NavinKadamNavinKadamNavinKadam
  • HOME
  • छत्तीसगढ़
    • रायगढ़
      • खरसिया
      • पुसौर
      • धरमजयगढ़
    • सारंगढ़
      • बरमकेला
      • बिलाईगढ़
      • भटगांव
    • शक्ति
    • जांजगीर चांपा
    • बिलासपुर
  • क्राइम
  • आम मुद्दे
  • टेक्नोलॉजी
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • Uncategorized
Reading: ‘ महानदी ‘ तथा “करु काल “काव्य -संग्रह में मानवीय संवेदना और सामाजिक जीवन -मूल्य
Share
Font ResizerAa
NavinKadamNavinKadam
Font ResizerAa
  • HOME
  • छत्तीसगढ़
  • क्राइम
  • आम मुद्दे
  • टेक्नोलॉजी
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • Uncategorized
  • HOME
  • छत्तीसगढ़
    • रायगढ़
    • सारंगढ़
    • शक्ति
    • जांजगीर चांपा
    • बिलासपुर
  • क्राइम
  • आम मुद्दे
  • टेक्नोलॉजी
  • देश-विदेश
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • Uncategorized
Follow US
  • Advertise
© 2022 Navin Kadam News Network. . All Rights Reserved.
NavinKadam > Uncategorized > ‘ महानदी ‘ तथा “करु काल “काव्य -संग्रह में मानवीय संवेदना और सामाजिक जीवन -मूल्य
Uncategorized

‘ महानदी ‘ तथा “करु काल “काव्य -संग्रह में मानवीय संवेदना और सामाजिक जीवन -मूल्य

lochan Gupta
Last updated: August 13, 2025 9:04 pm
By lochan Gupta August 13, 2025
Share
18 Min Read

लिंगम चिरंजीव राव
पुस्तक -समीक्षा : समीक्षक -लिंगम चिरंजीव राव (आंध्रप्रदेश):

मीनकेतन प्रधान के  काव्य संग्रह “महानदी” के भाव अत्यंत प्रभावी हैं । कोरोनो काल व उससे पहले और बाद  की चतुर्दिक परिस्थितियों के पराभव से उत्पन्न मनोभावों को संप्रेषित करती  कृति “महानदी” मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक जीवन मूल्यों से आपूरित है ।
कविताओं की  विविधताएँ उनके अंतर्मन की गहन अनुभूति से युक्त हैं । डॉक्टर प्रधान की “महानदी” कृति छत्तीसगढ अंचल की ऐसी साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना है, जिसे महानदी तटवर्ती  द्विवेदीयुगीन साहित्य – साधक   पंडित  लोचन प्रसाद पाण्डेय,छायावाद के प्रणेता पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय  एवं अन्य कवियों की काव्य -परम्परा का शब्द आधार मिला ।जिससे  आज  हिन्दी साहित्य में उनकी पहचान  हैं ।
इस संग्रह में सतहत्तर कविताएँ विभिन्न विषयवस्तु से संबंधित हैं ।संग्रह की अंतिम तीन कविताएँ ‘कुररी’ -एक ,दो,तीन ,पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं ।इसका कारण यह है कि “कुररी के प्रति “ शीर्षक से
मुकुटधर पाण्डेय जी की बहुचर्चित छायावादी प्रवृत्ति की कविता है,जिसका प्रकाशन सरस्वती पत्रिका में जुलाई उन्नीस सौ बीस अंक में हुआ था । यह भी उल्लेखनीय है कि उनके  साहित्य को वर्तमान हिन्दी के क्षेत्र में विमर्श के केन्द्र में लाने का सार्थक प्रयास मीनकेतन प्रधान ने किया है ।जिसमें उनको व्यापक सफलता मिली है ।
