के वश या समझ की नहीं होती। अपनी कार्यशैली और निष्ठा से मैडम श्रीवास्तव की रायगढ़ चिकित्सा जगत में अलग पहचान है। मृदुभाषी और सहज मैडम श्रीवास्तव कहती हैं डॉक्टरी में शॉर्टकट की कोई जगह नहीं है और दुर्भाग्य से आज के डॉक्टर शॉर्टकट पर ही भरोसा कर रहे हैं। अपने अनुभव के बारे में श्रीमती श्रीवास्तव ने बताया कि पहले सोनोग्राफी मशीन तो होती नहीं थी तो हमें मर्ज और मरीज को अनुभव से ही जांच करना पड़ता था। यातायात के साधन नहीं थे तो सुदूर से गर्भवती महिलाओं को अस्पताल आने में विलंब हो जाता था। कभी कभी तो महिलाएं बहुत ही बुरी स्थिति में अस्पताल तक पहुंचती थी इनके लिए हम हमेशा तैयार रहते थे। कोशिश रहती थी कि समय रहते जच्चा और बच्चा को बचा सके। जब कभी गांव में जाने का मौका मिलता था तो वहां लोग हमसे ज्यादा हमारे यहां की नर्स पर भरोसा करती थी। तब संस्थागत प्रसव को लोग कम तवज्जो देते थे लेकिन अब घरों में डिलीवरी होना लगभग खत्म हो चुका है इसके खत्म होने में हमारी पीढ़ी के डॉक्टर्स का विशेष योगदान रहा है।

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