NavinKadamNavinKadamNavinKadam
  • HOME
  • छत्तीसगढ़
    • रायगढ़
      • खरसिया
      • पुसौर
      • धरमजयगढ़
    • सारंगढ़
      • बरमकेला
      • बिलाईगढ़
      • भटगांव
    • शक्ति
    • जांजगीर चांपा
    • बिलासपुर
  • क्राइम
  • आम मुद्दे
  • टेक्नोलॉजी
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • Uncategorized
Reading: सटीक परामर्श और व्यवहार से जनसेवा करते डॉक्टर
Share
Font ResizerAa
NavinKadamNavinKadam
Font ResizerAa
  • HOME
  • छत्तीसगढ़
  • क्राइम
  • आम मुद्दे
  • टेक्नोलॉजी
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • Uncategorized
  • HOME
  • छत्तीसगढ़
    • रायगढ़
    • सारंगढ़
    • शक्ति
    • जांजगीर चांपा
    • बिलासपुर
  • क्राइम
  • आम मुद्दे
  • टेक्नोलॉजी
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • Uncategorized
Follow US
  • Advertise
© 2022 Navin Kadam News Network. . All Rights Reserved.
NavinKadam > रायगढ़ > सटीक परामर्श और व्यवहार से जनसेवा करते डॉक्टर
रायगढ़

सटीक परामर्श और व्यवहार से जनसेवा करते डॉक्टर

lochan Gupta
Last updated: July 2, 2025 12:08 am
By lochan Gupta July 2, 2025
Share
27 Min Read

कोई किसान परिवार से तो सामान्य परिवार, डॉक्टर बन समाजसेवा करने के निर्णय को बखूबी निभा रहेभगवान का दूसरा रूप कहे जाने वाले डॉक्टर का दिन है। जब भी कोई बीमार होता है, सबसे पहले डॉक्टर के पास ही जाता है। डॉक्टर अपनी मेहनत और सेवा-भाव से लोगों को नया जीवन देने का काम करते हैं। डॉक्टर को हमेशा तैयार रहना पड़ता है, चाहे दिन हो या रात। कई बार डॉक्टर रात-रात भर मरीजों की सेवा करते हैं। आपातकालीन परिस्थितियों में भी वे बिना थके अपना काम करते हैं। जानिए रायगढ़ के उन डॉक्टर्स के बारे में जिन्हें एक डॉक्टर की महत्ता पता है। इसलिए वे अपनी प्रैक्टिस से लोगों का इलाज ही वरन सेवा भी कर रहे हैं। ये डॉक्टर न केवल शारीरिक रोगों का इलाज करते हैं, बल्कि अपने अच्छे व्यवहार से मरीज को मानसिक रूप से भी मजबूत बनाते हैं। उनकी मुस्कान और विश्वास से मरीज को आधा इलाज तो अपने आप ही मिल जाता है। जानिए अपने रायगढ़ के ऐसे डॉक्टर्स को