इसलिए स्वाभाविक है कि ‘ कुररी ‘ पक्षी को केन्द्र में रखकर आधुनिक परिवेश में नये चिंतन से लिखी गई कविता मीनकेतन जी को उस परंपरा से जोड़ती है ।
संवेदना की उस भूमि को कुररी -एक ,दो,तीन ,रचना के माध्यम से उन्होंने जोड़ा है ।
इसका श्रेय नि:संदेह डॉक्टर प्रधान को जाता है ।अच्छा है इतिहास के पन्ने आगे -पीछे उलटते रहें तो परम्पराओं का पुनरुत्थान  होता रहता है ।
छायावाद के जनक पाण्डेय जी और डॉ प्रधान की उक्त  कविताओं में लगभग सौ वर्षों का अंतराल है ।यद्यपि डॉ.प्रधान की कविताओं का प्रकाशन दो हजार चौबीस में होता है जिसका सृजन वे कोरोना काल दो हजार बीस में कर चुके थे ।जिसका प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी हुआ है ।उनकी  रचना ‘कुररी’ में लोक जीवन का यथार्थ,कोरोनाकालीन कारुणिक भावों का वैश्विक स्वरूप ,मानवीय संवेदना ,सामाजिक -राजनीतिक भावबोध ,वैश्विक युद्ध जनित दुष्परिणाम,मानव मन का पराभव एवं पुनर्स्थापन आदि का समावेश दिखाई देता है। जो आधुनिक संदर्भों में नया चिंतन है ।इसमें अपने समय की बाहरी-भीतरी  सामाजिक सांस्कृतिक ,वैज्ञानिक,तकनीकी आदि परिस्थितियों का प्रभाव भी परिलक्षित होता है ।यही उनका वैशिष्ट्य है । छायावादी कविता से ही नहीं समकालीन कविता के वर्तमान दौर और विमर्शों से  आगे के परिदृश्य को विभिन्न संदर्भों में यह कृति  उकेरती है ।इससे किसी नये काव्य -प्रवाह का संकेत मिलता है ।कविता के शीर्षक ‘कुररी ‘में पाण्डेय जी के शीर्षक से समानता अवश्य है जबकि विषयवस्तु और आधुनिक भावबोध पूरी तरह नवीन  हैं।
लगता है  उस परम्परा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से जानबूझकर ऐसा शीर्षक रखा गया है अन्यथा इसका शीर्षक वे “महानदी “ या अन्य  रख सकते थे जो संग्रह का केन्द्रीय भाव है क्योंकि महानदी है तब कुररी है, कुररी है इसलिए महानदी नहीं ।आज ये कुररी पक्षी भौतिक रूप से महानदी में नहीं  दिखाई देते ।अतीत के स्मृति चित्रों में वर्तमान संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करने में कुररी की प्रतीकात्मकता प्रासंगिक बनी रहेगी ।यही कविता की ताकत है ।
इसे अपने पुरोधा के प्रति कवि का एक सम्मान भाव भी कहा जा सकता है तथा काव्य -परम्परा के रूप में अग्रिम विकास भी ।वे अपनी अन्य रचनाओं में भी इस भाव को  जगह -जगह व्यक्त करते हैं ।
“छायावाद के सौ वर्ष और मुकुटधर “पुस्तक के मूल में देखें तो डॉक्टर प्रधान की यही भावना भीतर ही भीतर उन्हें प्रेरित कर रही थी ,ऐसा लगता है । उनके द्वारा सम्पादित साढ़े आठ सौ पेज के इस वृहत् ग्रंथ  ने पाण्डेय जी को तत्कालीन ही नहीं आज के साहित्यिक धरातल पर भी  शीर्ष पर ला खड़ा किया है ।
