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Reading: त्रिकोणीय मुकाबले की तरफ बढ़ रहा रायगढ़ सीट!
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NavinKadam > रायगढ़ > त्रिकोणीय मुकाबले की तरफ बढ़ रहा रायगढ़ सीट!
रायगढ़

त्रिकोणीय मुकाबले की तरफ बढ़ रहा रायगढ़ सीट!

कांग्रेस-भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं निर्दलीय, शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ता दखल क्या रंग लायेगा?

lochan Gupta
Last updated: November 6, 2023 12:59 am
By lochan Gupta November 6, 2023
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10 Min Read

रायगढ़। जिला मुख्यालय की रायगढ़ सामान्य सीट पर इस बार फिर घमासान मचने के आसार है इस सीट पर कांग्रेस के प्रकाश नायक, भाजपा के ओपी चौधरी, बसपा की पुष्पलता टण्डन, आम आदमी पार्टी के गोपाल प्रसाद अग्रवाल, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की मधुबाई सहित अन्य राजनीतिक दलों व निर्दलीय प्रत्याशी गोपिका गुप्ता, निर्दलीय शंकर लाल अग्रवाल के साथ ही अन्य निर्दलीय सहित 19 प्रत्याशी अपने-अपने मुद्दों को लेकर चुनावी प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं। जिससे आने वाले दिनों में चुनावी तस्वीर बेहद दिलचस्प होने की संभावना है। राजनीति के जानकारों की माने तो इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की जबरदस्त धमक बड़े राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें खड़ी होने की आशंका बढ़ सकती है। इस स्थिति में रायगढ़ सीट में त्रिकोणीय मुकाबला बेहद रोमांचक की स्थिति उत्पन्न कर सकता है जिससे मामला बीते 2018 चुनाव की तरह हो सकता है। दोनों बड़े राजनीतिक दलों को निर्दलीय प्रत्याशियों की जनसंपर्क और प्रचार-प्रसार के तेज होने से रायगढ़ सीट पर चुनावी मुकाबला कश्मकश की स्थिति की ओर तेजी से बढ़ रहा है। रायगढ़ सामान्य सीट पर भाजपा ने जहां पूर्व आईएएस और भाजपा के प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी को उतार कर कांग्रेस को खुला चैलेंज किया है, वहीं कांग्रेस ने रायगढ़ विधायक प्रकाश नायक को दूसरी बार प्रत्याशी बनाकर भाजपा के सामने दीवार खड़ी करने की कोशिश की है। भाजपा-कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी एक ही जाति वर्ग के आते हैं, जिसे निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी जातीय समीकरण को साधने की पूरी रणनीति तैयार की है। इसी तरह आम आदमी पार्टी और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने ऐसा दाव खेला है जिससे चुनावी समीकरण बिगड़ सकता है आम आदमी पार्टी ने मारवाड़ी समाज के गोपाल प्रसाद अग्रवाल को प्रत्याशी बनाकर इस वोट बैंक पर सेंध करने की कोशिश की है। दूसरी तरफ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने रायगढ़ नगर निगम की पूर्व महापौर मधुबाई किन्नर को चुनाव मैदान में उतार कर नगर निगम 2015 के चुनाव की यादें ताजा कर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। खास बात यह है कि इस चुनाव में निर्दलीय अपनी जबरदस्त मौजूदगी का प्रदर्शन अपने-अपने नामांकन रैली से कर चुके हैं। इसके अलावा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में निर्दलीय प्रत्याशी जनसंपर्क अभियान में बेहद सक्रिय हो गए हैं बताया जाता है कि कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लडऩे वाले निर्दलीय प्रत्याशी शंकर लाल अग्रवाल का जनसंपर्क अभियान तेजी से हर गली मोहल्ले में आगे बढ़ रहा है। वहीं भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी गोपिका गुप्ता ने शहरी क्षेत्र में अपना जनसंपर्क तेज कर दिया है। पुसौर क्षेत्र के त्रिभोना गांव की गोपिका गुप्ता जिला पंचायत सदस्य है। जिससे ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं तक उनकी सीधी पहुंच का लाभ उसे चुनाव में भी लेने की रणनीति पर काम करते दिख रही है। राजनीति की जानकारी की माने तो कांग्रेस और भाजपा से बगावत करने वाले दोनों निर्दलीय प्रत्याशी से दोनों ही दलों को नुकसान होने की शंका है। इसके अलावा अन्य निर्दलीय भी राजनीतिक दलों के ही वोट बैंक पर सेंध लगाते नजर आ सकते हैं। जिससे ज्यादा उम्मीद यह जताई जा रही है कि निर्दलीय इस बार खेल बिगाड़ सकते हैं। अभी शुरुआती दौर में चुनावी जनसंपर्क का नजारा ऐसे ही अनुमान को जन्म देते नजर आ रहे है। लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आती जाएगी राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते रहेंगे रोज नया समीकरण नजर आ सकता है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि निर्दलीय प्रत्याशियों के बढ़ते दम-खम से चुनावी तस्वीर में उलट फेर की काफी गुंजाइश बन सकती है।

