रायगढ़। जिले की लैलूंगा विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बन रही है। बीते 2018 के चुनाव में हुए त्रिकोणी संघर्ष में कांग्रेस के चक्रधर सिंह सिदार ने बाजी मार ली थी। कांग्रेस ने इस सीट से उस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सत्यानंद राठिया को पराजित किया था। उस दौरान पूर्व विधायक हृदयराम राठिया जनता कांग्रेस से प्रत्याशी थे। इस बार वैसे ही त्रिकोणीय मुकाबले की पूरी-पूरी संभावना है। इस बार कांग्रेस ने विधायक चक्रधर सिदार की टिकट काटकर महिला प्रत्याशी को मैदान में उतरने की रणनीति बनाई है। यहां से महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष विद्यावती सिदार को प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा ने पूर्व मंत्री सत्यानंद राठिया की पत्नी व पूर्व विधायक सुनीति राठिया को दूसरी बार प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि कांग्रेस ने विधायक चक्रधर सिंह सिदार के अलावा पूर्व विधायक हृदय राम राठिया और सुरेंद्र सिंह सिदार की प्रबल दावेदारी को दरकिनार कर महिला प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। दूसरी तरफ भाजपा ने भी महिला प्रत्याशी की आड़ पर लैलूंगा सीट पर काबिज होने की रणनीति पर जुटी है। लेकिन तमनार क्षेत्र से कांग्रेस नेता सुरेंद्र सिदार के बगावती तेवर कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ा कर सकता है। इस स्थिति में इस सीट से त्रिकोणीय मुकाबले की प्रबल संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
अनुसूचित जनजाति के आरक्षित इस सीट पर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी अल्टरनेट बाजी मार रहे थे। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सत्यानंद राठिया पहली बार चुनाव जीते उसके बाद 2008 के चुनाव में कांग्रेस के हृदय एवं राठिया ने जीत दर्ज की और भाजपा के सत्यानंद राठिया को पराजय का सामना करना पड़ा। इसी तरह 2013 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी हृदयराम राठिया की हार हुई और सत्यानंद राठिया की पत्नी भाजपा प्रत्याशी सुनीति राठिया ने जीत दर्ज की। भाजपा ने 2018 के चुनाव में एक बार फिर सत्यानंद राठिया को मैदान में उतारा और परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गई। कांग्रेस प्रत्याशी चक्रधर सिदार ने बाजी मार ली और सत्यानंद राठिया को एक बार और हार का सामना करना पड़ा। इस बार भाजपा ने लैलूंगा सीट से पूर्व मंत्री सत्यनारायण राठिया की पत्नी सुनीति राठिया को प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि कांग्रेस ने भाजपा की तर्ज पर इस सीट से महिला प्रत्याशी घोषित कर महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष विद्यावती सिदार को मौका दिया है।
अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित लैलूंगा सीट पर महिला प्रत्याशी उतार कर भाजपा और कांग्रेस महिला मतदाताओं को रिझाने की कोशिश में है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि लैलूंगा क्षेत्र से भाजपा में एक ही परिवार को बार-बार मौका दिया जाना एक अलग तरह की राजनीति का संकेत दे रही है। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद चार चुनाव में भाजपा से सत्यानंद राठिया और उसकी पत्नी को मौका दिया गया। जिससे भाजपा का एक धड़ा इस परिवारवादी राजनीति अंदर ही अंदर बेहद खफा है। हालांकि खुले रूप से अब तक भाजपा प्रत्याशी को लेकर विरोध के स्वर उभर कर सामने नहीं आए हैं। अब आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनती है इसे साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता। लेकिन कांग्रेस में टिकट बंटवारे के बाद विरोध के स्वर मुखर हो गए हैं। कांग्रेस से टिकट के प्रबल दावेदार सुरेंद्र सिंह सिदार ने बगावत कर निर्दलीय चुनाव लडऩे का मन बना लिया है। जो कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। अगर ऐसी स्थिति बनती है और सुरेंद्र सिंह सिदार निर्दलीय मैदान में उतरते हैं तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि लैलूंगा विधानसभा सीट लैलूंगा और तमनार ब्लाक के अलावा रायगढ़ ब्लॉक के हिस्से को मिलाकर बनाया गया है।
खास मजेदार बात यह है कि भाजपा कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों के अलावा सुरेंद्र सिंह सिदार भी तमनार ब्लाक के रहने वाले हैं। ऐसे में तमनार ब्लाक के वोटो में बंटवारा होने की प्रबल संभावना बन सकती है। जिसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है। साथ ही लैलूंगा ब्लॉक के वोट पर खूब माथापच्ची की स्थिति बन सकती है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि इस ब्लॉक से विधायक चक्रधर सिंह सिदार और पूर्व विधायक हृदय राम राठिया आते हैं। जिनकी प्रबल दावेदारी के बाद भी उन्हें इस बार टिकट नहीं मिला। जिससे भीतरधात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। दोनों ही स्थिति में कांग्रेस को नुकसान हो सकती है। अब कांग्रेस डैमेज कंट्रोल के लिए क्या रणनीति बनाती है यह तो बाद में ही पता चल पाएगा। इस तरह मौजूदा हालात में कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए चिंताजनक की स्थिति निर्मित होती दिख रही है। भाजपा के लिए एक तरफ परिवार वादी राजनीति के विरोध में फूटने वाले आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है। वहीं कांग्रेस में फूटने वाले बगावती सुर को साधने की चिंता खड़ी हो सकती है।
गोंड़ समाज की बड़ी आबादी पर सबकी नजर
लैलूंगा सीट में गोंड़ समाज का बड़ा वोट बैंक है। जिसमें से एक बड़ा हिस्सा लैलूंगा ब्लॉक में है। राजनीति सूत्रों का कहना है कि लैलूंगा क्षेत्र में गोंड़ समाज की बड़ी आबादी है। कुल आबादी का करीब 45 प्रतिशत गोंड़ समाज से हैं। जिसका 60 प्रतिशत लैलूंगा ब्लॉक में है। 31 प्रतिशत वोट तमनार ब्लाक में और 9 फ़ीसदी गोंड़ समाज का वोट परिसीमन क्षेत्र में बताया जाता है। इस आंकड़े के अलावा ओबीसी वोट बैंक पर सभी की नजर है। भाजपा के अलावा कांग्रेस इसी वोट बैंक पर अपना-अपना दावा ठोकने में लगी है। लेकिन निर्दलीयों की नजर भी इसी पर है। बताया जाता है कि 2018 का चुनाव में कुल 8 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इस बार इसके और बढ़ाने की संभावना है। नामांकन फार्म लेने रोज नए आंकड़े सामने आ रहे हैं। अब तक पांच लोगों ने नामांकन फार्म लिया है। पहले दिन हमर राज पार्टी से अजय कुमार पंकज, गोंगपा से रघुवीर राठिया ने नामांकन फार्म लिया था। आज भाजपा से सुनीति राठिया कांग्रेस से विद्यावती सिदार के अलावा निर्दलीय विश्वनाथ सिदार ने नामांकन फार्म लिया है।
2018 के आंकड़े पर कांग्रेस को भरोसा!