डॉ. ताराचंद पटेल : सटीक उपचार जेब पर नहीं पड़ता भार

जब किसी बच्चे की तबीयत खराब होती है तो पूरा घर परेशान हो जाता है। बच्चे अपनी तकलीफ भी नहीं बता पाते, ऐसे में डॉक्टरी जांच और दवा पर बच्चा निर्भर रहता है। बच्चे के नाम पर किसी भी टेस्ट और कितनी भी महंगी दवा को पालक मना नहीं करते। पर ऐसे में कोई डॉक्टर आपको सही जांच और सटीक दवा, गुणवक्ता युक्त अस्पताल में दे वो भी बड़े अस्पतालों से कई गुना कम कीमत पर तो उसका यश दूर-दूर तक फैलता है।
डॉक्टर ताराचंद पटेल ने बहुत ही कम समय में रायगढ़ और आसपास के जिले में शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में अपनी दमदार छवि बना ली है। वर्तमान में इनके ओपीडी में सबसे ज्यादा मरीज आते है। कारण, इनकी कम पैसे में गुणवत्तायुक्त चिकित्सा प्रदान करने का प्रण। डॉ. ताराचंद मरीज को पूरी तसल्ली से देखते हैं और मर्ज जानने के बाद दवाई भी ऐसे देते हैं कि मरीज के परिजन की जेब पर बोझ न लगे। ये अनावश्यक जांच नहीं लिखते उनका ओपीडी फीस भी अन्य चिकित्सकों से 70 फीसदी कम है। मेडिकल फील्ड में हरेक डॉक्टर का एक दौर चलता है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि अभी का दौर डॉ. ताराचंद का है। सरायपाली के किसान परिवार में जन्म लिए ताराचंद ने डॉक्टर बनने का सिर्फ इसलिए सोचा कि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर नहीं होते थे, होते भी तो कम आते, शहर के डॉक्टर महंगे होते। उनके गांव के करीब 15- 20 किलोमीटर के दायरे में कोई डाक्टर नहीं था। उन्होंने करीब से सारी समस्याओं को देखा नहीं जिया भी। 12वीं के बाद वे डॉक्टर बनने का सपना लिए रायपुर आ गए जहां उनके क्षेत्र के एक डॉक्टर थे अश्विनी भोई उनसे मार्गदर्शन ले राह पकड़ी तो पहले उन्हें कुछ समझ नहीं आया। गांव के लडक़े को शहर की आबो हवा सूट नहीं की, उनका देहातीपन भी आड़े आया। शुरुआती असफलताओं के बाद आखिरकार 2001 में उन्हें बिलासपुर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया। डॉक्टरी करने के बाद रायपुर मेडिकल कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। रायपुर में बालाजी, बाल गोपाल जैसी संस्थाओं में अनुभव लेने के बाद 2012 में रायगढ़ जिला अस्पताल आए। इसके एक साल बाद 2013 में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का खाली समय में समय में इलाज करने के लिए कान्हा अस्पताल बनाया। जब आम डॉक्टर 400 रूपये फीस लेते थे तब वे महज 100 रूपये फीस लेते ताकि अस्पताल के खर्चे चल सकें। 2017 में जिला अस्पताल से इस्तीफा देकर किराए के भवन फुल टाइम कान्हा अस्पताल चलाने लगे। अप्रैल 2023 में नए कान्हा अस्पताल में वे शिफ्ट हुए, यह अस्पताल जिले का सबसे भव्य औऱ आधुनिक मशीनों से लैस, तकनीकि रूप से मजबूत है। बच्चों के लिए जिले के सबसे बड़े अस्पताल में 51 बेड का नवजात बच्चों का आईसीयू, 2 आईसीयू, वातानूकूलित जनरल वार्ड जहां का खर्च आम अस्पताल से कई गुना कम है। यहां 4 शिशु रोग विशेषज्ञ, 1 सर्जन समेत 110 नर्सिंग स्टाफ है। डॉ. ताराचंद ने क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं किया है किया है तो सिर्फ प्रॉफिट में। एक साल के भीतर ही कान्हा हॉस्पिटल प्रदेश में ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में सर्व सुविधायुक्त होने के साथ ही साथ सबसे सरल और सुलभ भी हो गया। अब बहुत कम बच्चे गंभीर होने पर रायगढ़ के बाहर जाते हैं।
बच्चों का सभी उपचार रायगढ़ में : डॉ. ताराचंद
डॉ. ताराचंद पटेल बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सर्व सुविधायुक्त अस्पताल खोलना चाहता था ताकि उन्हें मैं रायगढ़ में उच्च स्तरीय इलाज प्रदान कर सकूं। अस्पताल चलाने के लिए जितना पैसा चाहिए उसके हिसाब से फीस लेता हूं, मेरी कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं है। जब आप किसी बच्चे को बचाते हैं औऱ फिर जब वही बच्चा आपके पास फॉलोअप के लिए आता है तो तब सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। पहले रायगढ़ में 1.5 किलो के नवजात बच्चे को बचाने में दिक्कत होती थी पर अब हम 700 ग्राम तक के बच्चों को बचा रहे हैं। वो भी एफोर्डेबल रेट में। संपन्न परिवार के लिए 50 रूपये मायने नहीं रखता पर मेरे पास कई ऐसे परिवार आते हैं जिनके लिए यही 50 रूपये बहुत बड़ी रकम है। मेरा संकल्प है कि बच्चों को रायगढ़ में ही सभी प्रकार का उपचार उपलब्ध कराना। क्योंकि रायगढ़ बहुत बड़े क्षेत्र को कवर करता है यहां चिकित्सीय सुविधा नहीं होने से बहुत लोगों को तकलीफ होती है। पहले बच्चे की गंभीर बीमारी ले लिए लोगों को बाहर जाना पड़ता था जो कि परिजनों के लिए दोगुनी तकलीफदेह होता था अब रायगढ़ में बच्चों के लिए उच्च स्तरीय मेडिकल सुविधा उपलब्ध है।