दिनांक अट्ठाईस  उनतीस जुलाई दो हज़ार बीस का उनका अन्तर्राष्ट्रीय ऑनलाइन आयोजन अभूतपूर्व था ।इस विषय पर उक्त ग्रंथ  से वृहत् और प्रामाणिक शोध परक ग्रंथ अभी तक देखने को नहीं मिला  ।देश -विदेश के विद्वानों ने अकादमिक दृष्टि  से इस ग्रंथ को महत्वपूर्ण माना है ।इससे छायावाद के प्रवर्तक सम्बंधी मतभेदों का लगभग पटाक्षेप हो चुका है ।जिसे बहुत पहले हो जाना था।इस ग्रंथ का विमोचन बाइस -तेईस फरवरी  दो हजार तेईस को रायगढ़ के एक अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन में हुआ था ।जहाँ आंध्रप्रदेश से जाकर मैं व्याख्यान के लिए सम्मिलित हुआ था।यह मेरे लिए गौरव का क्षण था ।
“कुररी “ कविता के संबंध में कहा जा सकता है कि अकादमिक दृष्टि से शोध कर्ता इसका तुलनात्मक विवेचन कर सकते हैं ।
दोनों कवियों की रचनाओं का अपने -अपने समय के अनुसार अलग -अलग  वैशिष्ट्य है ।हर रचनाकार का अपना पृथक महत्त्व होता है ।
डॉ.मीनकेतन प्रधान की कृति  ‘ महानदी ‘ और ‘ करुकाल ‘ का
विमोचन विश्व पुस्तक मेला नई दिल्ली में सात फरवरी दो हजार पचीस को हुआ था ।उल्लेखनीय बात यह  कि केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय भारत सरकार के सहायक निदेशक द्वय डॉ.दीपक पाण्डेय और डॉ.नूतन पाण्डेय जी ने इसका विमोचन सम्पन्न कराया ,जिसमें देश के अन्य प्रतिष्ठित साहित्यकारों की  गरिमामयी उपस्थिति थी ।
उक्त दोनों पुस्तकों की रिपोर्टिंग और समीक्षाओं का प्रकाशन अन्तर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में हुआ है ।इस पर बने आडियो की लोकप्रियता और उपयोगिता शोधकर्ताओं के लिए अधिक है ।
एक आडियो में महानदी संग्रह की समीक्षा के साथ विशेष रूप से
कुररी — एक,दो,तीन का अच्छा विश्लेषण हुआ है ।
”कुररी “ शीर्षक से पाठक और श्रोताओं का ध्यान पांडेय जी की कविता की ओर जाता है ।उसी महानदी और उसी कुररी को उसी महानदी तट का कवि उसी तरह से बचपन से देखता रहा है,वह पांडेय जी का सानिध्य भी प्राप्त करता रहा है,जैसे कि पुस्तक की भूमिका में इसकी  विस्तृत चर्चा है ।इसका ज़िक्र डॉ.प्रधान अपने वृहत्  सम्पादित ग्रंथ “छायावाद के सौ वर्ष और मुकुटधर पाण्डेय “ में भी करते हैं ।तो स्वाभाविक है कि जब महानदी उनकी चेतना में है तो “कुररी “पक्षी तो रहेगा ही ।कृति में केवल कुररी नहीं है,महानदी में रहने पलने वाले अन्य पशु ,पक्षी, किनारे के पेड़ पौधे,गांव  सहित कवि मीनकेतन के बचपन से युवाकाल तक का सारा परिवेश विद्यमान है ।महानदी का बदला हुआ रूप और कुछ वर्षों पहले बना नया पुल भी है ।हो सकता है कि मुकुटधर जी की कविता “कुररी के प्रति “ से प्रेरित होकर उन्होंने इसका शीर्षक “कुररी “ रखा हो ।  जो समकालीन हिन्दी कविता के आगे का मार्ग भी  ‘करु काल’ के नाम से प्रशस्त करता है ,यह कहना  अनुचित नहीं होगा। संग्रह की विस्तृत भूमिका में इसका उल्लेख किया गया है ।