लैलूंगा सीट से 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चक्रधर सिंह सिदार ने 81हजार 770 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। भाजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री सत्यानंद राठिया 57 हजार 287 वोट पाए थे। उस दौरान जनता कांग्रेस से प्रत्याशी रहे हृदय राम राठिया ने खेल बिगाड़ कर 12हजार 195 मत प्राप्त कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने सफलता जरूर पाई थी। कांग्रेस 2018 का चुनाव में मिले 81 हजार 770 वोट को अब भी अपना वोट मान रही है। तो यह कांग्रेस के लिए मुगालते में रहने जैसा हो सकता है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि लैलूंगा ब्लॉक में चक्रधर सिंह सिदार बेहद लोकप्रिय माने जाते हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस बार एंटी इंकमबेसी के असर को कम करने की नीयत से विधायक के टिकट काटकर भाजपा को दोबारा शिकस्त देने की रणनीति पर काम करना बेहतर समझा। कांग्रेस की इस राजनीति का असर किस रूप में सामने आएगा, यह आने वाले वक्त में ही पता चल जाएगा। चर्चा है कि कांग्रेस ने जातीय समीकरण को साधने की मंशा से सिदार समाज की विद्यावती सिदार पर विश्वास जताया है। लेकिन यह भी चर्चा जोरों पर है कि जिला पंचायत के चुनाव में पराजय की सामना कर चुकी विद्यावती सिदार को विधानसभा स्तर पर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की बेहद बड़ी चुनौती हो सकती है। हालांकि लैलूंगा सीट पर सिदार समाज का एक बड़ा वोट बैंक है। लेकिन इसी समाज से निर्दलीय उम्मीदवार होने की भी संभावना है। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी की राह आसान नहीं है। पार्टी किस रणनीति पर काम करेगी यह देखने वाली बात होगी।
चक्रधर-हृदय और सुरेंद्र की तिकड़ी क्या गुल खिलाएगी?
टिकट घोषणा के बाद कांग्रेस में अंदर ही अंदर खिचड़ी पक रही है। विधायक चक्रधर सिंह सिदार ने 2018 के चुनाव में 24 हजार से भी अधिक मतों से जीत दर्ज की थी। इस बार टिकट नहीं मिलने से चक्रधर सिंह सिदार बेहद नाराज हैं, लेकिन स्वभाव बस वे इसे व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। राजनीतिक हल्को में उनकी चुप्पी को लेकर तरह-तरह के कयास भी लग रहे हैं। चर्चा है कि चक्रधर सिंह सिदार अपनी ताकत का एहसास जरूर कर सकते हैं। दूसरी तरफ जनता कांग्रेस से नाता तोडक़र फिर से कांग्रेस का दामन थामने वाले पूर्व विधायक हृदयराम राठिया को पूरा भरोसा था कि उनकी दावेदारी पर पार्टी की मुहर जरूर लगेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिसका उन्हें मलाल तो है। इसी तरह वर्ष 2003 से कांग्रेस से लगातार टिकट की दावेदारी करने वाले सुरेंद्र सिंह सिदार का बगावत तेवर किसी से छिपा नहीं है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि इन तीनों नेताओं की तिगड़ी खूब चर्चा में है।
विद्यावती सिदार को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद तीनों नेता रायपुर पहुंचे थे। जहां कमजोर प्रत्याशी उतारने को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भेंट कर अपनी बात बताई। मतलब साफ है कि तीनों नेता कांग्रेस प्रत्याशी को लेकर गंभीर नहीं होने पर सीट हाथ से जाने की बात साफ तौर पर कह चुके है। साथ ही संगठन में चल रही खींचतान को लेकर भी चिंता जता चुके हैं। बताया जाता है कि ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर तीन अन्य नेताओं की शिकायत कर चक्रधर सिंह सिदार, हृदयराम राठिया और सुरेंद्र सिंह सिदार अपनी मनसा जाता चुके हैं। ऐसे में लगता है कि कांग्रेस प्रत्याशी के आगे की चुनाव लडऩे विरोधी दल के बजाय अपने ही दल के लोगों से हो सकती है, जिसका परिणाम पर भी असर पड़ सकता है।