डॉ. राजू अग्रवाल परिवार : अहर्निश सेवा में

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और जननायक रामकुमार अग्रवाल के छोटे बेटे डॉ. राजू अग्रवाल समाजसेवा के साथ डॉक्टरी को 4 दशक से करते आ रहे हैं। वर्तमान में उनका अस्पताल अत्याधुनिक मशीनों व सुविधाओं से लैस है पर एक समय ऐसा भी था जब सीमित संसाधन में वह अपनी क्लीनिक चलाते। तब रायगढ़ में निजि क्लीनिक एक्का-दुक्का ही थे। ‘डॉ. राजू के यहां’ यही उनके अस्पताल का नाम लोग जानते थे। यहां हमेशा मरीजों की भीड़ रहती फिर चाहे वह दिन हो या रात वह सेवा करने के लिए मौजूद रहते। इसे ही अहर्निशं सेवामहे कहा जाता है। चोट, एक्सीडेंट, सर्पदंश, आगजनी, उल्टी-दस्त, पीलिया, डेंगू जैसे बीमारी से ग्रसित मरीज इनके यहां आते वे उनका प्राथमिक उपचार कर संबंधित अस्पताल भेज देते क्योंकि आपातकालीन उपचार सुविधा रायगढ़ में न के बराबर थी तो वह मरीज के गोल्डन ऑवर्स में उसे इलाज मुहैया कराते। वह हड्डी रोग से संबंधित मरीजों का पूरा उपचार करते लेकिन अन्य गंभीर मामलों को वह रेफर कर देते। उनका अस्पताल तब और अब हमेशा मरीजों के लिए खुला रहता है वह किसी को खाली हाथ नहीं भेजते।
डॉ. राजू ने 1984 में इंदौर-रायपुर से एमबीबीएस करने के बाद खरसिया सिविल अस्पताल में नौकरी की। रायपुर से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद पुसौर में सेवाएं देने लगे। 12 साल सरकारी नौकरी करने के बाद उन्होंने 1996 में सरकारी नौकरी छोड़ दी, तब यह बड़ा कदम था पर वह रायगढ़ के लोगों की सेवा के प्रति प्रतिबद्ध थे तो ऐसा करना पड़ा। अब फुल फ्लैश निजी प्रैक्टिस चालू कर दी जो रायगढ़वासियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। शहर के मध्य में हर समय खुला रहने वाला अस्पताल। डॉ. राजू शुरू से ही कम फीस और आवश्यकतानुसार दवा देते हैं। वह आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को रियायत देते हैं। गांव में निशुल्क मेडिकल कैंप लगाकर लोगों की सेवा वे शुरू से करते आ रहे हैं। गंभीर मरीज जो अस्पताल नहीं आ पाते उन तक डॉ. राजू कितने भी व्यस्त हों पहुंच ही जाते। वर्तमान में 67 वर्षीय डॉ. राजू अपने सर्वसुविधायुक्त अस्पताल रायगढ़ आर्थों एंड जनरल अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं। वह कहते हैं कि समय के साथ रायगढ़ में हादसों की वृद्धि हुई है और जिस हिसाब से यहां ट्रॉमा सेंटर होने चाहिए अभी नहीं है। नए डॉक्टर्स के बारे में उनका कहना है कि डॉक्टर की डायग्नोसिस अब अपने क्लिनिकल ज्ञान से ज्यादा लैब की रिपोर्ट पर निर्भर हो गई है, और यह होना ही है क्योंकि आज लैब का स्तर और सुविधा हमारे समय से बहुत ही उच्च है। रायगढ़ के भीषण प्रदूषण को यहां की जनता के स्वास्थ्य के लिए अभिशाप कहते हुआ कहा कि रायगढ़ में प्रदूषण से निजात पाने के लिए हर स्तर पर कारगर उपाय किये जाना आवश्यक है।
