खरसिया। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक मंचों से स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के दावे गूंजते हैं। सरकारी फाइलों और रिपोर्टों में लाखों-करोड़ों की राशि खर्च दिखा दी जाती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इतनी शर्मनाक है कि योजनाएं केवल कागज़ पर ही चमकती हैं और जनता आज भी अपनी सबसे बुनियादी ज़रूरतों के लिए तरस रही है। इसका ताज़ा और घिनौना उदाहरण है। खरसिया तहसील प्रांगण, जहां रोज़ाना 81 पंचायतों के लोग आते हैं लेकिन उन्हें शौच की सुविधा तक नसीब नहीं है।
महिलाओं की इज़्ज़त पर सबसे बड़ा हमला
ग्रामीण पुरुष और बच्चे तो किसी तरह खुले मैदानों में जाकर काम चला लेते हैं, लेकिन दूर-दराज़ गांवों से आने वाली महिलाएं किस हाल से गुजऱती होंगी, इसकी कल्पना ही रोंगटे खड़े कर देती है। सुबह से शाम तक तहसील परिसर में खड़े रहना और अपनी प्राकृतिक ज़रूरत को दबाए रखना -यह न केवल अमानवीय है, बल्कि महिलाओं की गरिमा पर सीधा हमला है।
3.50 लाख का अधूरा सामुदायिक शौचालय -भ्रष्टाचार का स्मारक
तहसील प्रांगण में ग्राम मदनपुर का सामुदायिक शौचालय लगभग 3.50 लाख की लागत से स्वीकृत हुआ। राशि मनरेगा, 15वें वित्त आयोग और स्वच्छ भारत मिशन से दी गई। निर्माण शुरू हुआ, लेकिन आज वह शौचालय अधूरा खड़ा है। न पानी, न टंकी। अभी ठीक से चालू ही नही हुआ और सभी तरफ गन्दगी का आलम है। यह सिर्फ अधूरा ढांचा नहीं, बल्कि जनता के पैसों की लूट का गंदा पोस्टर है। ग्रामीण सवाल कर रहे हैं। आखिर यह पैसा कहां गया? किसने खाया? किसके संरक्षण में यह धांधली सालों से चल रही है?
अधिकारी मूकदर्शक या मिलीभगत में भागीदार?
सबसे शर्मनाक बात यह है कि तहसील परिसर में रोज़ाना एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, जनपद पंचायत सीईओ, मनरेगा सीओ। और कई आला अधिकारी मौजूद रहते हैं। उनकी आंखों के सामने अधूरा शौचालय खड़ा है। जनता परेशान होकर खुली जगहों में जाने को मजबूर है, लेकिन अधिकारियों की संवेदना मर चुकी है।अगर अधिकारी यह सब देखकर भी चुप हैं, तो साफ है – या तो वे इस भ्रष्टाचार की हिस्सेदारी में शामिल हैं, या फिर जनता के दर्द से उन्हें कोई मतलब ही नहीं।
जनता के सवाल-जवाब कौन देगा?
ग्रामीणों की आवाज़ अब गुस्से में बदल चुकी है। हर कोई यही पूछ रहा है:
जब 3.50 लाख रुपये की राशि स्वीकृत हुई थी तो फिर शौचालय अधूरा क्यों पड़ा है?
3-4 साल से यह निर्माण किसकी छत्रछाया में रुका हुआ है?
क्या जनता के टैक्स का पैसा ऐसे ही खा जाएंगे अफसर और ठेकेदार?
महिलाओं और आम जनता की तकलीफ़ क्या इन अफसरों को दिखती ही नहीं?
स्वच्छ भारत मिशन का मज़ाक बना खरसिया तहसील
एक तरफ़ सरकार कहती है कि देश को ओपन डिफिकेशन फ्री (ओडीएफ) बना दिया गया है, दूसरी तरफ़ तहसील जैसे महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय में ही लोग शौच के लिए खुले में जाने को मजबूर हैं। यह न सिफऱ् सरकारी दावों की पोल खोलता है, बल्कि साफ़ दिखाता है कि योजनाओं की राशि जनता की सुविधा पर खर्च होने के बजाय अफसरों और ठेकेदारों की जेबें भरने में लग रही है।
खरसिया तहसील प्रांगण में अधूरा पड़ा यह शौचालय सिफऱ् एक इमारत नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के सड़ांध और भ्रष्टाचार का आइना है। यह स्मारक है – लापरवाही का, रिश्वतखोरी का और जनता की पीड़ा के प्रति सरकारी बेरुख़ी का। अब सवाल यह है कि जनता कब तक सहन करेगी? अगर जवाबदेही तय नहीं हुई, अगर दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भ्रष्टाचार यूं ही जनता की हक़ की सुविधाएं निगलता रहेगा।
कागज़ पर स्वच्छ भारत-हक़ीक़त में गंदगी और लाचारी
भ्रष्टाचार का प्रतीक 3-4 साल से रुका है शौचालय निर्माण कार्य
