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रायगढ़

धान की फसल को शीथ ब्लाइट रोग से बचाएं- कृषि वैज्ञानिक राजपूत

किसान सतर्क रहकर सही प्रबंधन अपनाकर बचाएं फसल

lochan Gupta
Last updated: September 25, 2025 12:14 am
By lochan Gupta September 25, 2025
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5 Min Read

रायगढ़। जिले के कई ग्रामों में धान की फसल पर शीथ ब्लाइट रोग का प्रकोप सामने आया है। किसानों के स्थानीय बोलचाल में इसे चरपा बीमारी के नाम से जाना जाता है। यह एक तरह का फफूंद जनित रोग है, जो कि राइजोक्टोनिया सोलानी नामक फफूंद से होता है।
कृषि विज्ञान केन्द्र रायगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ.बी.एस राजपूत एवं डॉ.के.एल.पटेल के निर्देशन में वरिष्ठ अनुसंधान सहायक एवं पौध रोग विशेषज्ञ श्री मनोज कुमार साहू ने शीथ ब्लाइट रोग के संबंध में जानकारी देते हुए किसानों को सतर्क रहने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि विभाग के सतत मार्गदर्शन से उचित समय पर सही प्रबंधन अपनाकर धान की फसल को शीथ ब्लाइट रोग से होने वाले भारी नुकसान से बचाया जा सकता है।
यह रोग धान में कंसे निकलने से गभोट की अवस्था तक मुख्य रूप से देखा जाता है। शीथ ब्लाइट, कवक जनित रोगजनक है, जो कि दुनिया भर में धान की फसलों को प्रभावित करने वाली एक प्रमुख रोग है, जिससे उपज में महत्वपूर्ण नुकसान होता है और अनाज की गुणवत्ता कम हो जाता है। यह रोग मुख्य रूप से पत्ती के आवरण और फलकों को निशाना बनाता है, जिससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण और स्वस्थ अनाज पैदा करने की क्षमता बाधित होती है। रोग के प्रारंभ में संक्रमित पौधे के आवरण पर पानी के सतह के ठीक ऊपर अंडाकार या लम्बाकार धब्बे बनते हैं तथा बाद में ये धब्बे भूरे किनारों वाले और बीच से धूसर हो जाते हैं और ये धब्बे आपस में मिलकर बड़े घाव का रूप ले लेते हैं। संक्रमित पौधों के शीथ के धब्बे पर कॉटन जैसे फफूंद भी दिखाई देता है जहां स्क्लेरोशिया छोटे-छोटे दाने भी बनाता है जो कवकनाशी दवाओं के प्रति प्रतिरोध प्रदान करता है, जिससे इसका नियंत्रित करना अधिक कठिन हो जाता है। रोग बढऩे पर पत्तियाँ समय से पहले सूख जाती हैं और दानों के भराव पर सीधा असर पड़ता है। रोग की तीव्र अवस्था में 15-20 दिनों के भीतर पूरी फसल प्रभावित हो सकती है। यदि बीमारी को जल्दी पकड़ लिया जाए और प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जाए, तो उपज हानि को कम किया जा सकता है, संभवत: 5 से 10 प्रतिशत तक। रोग की मध्यम प्रगति के साथ, उपज हानि 20-30 प्रतिशत तक हो सकता है। गंभीर मामलों में जहां रोग अनियंत्रित रूप से फैलता है, उपज का नुकसान विनाशकारी हो सकता है। जो 50 प्रतिशत या उससे भी अधिक तक पहुंच सकता है।
किसानों को सलाह
कृषि विज्ञान केन्द्र ने किसानों को सलाह दी है कि शीथ ब्लाइट रोग की पहचान होते ही तुरंत प्रबंधन करें, ताकि उत्पादन में गिरावट से बचा जा सके। इसके नियंत्रण के लिए नाइट्रोजन का अत्यधिक प्रयोग न करें, पोटाश का संतुलित प्रयोग करें। खेत में पानी का लगातार ठहराव न होने दें। धान के साथ दलहनी या तिलहनी फसलें लें। जैविक उपाय-बीजोपचार एवं मिट्टी उपचार हेतु ट्राईकोडर्मा हरर्जियानम एवं स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस का प्रयोग करें। रासायनिक नियंत्रण के तहत हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत एससी का 2 एम एल प्रति लीटर पानी या प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी का 1 एम एल प्रति लीटर या टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत डब्लू जी एवं ट्राईफ्लासीस्टोरबिन 25 प्रतिशत डब्लू जी का 0.5 ग्रा.प्रति लीटर पानी या थिफ्लुजामाइड 24 प्रतिशत एस सी का 1 एम एल प्रति लीटर में से किसी एक फफूंदनाशी का छिडक़ाव करें।प्रथम छिडक़ाव के 15-20 दिनों के अंतराल में रोग की तीव्रता के आधार पर पुन: किसी अन्य फफूंदनाशी रसायन, जो उपरोक्तानुसार सुझाव किये गए हैं का छिडक़ाव करें। लगातार एक ही फफूंदनाशक का प्रयोग करेंगे तो रोगजनक कवक में प्रतिरोध विकसित हो सकता है, जो पादप रोगों के प्रभावी नियंत्रण को बाधित कर सकता है।

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