डॉ. राजू के दो बेटे हैं बड़ा बेटा अहर्निश डॉक्टर है और अभी रायगढ़ में अपने पिता के अस्पताल को चला रहा है। छोटा बेटा शशांक इंजीनयर बनने के बाद अमेरिका में कार्यरत है। अपने पिता और दादा की विरासत को संभालने की जिम्मेदारी डॉ. अहर्निश पर है। डॉ. अहर्निश ने मुंबई से एमबीबीएस डिग्री और बैंगलोर से अस्थि रोग विशेषज्ञ का डिप्लोमा किया। 2018 से रायगढ़ में अपने पिता के अस्पताल में प्रैक्टिस कर रहे हैं। एक तरीके से कहें तो पूरा अस्पताल का बोझ अपने कंधों पर लेकर पापा को आराम दे दिया, फिर भी डॉ. राजू प्रैक्टिस कर रहे हैं और अपने साथ अपने बेटे को मर्ज की बारिकियां सिखा रहे हैं। बेटे को डॉक्टरी संस्थान से ज्यादा सीख तो अपने पिता से मिल रही है। पिता के अनुभव से अहर्निश की प्रैक्टिस में पैनापन आ गया है तभी तो पिता बेटे के भरोसे पूरा अस्पताल छोड़ दिये हैं। पिता पुत्र ने सेवा को तवज्जो दी है पैसा मायने नहीं रखता।
डॉ. अहर्निश अग्रवाल कहते हैं कि बाबा-पापा की इतनी बड़ी लेगेसी से गर्व और दबाव दोनों महसूस होता है। गर्व इस बात का दादा के कर्म और समाज में योगदान अकल्पनीय है। पापा के मरीज और उनका चार्म और गुडविल गजब है। दबाव इस बात का कि लोग आपसे पापा जैसा इलाज और व्यवहार की उम्मीद अपने आप रखते हैं। मैं अगर 10 प्रतिशत पापा जैसा और 1 प्रतिशत बाबा जैसा बन जाऊं तो यही मेरे जीवन का सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। मैं पारंपरिक तरीके से अभी मरीजों का इलाज और सर्जरी दोनों कर रहा हूं। समय ऑटोमेशन और रोबोट्स का है जिसके लिए हमारी तैयारियां जारी है। रायगढ़ में उद्योग होने के कारण ट्रांसपोर्ट और सडक़ों पर वाहनों का दबाव बढ़ा इस कारण अब यहां सबसे ज्यादा मरीज ट्रॉमा, एक्सीडेंट के आते हैं जिसमें सीधे हमारा विभाग शामिल है इसलिए हमें समय के साथ अपडेट और बेहतर होना होगा।
डॉ. राजू की बहू भी डॉक्टर हैं और वे भी परिवार के नाम रोशन कर रही हैं। पैथोलॉजी में मास्टर्स डॉ. मल्लिका अग्रवाल रायगढ़ आर्थों एंड जनरल अस्पताल में लैब को पूरा संभाला हुआ है और रियायती दरों में अत्याधुनिक खून-पेशाब इत्यादि की जांच कर रही हैं। इनके यहां हर टेस्ट में बाजार दर से 25 फीसदी की रियायत हर किसी को मिलता है। डॉ. मल्लिका भी डॉक्टर परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने 2016 से 2018 तक मेडिकल कॉलेज रायगढ़ में सेवाएं दी फिर अपने लैब में आ गईं। वह बताती हैं कि अब रायगढ़ में सभी प्रकार के टेस्ट हो जाते हैं लोगों को बाहर जाने की जरूरत नहीं है। कुछ टेस्ट जो बाहर से होते हैं उसके लिए सैंपल हम यहीं से भेज देते हैं। पैथालॉजी ने काफी विकास कर लिया जिसके कारण आज बीमारी को पहचानने में ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता। ससुर, पति दोनों से एक पॉजिटिव एनर्जी मिलती है जिससे मैं बेहतर कर पाती हूं।

