रायगढ़। जिले के धर्मजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र में सडक़, बिजली, सिंचाई सुविधाओं के विस्तार सहित हाथी प्रभावित क्षेत्र में मुआवजा, कोल माईंस क्षेत्र मेें मुआवजा और पुनर्वास की बड़ी समस्या खड़ी है। जिसे लेकर स्थानीय लोगों में जनप्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी देखी जा रही है। इसका इस विधानसभा चुनाव पर असर पड़ सकता है। राजनीति के जानकारों की माने तो क्षेत्र की समस्याओं को लेकर निर्वाचित जनप्रतिनिधि सजग नहीं रहते जिससे मौजूदा दौर में भी लोगों को सडक़, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का समुचित रूप से लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिससे क्षेत्र के समग्र विकास की परिकल्पना कागजों पर ही सिमटी नजर आती है। इस चुनाव में भी जहां इन समस्याओं को लेकर सताधारी दल की कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
धरमजयगढ़ क्षेत्र में सडक़ों की जर्जर हालत है इसके जीर्णोद्धार के लिए कई बड़े आंदोलन किया जा चुका है। बताया जाता है कि भीतर तीन-चार वर्षो से सडक़ों की हालत जर्जर है, लेकिन उसकी मरम्मत के लिए सार्थक प्रयास समय पर नहीं हो पाये। जिसकी वजह से समूचे धर्मजयगढ़ क्षेत्र के लोगों को सुलभ आवागमन करने में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। धरमजयगढ़ से हाटी करीब 25 किलोमीटर सडक़ की रिपेयरिंग की गई, लेकिन कुछ ही वक्त में सडक़े फिर से जर्जर हो गई। इसी तरह धर्मजयगढ़ से पत्थलगांव, धरमजयगढ़ से कापू, घरघोड़ा से धर्मजयगढ़ की सडक़ों की हालत अब भी बद से बद्तर है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र की सडक़ों का भी हाल-बेहाल है। जिसे लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश है। राजनीति के जानकारों की माने तो जर्जर सडक़ों को लेकर कई बड़े आंदोलन हो चुके हैं। लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर गंभीर नहीं रहे, जिससे क्षेत्र के लोगों में सत्ता पक्ष को लेकर जमकर नाराजगी देखी जा रही है। इसके अलावा धर्मजयगढ़ क्षेत्र में कोयला खदानों को लेकर लोगों में आक्रोश है। भूमि अधिग्रहण पर मिलने वाली मुआवजा और पुनर्वास की समस्या से ग्रामीण जूझ रहे हैं। भू स्थापितों के मुआवजा और पूर्नवास के कई प्रकरण अभी भी लंबित है। जिसे लेकर जनप्रतिनिधि गंभीरता से पहल करने में नाकाम बताए जाते हैं। चल क्षेत्र में एसईसीएल की कोयला खदान संचालित है। उसके अलावा घरघोड़ा क्षेत्र में जामपाली, बरौद कोयला खदानों लात कोल माईंस में मुआवजा के प्रकरण का निपटारा नहीं होना। प्रभावित लोगों मैं गुस्से की वजह बताया जा रहा है।
धर्मजयगढ़ नगर पंचायत क्षेत्र से लगे दुर्गापुर, शाहपुर, धरमजयगढ़ बायसी कॉलोनी, तराईमार के करीब 1700 हेक्टेयर में प्रस्तावित उद्योग को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश है। बताया जाता है की भूमि अधिग्रहण से विस्थापन की बड़ी समस्या उत्पन्न होगी। जिसे लेकर प्रभावित क्षेत्र के लोग बेहद परेशान है यह भी बताया जाता है कि प्रस्तावित क्षेत्र में बंगाली समुदाय के लोग निवास करते हैं। विस्थापन के बाद धर्मजयगढ़ क्षेत्र में पुर्नवास कर जीवन यापन करने वालों को एक बार फिर विस्थापन की चिंता सता रही है। प्रस्तावित उद्योगों को लेकर क्षेत्र का जन प्रतिनिधि की उदासीनता से लोगों में नाराजगी साफ झलकती है। जिससे लगता है कि इस बड़ी समस्या का इस चुनाव में असर दिखेगा।
दूसरी तरफ वन अच्छादित इस क्षेत्र में हाथी एक बड़ी समस्या है, लेकिन इसे लेकर अब तक कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी है। हाथी की समस्या से गेरसख् अमापाली के अलावा छाल, धमजगयढ़, कापू क्षेत्र के प्रभावित ग्रामीण लंबे अर्से से जूझ रहे हैं। बताया जाता है कि हाथियों के विचरण से जहां ग्रामीणों की लगातार मौत हो रही है वहीं फसलों को नुकसान का भी उन्हें सामना करना पड़ रहा है। फसल नुकसानी से मिलने वाले मुआवजा राशि के नहीं मिलने से किसान बेहद नाराज हैं। इसके अलावा हाथी प्रवाहित क्षेत्र में बिजली कटौती एक बड़ी समस्या बन चुकी है हाथी के विचारण