सीधे सपाट शब्दों में मरीज को उसकी बीमारी को बताना और उपचार को समझाना। न ज्यादा टेस्ट लिखना और न अनावश्यक दवा देना। समय लेकर तसल्ली से मरीज की जांच करना डॉ. शरद अवस्थी की खासियत है। मरीज और डॉक्टर के बीच जैसा आदर्श संबंध होना चाहिए उसके डॉ. अवस्थी पर्याय हैं। कई दफे वे आपको कडक़ मिजाज के लग सकते हैं पर ऐसा नहीं है वह बेहद संजीदा और अनुशासित डॉक्टर हैं। वह मर्यादा की सीमा को भली-भांति जानते हैं। साहित्य से उनका गहरा जुड़ाव उनकी परवरिश और परिवार से मिली है। 1990 के दशक में कई कवि सम्मेलनों में उन्होंने काव्य पाठ किया है। किताबें पढऩा और संगीत सुनने के शौकीन हैं। 40 साल रायगढ़ जिला अस्पताल को देने के बाद 2019 में सेवानिवृत्त हुए और अभी अपने निवास में मरीजों को देखते हैं। डॉ. अवस्थी बताते हैं कि वर्तमान में सुविधाएं बढ़ गई हैं अत्याधुनिक मशीने आ गईं हैं डॉक्टर मशीनी जांच रिपोर्ट के आधार अपनी जांच पूरी कर रहे हैं, कई डॉक्टर तो मरीज को छूते भी नहीं है। जबकि हमारी प्रैक्टिस में इनवेस्टिगेशन (जांच) ही सब कुछ है जिसका आधार जो आपने सीखा है और जाना है वह होता है। वर्तमान में डॉक्टर्स को चाहिए कि वह कट प्रैक्टिस छोड़ मरीज के मर्ज को पकड़े। हड़बड़ाए नहीं शांत दिमाग से ट्रीटमेंट प्लान करें और उसे अमल में लाएं। मरीजों को भी चाहिए कि वह डॉक्टर पर भरोसा दिखाएं न कि खुद इंटरनेट से ज्ञान लेकर डॉक्टर बन जाए। अभी तो कई ऐसे मरीज हैं जो खुद बिना किसी डॉक्टरी सलाह के सीटी स्कैन, एमआरआई कराकर हमारे पास आ रहे हैं। जो कि सरासर गलत और खतरनाक भी है। ठीक इसी तरह से अभी भ्रामक विज्ञापनों का दौर चला है जिसमें स्प्रे, जेल इत्यादि के बारे में गलत जानकारी दी जा रही आपको तकलीफ है तो डॉक्टर से संपर्क करें न कि खुद डॉक्टर बन जाएं। डॉ. अवस्थी आगे कहते हैं कि जह कोई मरीज मेरे पास आता है और मैं उसकी जांच कर जैसे उपचार की उम्मीद करता हूं ठीक वैसा ही परिणाम आता है तो सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। जटिल मामलों के बारे में वह बताते हैं कि 15 साल पहले 13 साल की एक बच्ची के पैर को कार वाले ने सेंट्रल स्कूल के पास बुरी तरह से कुचल दिया था, हादसे के बाद लोग तुरंत उसे लेकर मेरे घर आए मैं तुरंत उसे अस्पताल ले गया। वह शॉक में थी तो पहले उसे नॉर्मल किया और फिर उसका इलाज शुरू किया। उसके पैरों की हड्डियां बुरी तरह टूट-फूट गईं थी। 4 बड़े ऑपरेशन लगे समय लगा स्क्रीन ग्राफटिंग भी करनी पड़ी और वह स्वस्थ हो गई। आज वह 28 साल की हो गई है मेट्रो सिटी में कार्यरत है जब कभी वह मिलती है उसे देख सुकून मिलता है। ठीक इसी तरह का सुकून डॉ. अवस्थी के छोटे बटे 38 वर्षीय इशान अवस्थी को भी मिलता है जब उनके पास धन्यवाद से भरे संदेश और मिठाई आती है। इन्हें नए नवेले दुल्हे-दुल्हन द्वारा ये मिलते हैं। दरअसल डॉ. इशान जिले के पहले आर्थोडोंटिस्ट यानी टेढ़े-मेढ़े दांतों को ठीक करने वाले। कई लोगों की शक्लों में दांत के टेढ़ेपन के कारण शादी होने में दिक्कत आती है ऐसे लोगों को डॉ. इशान ने ठीक किया है जिसके बाद उन लोगों जीवन एकदम से बदल गया। डॉ. ईशान अपनी सेवाएं रायगढ़ के आसपास के जिलों में भी देते हैं। सरकारी कैंप में भी अपनी सेवाएं देते हैं जहां वे मरीजों के दांत और चिपके तालु को अलग करते हैं। अपने पिता के विरासत को ईशान ने आगे बढ़ाया है इनके बड़े भाई किंशुक लंदन में मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैं। ईशान ने राजनांदगांव से बीडीएस और वर्धा से एमडीएस किया है। अभी वह दांतों के प्रत्यारोपण की नहीं तकनीक को सीख रहे हैं जिससे कुछ ही समय में दांतों का प्रत्यारोपण रायगढ़ में भी हो पाएगा। डॉ. ईशान के रायगढ़ में सेवा शुरू करने से अब लोगों को टेढ़े मेढ़े दांत सुधारवाने बाहर नहीं जाना होता। क्योंकि यह प्रकिया समय लेती है और बार बार बाहर जाना खर्चीला भी होता है।
अपने पिता की ही तरह भाषा पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले डॉ. ईशान कहते हैं कि जहां मेरे पिता ने चिकित्सा को 50 साल दिए हैं वहां मेरा प्रैक्टिस करना दो धारी तलवार की तरह है। लोगों को लगता होगा मेरे लिए सब आसान है पिता के सेट अप को आगे बढ़ाना है जबकि ऐसा नहीं है। अपितु मेरे मामले में गलती की गुंजाइश नहीं के बराबर हो जाती है क्योंकि मेरे पास मेरे पिता की विरासत और उनकी उजली छवि है। मैंने पापा से ही मरीज की काउंसिलिंग करना सीखा है जिससे मेरा काम आसान हो जाता है। मेरे लिए मेरे पापा चलते फिरते संस्थान है। कुछ मामलों में उनका अनुभव मेरे बहुत काम आता है क्योंकि दांतों से जुड़ा मामला हड्डी का ही है।
अस्थियों के इलाज से खुशियां फैलाते डॉ. अवस्थी