डॉ. नीरज मिश्रा : चार पीढ़ी से कर रहे आयुर्वेद की सेवा

आयुर्वेद का पर्याय बन चुके डॉ. नीरज मिश्रा के पास जिले के दूर-दराज से नहीं अपितु दूसरे जिले से भी मरीज आते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. मिश्रा की जांच और दवा के सटीक परिणाम आने के कारण ही दिनोंदिन इनके ओपीडी में मरीजों की तादाद बढ़ रही है। एलोपैथी के किसी अन्य एमडी मेडिसीन से अधिक भीड़ आपको जिला आयुष अस्पताल के डॉ. मिश्रा के ओपीडी के बाहर मिल जाएगी। मृदुभाषी और सरल स्वभाव के डॉ. नीरज मिश्रा अनावश्यक जांच नहीं लिखते और इत्मिनान से मरीज को देखते हैं और अस्पताल से मिलने वाली निशुल्क दवाओं से अपने मरीजों का इलाज करते हैं। मरीज के लिए सबसे विश्वास की बात यही होती है कि सरकारी अस्पताल में उनका इलाज बेहतर तरीके से हो रहा है। एन एम सी के नये नियमानुसार अब जिला आयुर्वेद चिकित्सालय मे एमबीबीएस के छात्र इंटर्नशिप के लिए आते हैं आयुर्वेद और एलौपेथी की ज्वाइंट स्टडी व प्रैक्टिस का डिस्कशन से वैज्ञानिकता से नए डॉक्टर्स का आयुर्वेद पर भरोसा बढ़ा है वे आयुर्वेदिक दवाईयों को लेने की सलाह देते हैं और गंभीर और आपातकालीन स्थिति के रोगीयो में अवस्थानुसार मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा के लिए परामर्श देते हैं। जिससे मरीज को आराम मिल सके। बिहार के समस्तीपुर जिले के रोसड़ा अनुमंडल में डॉ. नीरज मिश्रा (45 वर्ष) का जन्म आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. अशोक मिश्रा के यहां हुआ। बचपन से जड़़ी-बूटियों से खेलने वाले नीरज ने मुजफ्फरपुर से बीएएमएस और पटना से एमडी किया है। वह अपने परिवार में 4 थी पीढ़ी के आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं। इनके चाचा वैध रंजीत मिश्रा भी एक ख्याति प्राप्त वैध है। इनके एक अनुज डॉ सुधांश एम एस (ओर्थो) एवं प्रियांशू एमबीबीएस का अंतिम वर्ष के छात्र हैं।इनकी छोटी बहन डॉ सोनी एम एस (गायनि) हैं।पर पिता एवं चाचा की प्रेरणा से नीरज को शुरू से आयुर्वेद से ही लगाव था। दादा की कहानियों में आयुर्वेद होता कि कैसे किस दवा और जांच से उन्होंने किसी को ठीक कर दिया। घर में फुर्सत के क्षण भी सभी का दवा, मरीज और जांच सफलता और विफलता पर मंथन की बातें होती। इन सभी का नीरज पर ऐसा असर पड़ा कि वह खेल-खेल में बीमारी और उसके इलाज के बारे में जान गए थे। घर में उन्हें शुरू से मर्ज की रग पकडऩा आ गया फिर पढ़ाई से दक्षता हासिल हुई। अब जानकार डॉ. नीरज अपनों से बीमारी और इलाज के बारे में बराबर बात करने लगे। उनका मरीजों को देखने के अप्रोच में चार पीढ़ी का सार है। 2010 में छ ग लोक सेवा आयोग से चयनित विभिन्न स्थानों में अपनी सेवाएं देकर डॉ. नीरज रायगढ़ जिला आयुर्वेद अस्पताल आए और तब से पीछे मुडक़र नहीं देखा। उन्होंने अपने वरिष्ठ चिकित्सक डॉ जी पी तिवारी के प्रेरणा लेकर उनके सेवानिवृत पश्चात आयुर्वेद चिकित्सा को एक नया रुप देकर इसका सम्मान रायगढ़ में और भी बढ़ाया लोगों में विश्वास जगाया कि समय लगता है पर इलाज सटीक मिलता है। कोविड के समय भी वह हर मोर्चे पर डटे रहे। तब आयुष को केन्द्र एवं राज्य सरकार ने भी खूब प्रमोट किया ऐसे में डॉ. नीरज और उनकी टीम की जिम्मेदारी और बढ़ गई थी। खुद को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने तब भी दिन रात लोगों की सेवा की थी।
अनुशासन और भरोसा ही आयुर्वेद की जान
डॉ. नीरज बताते है कि जब उनके पास से कोई मरीज हंसी-खुशी अपने घर लौटता है तो उनसे ज्यादा खुशी उन्हें होती है। बांझपन, चर्म रोग, लकवा के मरीज हमारे यहां से ठीक होकर जाते हैं। मानसिक अवसाद को दूर करने में आयुर्वेद कारगर है। आयुर्वेदिक दवाओं को असर होने में समय लगता है और कई दफे इसके लिए स्वयं का अनुशासन की भी जरूरत होती है। ऐलौपैथी में तुरंत रिजल्ट मिलता है इसी तरह आयुर्वेद में आशुकारी विधियां (एमरजेंसी प्रोसीजर) होती हैं पर हर मर्ज में उसका उपयोग नहीं होता। मामले की गंभीरता के आधार पर आयुर्वेद में तत्काल इलाज होता है। आयुर्वेद चिकित्सा की भी अपनी मर्यादा होती है लोग आयुर्वेद के नाम पर भ्रामक विज्ञपनों के चक्कर में न आएं और उचित चिकित्सीय परामर्श के बाद ही किसी भी दवा का सेवन करें।