को सूचना मात्र पर बिजली काट दी जाती है, और यह कटौती तब तक जारी रहती है, जब तक हाथी उसे क्षेत्र से पलायन नहीं कर जाते। इस तरह बिजली कटौती से जहां प्रभावित गांव अंधेरे में डूबे रहते हैं। वहीं किसानों को फसलों की सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिल पाती, जिससे फसल की नुकसानी होती है। इस दोहरे नुकसानी की भरपाई नहीं होने पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के इस बड़ी समस्या को दूर करने सार्थक पहल नहीं किए जाने से लोगों में जमकर आक्रोश है। बिजली गुल रहने से पीने के पानी की भी बड़ी समस्या से क्षेत्र के लोगों को सामना होना आम बात है। बताया जाता है कि वनों से गिरे इस धर्मजयगढ़ क्षेत्र के लोगों को अभी भी मूलभूत सुविधाओं का सुचारू रूप से लाभ नहीं मिल पाना बेहद चिंताजनक है।
विपक्षी नेता भी नहीं सजग
धरमजयगढ़ क्षेत्र के समुचित विकास के लिए जहां सत्ता पक्ष के नेताओं की गंभीरता नजर नहीं आती वही विपक्षी दल के नेता भी दिखावा करते नजर आते हैं। यही वजह है कि सरकार को बड़ा राजस्व देने वाले इस विधानसभा क्षेत्र का समुचित विकास नहीं हो पाने की बात कही जा रही है। राजनीति के जानकारों की माने तो आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में विकास के मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों की सोच नहीं बदली है। स्थानीय मान्यताओं और रूढि़वादिता क्षेत्र के विकास में आड़े आती है तो जनप्रतिनिधि उसे हवा देने में जुड़ जाते हैं। जिसके चलते क्षेत्र में उच्च शिक्षा, तकनीक शिक्षा के अलावा प्राथमिक शिक्षा के लिए बेहतर प्रयास नहीं हो सका है। जिसका खामियाजा क्षेत्र की नई पीढ़ी को उठाना पड़ रहा है। शिक्षा के अलावा चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार की दिशा में भी मौजूदा दौर में बेहतर प्रयास की स्थिति नहीं बन पाना यह भी स्थानीय नेतृत्व में हुई कमी के भाव को प्रदर्शित करता है।
करोड़ों का राजस्व पर विकास शून्य
आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र की लगातार उपेक्षा हो रही है सरकार और चुने हुए जनप्रतिनिधि इस क्षेत्र के समुचित विकास की दिशा में गंभीर नहीं रहे और ना ही मौजूदा दौर में यह स्थिति नजर आती है। करोड़ों रुपए का राजस्व देने वाले क्षेत्र की खनिज संपदा, वन संपदा का जिस गति से उद्वाहन किया जा रहा है उसे गति से क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को धरातल पर उतरने नहीं पाना, सीधे तौर पर संवेदनहीनता और उपेक्षा का ताजा उदाहरण कहा जा सकता है। क्षेत्र में क्षेत्र में समग्र विकास और मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के लिए उठने वाली आवाज को षडयंत्र पूर्वक दबाने की राजनीतिक भूमिका भी सत्ता की गलियारे में मलाई खाने की सोच को प्रदर्शित करता है। इस तरह सडक़, बिजली, पानी, सिंचाई सुविधा, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार के क्षेत्र में बेहतर पहल की उम्मीद है। इसके लिए सजग और कर्मठ नेतृत्व क्षमता का होना आवश्यक है आने वाले समय में इस क्षेत्र को ऐसा नेतृत्व मिल पाएगा या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
सीएसआर मद से भी नहीं हो रहा काम
क्षेत्र में एसईसीएल की कोयला खदानें संचालित होने के बाद भी स्थानीय विकास को लेकर एसईसीएल कभी भी गंभीर नहीं रही। और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधि इस दिशा में कोई दबाव नहीं बना पाए। जिससे कोयला खदानों से लगे ग्रामीण क्षेत्र में सडक़, बिजली, पानी और प्रदूषण की समस्या अब भी बनी हुई है। स्थानीय विकास की दिशा में माइंस प्रबंधन की ओर से कोई पहल नहीं किए जाने का खामियाजा स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सीएसआर मद से प्रभावित क्षेत्र में विकास कार्यों के अलावा मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के लिए प्रयास किए जा सकते हैं, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों की दुलमुल नीतियों के कारण माइंस प्रबंधन इन्हें लेकर सजग नहीं रहे हैं, और प्रभावित क्षेत्र में समस्याओं के अंबर देखे जा सकते हैं।