खेल बिगाड़ सकते हैं निर्दलीय

भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए निर्दलीय चिंता का कारण बन सकते हैं। बीते 2018 के चुनाव में जिस तरह की स्थिति एक निर्दलीय प्रत्याशी ने करीब 43 हजार वोट अपने नाम कर भाजपा के रथ को रोक दिया था। वैसे ही स्थिति इस बार भी बन सकती है टिकट नहीं मिलने से नाराज गोपिका गुप्ता और शंकर लाल अग्रवाल अपनी सियासी चाल से क्या खेल कर सकते हैं इसका अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है। लेकिन दोनों ही दलों को अपने वोट पर सेंध लगने की चिंता सता सकती है। राजनीति के जानकारों की माने तो पुसौर क्षेत्र और रायगढ़ शहरी क्षेत्र में अपनी दखल बढ़ाने की कोशिश में जूटे शंकर लाल अग्रवाल से कांग्रेस को नुकसान की आशंका है, तो गोपिका गुप्ता भी अपनी विचारधारा वाले वोट बैंक पर सेंध लगा सकती है। जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है। कांग्रेस ने पार्टी से बगावत करने वाले शंकर लाल अग्रवाल को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया है। लेकिन भाजपा से गोपिका गुप्ता के विरुद्ध अब तक किसी तरह की कार्रवाई सामने नहीं आई है। दोनों पार्टियों में इसे लेकर खलबली मचना स्वाभाविक सा लगता है। लेकिन अपने नफे-नुकसान की चिंता तो पार्टी ही करेगी। इसकी भरपाई किस रूप में की जा सकती है यह तो आने वाले वक्त में ही पता चल सकता है।

प्रदेश के राजनीति का रायगढ़ पर असर

प्रदेश स्तर पर भाजपा जिस रणनीति से छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव लड़ रही है उसे लगता है कि भाजपा पूरी तरह से कांग्रेस को हर मोर्चे पर घेरने की रणनीति बना रही है। लेकिन कांग्रेस भी हर पल नया पैंतरा अपना कर भाजपा के रणनीति विफल करने की तैयारी में है। प्रदेश में भाजपा कांग्रेस की इस नूरा-कुश्ती का कमोबेस हर विधानसभा क्षेत्र पर असर पड़ सकता है। राजनीति के जानकारों की माने तो शहरी क्षेत्र में उसका व्यापक प्रभाव नजर आ सकता है। दोनों ही दलों के चुनावी घोषणा पत्र को लेकर रायगढ़ विधानसभा सीट पर असर पडऩे की संभावना है। कृषि प्रधान वाले इस क्षेत्र में एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। इस स्थिति में घोषणा पत्रों के इन चुनावी वादों पर लोगों की नजर रहेगी। बताया जाता है कि बीते 2018 के चुनाव में कांग्रेस धान खरीदी के मुद्दे पर भारी रही और कर्ज माफी के वायदे से उसे सफलता मिलने की खूब चर्चा रही थी। लेकिन एक वर्ग इसे एक सिरे से खारिज कर भाजपा के 15 वर्षों के एंटीइंनकमबेंसी को मानता है। इस बार के चुनाव में दोनों ही राजनीतिक दलों ने किसानों को मालामाल करने घोषणा पत्र में दावा किया है। लेकिन इस बार एंटिइंकमबेंसी का सामना कांग्रेस को करना पड़ सकता है। कुछ क्षेत्रों में सरकार की कार्यशैली और कुछ क्षेत्रों में स्थानीय विधायक की छवि पर एंटिइंनकमबेसी की चोट लग सकती है। रायगढ़ सीट पर भी इसी तरह की रणनीति भाजपा कांग्रेस दोनों के लिए भारी पड़ सकती है। इसका किस पर असर ज्यादा होगा यह देखने वाली बात होगी।

घोषणा पत्र और मुद्दों का कितना असर!

बड़े राजनीतिक दलों के प्रत्याशी जहां अपने-अपने घोषणा पत्र से आम जनता को लुभाने के रणनीति बना रहे हैं वहीं निर्दलीय प्रत्याशी भी रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदलने का दावा करते हुए अपने-अपने विजन को लेकर चुनाव प्रचार करते नजर आ रहे हैं। भाजपा अपने घोषणा पत्र को मोदी की गारंटी बता कर चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है। वहीं कांग्रेस प्रदेश की भूपेश सरकार की योजनाओं और उपलब्धियां को गिनाने में मशगूल दिख रही है। जबकि अन्य राजनीतिक दल और निर्दलीय प्रत्याशी अपने-अपने विजन से जनता का दिल जीतने की तैयारी में जुटे हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो विधानसभा चुनाव में प्रदेश स्तर के मुद्दे तो रहते है। लेकिन स्थानीय मुद्दे भी बेहद कारगर माने जाते हैं। रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र में ऐसे कई बड़े स्थानीय मुद्दे हैं जिसका इस चुनाव पर बड़ा असर पड़ सकता है। रायगढ़ शहर में रिंग रोड के अलावा सडक़ों की दशा सारंगढ़ बस स्टैण्ड का जीणोद्धार एवं उसे व्यवस्थित करना, संजय कंपलेक्स दैनिक सब्जी मंडी का कायाकल्प, जिला चिकित्सालय में चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार, शहर में बढ़ती ट्रैफिक समस्या क्षेत्र में बढ़ता औद्योगिक प्रदूषण, स्थानीय युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा सुविधा का विस्तार, केलो सिंचाई नहर से जल आपूर्ति जैसे कई मुद्दे इस चुनाव में सामने आ सकते हैं। जनता से जुड़े इन मुद्दों का इस चुनाव पर काफी असर पड़ सकता है।

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