डॉ. आरएल अग्रवाल : 40 साल से व्हीलचेयर में बैठकर बचा रहे जिंदगियां

समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत, मरीजों का हौसला, परिवार का आधारस्तंभव्हीलचेयर पर जिंदगी की परिभाषा को बदलने वाले डॉ. रतनलाल अग्रवाल अपने आप में सकारात्मकता की पुंज, जीवटता और जिम्मेदारी का पर्याय हैं। चिंता, शिकन, तनाव ये शब्द उनके जीवन में नहीं है। 24 घंटे किसी दूसरे पर निर्भर रहने वाले डॉ. आरएल अग्रवाल हमेशा मुस्कुराते रहते हैं वो सीख हैं आज की जेन एक्स, जेन जी के लिए जो मोबाईल टूटने और दिल टूटने पर गलत कदम उठा लेते हैं। वो हौसला हैं अपने मरीजों के लिए, वो आधारस्तंभ हैं अपने परिवार के लिए, वे प्रेरणास्त्रोत हैं पूरे समाज के लिए। वे अभिमान है हमारे राज्य के लिए।
सरायपाली के एक सामान्य मारवाड़ी परिवार में जन्मे डॉ. आरएल अग्रवाल 1965 में डिग्री लेने रायपुर पहुंचे जहां विज्ञान संकाय में उनका अच्छा नंबर आया और वहीं से उन्हें रायपुर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया। 1976 में डॉक्टरी के साथ एमडी मेडिसिन की पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद वे रायगढ़ जिला अस्पताल आए। प्रैक्टिस बढिय़ा चल रही थी। नब्ज पकडऩे और दवा देने में इनकी महारत को देखकर दूर-दराज से लोग इन्हें बुलाने लगे और मरीज की गंभीरता को देखते हुए वे शासकीय चिकित्सा कैंप में जाते।
इसके बाद उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे नवाचार को लेकर और पढऩा था पर नियति को कुछ और मंजूर था। साल 1985 में लैलूंगा से मरीज को देखकर वे लौट रहे थे कि गेरवानी के पास उनकी जीप पलट गई और वे गाड़ी से दूर फेंका गए। शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं था पर शरीर कमर के नीचे से मुड़ गया था। ड्राइवर को कुछ नहीं हुआ, डॉ. साहब बेहाश थे। अस्पताल में होश आया तो उन्हें समझ आ गया कि कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा। उन्होंने ही डॉक्टर को बताया कि उन्हें पैरा प्लेजिया हुआ है। रायगढ़ के होनहार 37 वर्षीय डॉक्टर के साथ ऐसी दुर्घटना से हर कोई स्तब्ध था, जिला अस्पताल में उन्हें देखने पूरा रायगढ़ उमड़़ पड़ा था। ये वो लोग थे जिन्हें डॉ. अग्रवाल ने अपनी सेवाएं दी थी। पत्नी, बेटी सूमी (6 वर्ष), प्रशांत (7 वर्ष) को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें क्या ना करें। डॉ. अग्रवाल का पूरा परिवार सराईपाली से उनके पास आ गया। परिवार व रायगढ़वासियों के प्रेम और दुआओं से उनकी जान बच गई। 1 साल तक पहले मुंबई फिर पूना में इलाज चला। इस दौरान उनके परिवार के लोग सदैव उनके साथ रहते। डॉ. साहब की जान तो बच की पर अब वे चल नहीं सकते थे। व्हीलचेयर के भरोसे उन्हें जीवन काटना था। व्हीलचेयर मजूबत से मजबूत लोगों का मानसिक संतुलन बिगाड़ देता है पर जब डॉ. साहब रायगढ़ आए तो लोगों का स्नेह और परिवार साथ पाकर वे भूल गए कि उनके साथ हुआ क्या और वे कैसे जी रहे हैं। 1986 से फिर से अपनी सेवाएं जिला अस्पताल में देना शुरू किया उनके इस फैसले से लोग आश्चर्य से ज्यादा गौरवान्वित महसूस कर रहे थे।
