तमनार. केलो बनांचल आदिवासी बाहुल्य जनपद तमनार में 24 जनवरी को गांवों व शहरों में द्वार-द्वार पर ‘छेरछेरा कोठी के धान ल हेरहेरा’की चहुँओर गूँज रही।अन्न दान का महापर्व छेरछेरा लोक पारंपरिक त्योहार पौष की पूर्णिमा को सादगीपूर्ण माहौल से मनाया गया। गांवों में बरसों की परंपरा का निर्वहन करते डंडा नृत्य व छेरछेरा धान,चावल व पैसा मांगा गया। कई ग्रामो में पारंपरिक डण्डा नृत्य व बच्चों युवाओ द्वारा धान संग्रहण पर गदगद नजर आए।
ज्ञात हो कि छेरछेरा त्योहार कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है।उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ का मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेरछेरा माँगने वालों को दान करते हैं। सुबह से ही बच्चे,युवक व युवतियाँ हाथ में टोकरी,थैला बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा माँगते हैं। वहीं डंडा नृत्यको, रामायण कीर्तन भजन पार्टियों की टोलियाँ घर-घर पहुँचती हैं। सभी घरों में पुरी रोटी,आइरसा, गुझा,आलू चाप, बड़ा भजिया तथा अन्य व्यंजन बनाया जाता है।
तमनार के चहुँओर छेरछेरा कोठी के धान ल हेरहेरा की रही गूँज