हादसे के बाद वे और सरल हो गए। चिढ़, गुस्सा तो उन्हें आता ही नहीं बस बिखरती तो उनके चेहरे की मुस्कान। शारीरिक अक्षमता उनके निजी और व्यवसायिक जीवन में कभी आड़े नहीं आई और न ही उन्होंने कभी इसे अपनी मजबूरी बनाया। वे आज भी जहां जाते हैं एक अलग सी सकारात्मक ऊर्जा उनके औरे से चुहंओर बिखरती है। उनसे एक बार बात करने से खुद में आत्मविश्वास जाग जाता है।
प्रशांत की दुनिया मैं
प्रशांत मेरा बेटा आज जिले अच्छे डॉक्टर्स में शुमार है। उसने अपने बूते जिले का पहला ट्रॉमा सेंटर और बढिय़ा सेटअप वाला अस्पताल खोला है। वह अपने आप में बहुत व्यस्त रहता है फिर भी उसकी पूरी दुनिया मैं ही हूं। वह हमेशा मेरे साथ रहता है, मेरे पल-पल की खबर उसे रहती है। हादसे के बाद से मेरा कहीं जाना मुश्किल हो गया था। लेकिन अब प्रशांत ही मुझे बाहर ले जाता है, हम परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं। वह मेरा आत्मविश्वास है। प्रशांत एक होनहार डॉक्टर होने के साथ एक आदर्श बेटा भी है।
ईमानदारी, कम दवा, अच्छी जांच
76 साल के डॉ. आरएल अग्रवाल के ओपीडी में मरीजों की हमेशा भीड़ लगी रहती है। उनके मरीज उनके अलावा कहीं नहीं जाते। 2009 में जिला अस्पताल से रिटायर्ड होने के बाद वे निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं। वह बताते हैं कि मैं अपने काम के प्रति ईमानदार हूं। सही जांच और जरूरत के अनुसार दवाई देता हूं। सही से जांच हो जाने के बाद उपचार आसान हो जाता है। मेरी कोशिश रहती है कि मेरे मरीज पर आर्थिक बोझ न पड़े।
आखिरी सांस मरीजों के नाम : डॉ. अग्रवाल
76 साल की उम्र में बिना थके मरीजों को देखना और कब तक मरीजों को देखोगे के सवाल पर डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि सब कुछ समर्पण का खेल है। मैंने खुद को अपने मरीजों के प्रति समर्पित कर दिया है। जब मेरा मरीज मेरी दवा और जांच से स्वस्थ हो जाता है तो इसी से ही मुझे ऊर्जा मिलती है। पूरा रायगढ़ मेरा परिवार है वो तब मेरे साथ खड़ा था जब सबसे ज्यादा परिवार की जरूरत थी। दो बार मौत को छूकर वापस आया हूं एक बार 1985 का जीवन परिवर्तनीय हादसा और दूसरा 2015 में स्वाईन फ्लू के क्रिटिकल कंडीशन से लौट आना। बाकी डॉक्टर कहते हैं जब तक पैरों पर खड़ा हूं तब तक प्रैक्टिस करेंगे तो मैं मानता हूं अपनी आखिरी सांस तक मरीजों को देखूंगा।
योग, किताब और संगीत
अपनी सकारात्मकता और जीवटता के बारे में डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि वह नियमित रूप से योग करते हैं इसकी उन्होंने बकायदा ट्रेनिंग भी ली है। संगीत सुनते हैं और खाली समय में आध्यात्मिक किताबें भी पढ़ते हैं। पहले वह काव्य गोष्ठियों में शिरकत भी करते थे पर अब बढ़ती उम्र के कारण उन्होंने यहां जाना बंद कर दिया। पोता प्रणील और रिशीत इनके साथ घर में समय अच्छा बीताते हैं। छोटा वाला रिशीत गाने बजाने का शौकीन है।

You Might Also Like

महिला जेल बंदी गृह में विधिक जागरूकता शिविर आयोजित

आर.एल. हॉस्पिटल में 2 जनवरी को लिगामेंट विशेषज्ञ डॉ. सुमन नाग रहेंगे उपलब्ध

आर.एल. हॉस्पिटल में 2 को साइटिका स्पेशिलिस्ट डॉ हर्षित गोयनका रहेंगे उपलब्ध

कलेक्टर से रायगढिय़ा जनों ने प्रदूषण से बचाने की अपील : कांग्रेस

खरसिया प्रीमियर लीग रात्रिकालीन क्रिकेट का हुआ भव्य शुभारंभ

Share This Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp Telegram Email
Previous Article डॉक्टर्स की सेवा व समर्पण से मिलती है नव जिंदगी – ओमी
Next Article अस्थियों के इलाज से खुशियां फैलाते डॉ. अवस्थी

खबरें और भी है....

नृत्य व गायन के अद्भुत संगम से सजी चक्रधर समारोह की दूसरी शाम-
टांगी से हमला कर युवक की कर दी हत्या
चक्रधर समारोह में आज की प्रस्तुति
छपोरा में झोलाछाप डाक्टर दे रहा हर मर्ज की दवा
शराब के नशे में टांगी से दोस्त की हत्या, तमनार के आमाघाट फिटिंगपारा की घटना

Popular Posts

नृत्य व गायन के अद्भुत संगम से सजी चक्रधर समारोह की दूसरी शाम-
मेगा हेल्थ कैंप का मिला फायदा, गंभीर एनीमिया से पीड़ित निर्मला को तुरंत मिला इलाज
स्कूल व आंगनबाड़ी के बच्चों का शत-प्रतिशत जारी करें जाति प्रमाण पत्र,कलेक्टर श्रीमती रानू साहू ने बैठक लेकर राजस्व विभाग की कामकाज की समीक्षा
दृष्टिहीन मिथिला का मौके पर बना राशन कार्ड, शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों को मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सहायता योजना से लाभान्वित करने के दिए निर्देश
डेंगू से निपटने निगम और स्वास्थ्य की टीम फील्ड पर,पिछले 5 साल के मुकाबले इस साल केसेस कम, फिर भी सतर्कता जरूरी

OWNER/PUBLISHER-NAVIN SHARMA

OFFICE ADDRESS
Navin Kadam Office Mini Stadium Complex Shop No.42 Chakradhar Nagar Raigarh Chhattisgarh
CALL INFORMATION
+91 8770613603
+919399276827
Navin_kadam@yahoo.com
©NavinKadam@2022 All Rights Reserved. WEBSITE DESIGN BY ASHWANI SAHU 9770597735
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?