डॉक्टर प्रधान की कविता की सम्वेदना तो पक्षी के भारत भूमि में प्रवास से भी दूर उस किसी भी देश के प्रवास तक ले जाती है जहाँ कोरोना की कारुणिकता के साथ युद्ध जनित और प्राकृतिक आपदा की कारुणिकता भी है।यह नये भाव बोध की इस कविता के  भाव विस्तार का प्रमाण है ।यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि मीनकेतन प्रधान की “कुररी कविता”जिसकी संवेदना को वे “करु काल “ शब्द संज्ञा से अभिहित करते हैं,वस्तुतः एक नये साहित्यिक युग के सूत्रपात का संकेत है ।
जैसा कि डॉ .बेठियार सिंह साहू ने एक अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका “गर्भनाल “-(भोपाल -अंक मार्च दो हजार पचीस )में प्रकाशित अपने आलेख में लिखा भी है कि रायगढ़ अंचल को हिन्दी साहित्य के एक और नामकरण “करु काल “ का गौरव आगे प्राप्त हो सकता है ।ध्यान देने की बात है कि पद्मश्री मुकुटधर पांडेय जी ने “छायावाद “ नामकरण उन्नीस सौ बीस में किया था और यह नाम हिन्दी साहित्य में सर्व स्वीकृत भी हुआ और आज प्रचलित है ।मीनकेतन प्रधान ने आज की कविता (कोरोनाकालीन भाव बोध)के संदर्भ में “करु काल “ नामकरण किया है ।इसके भी मूल में कहीं न कहीं ‘छायावाद ‘नामकरण की अन्तर्प्रेरणा रही होगी  । कवि प्रधान ने ‘करु काल “ अपने संग्रह का शीर्षक रखा है । ‘
उन्होंने इस विषयवस्तु पर लगभग चालीस -पचास कविताएँ लिख कर  इस नामकरण का औचित्य भी प्रतिपादित किया है ।जो सर्वथा युक्ति संगत है ।आने वाले समय में  ‘ करु ‘शब्द के प्रचलित और ध्वन्यात्मक अर्थ – करुणा,करुन ,करुता ,कड़वाहट,शोक ,विषाद ( दुःख एवं क्षोभ जनित )आदि भावबोध पर यदि हिंदी पाठकों और विद्वानों द्वारा प्रयुक्ति होती है तो यह गौरव की बात होगी ।
मीनकेतन प्रधान जी की काव्य कृति “महानदी “ में  सतहत्तर कविताएँ तथा ‘करु काल ‘ में   सत्तावन कविताएँ विविध विषय वस्तु से संबंधित हैं ।इन कविताओं का केंद्र बिन्दु
महानदी और उससे उपजी संवेदना ही है । जिसके  इर्द-गिर्द  विशेषकर ग्रामीण जीवन की लोक चेतना क्रियाशील है ।नदी
जो उस क्षेत्र की जीवन दायिनी की तरह है ,इस क्षेत्र को उर्वरा भी बनाती है । वह उस क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक ,सांस्कृतिक आदि हर उस विभिन्न आयामों को परिलक्षित करने में सक्षम होती है जिससे उस क्षेत्र के चौमुखी विकास के साथ उस नदी का अस्तित्व भी पंचतत्वों के एक तत्व का आभास कराती है। साहित्य में अगर नदी को विषयवस्तु मान लें तो उसका  जल स्रोत जितना गहरा और जीवन दायिनी होता है ,उतना ही उसमें उर्ध्वगामी सांस्कृतिक विस्तार रहता है । नदी घाटी सभ्यता की अपनी विशिष्टता होती है ।भारत में गंगा,यमुना ,सरस्वती आदि नदियों की सांस्कृतिक परंपरा पर प्राचीन काल से अनेक साहित्य मनीषी महानतम रचनाएँ करते रहे हैं ।जो एक दूसरे का अनुकरण नहीं बल्कि पीढ़ियों को परम्पराओं का हस्तांतरण है । इन भूभागों की सभ्यता सबसे प्राचीनतम होने के कई प्रमाण हैं ।कवि मीनकेतन प्रधान उससे अछूते नहीं हैं ।संग्रह “महानदी “की भूमिका में उन्होंने महानदी की महत्ता पर विस्तार से लिखा भी है ।उससे जुड़े दुःख-सुख दोनों का चित्रण वे अपनी रचनाओं में करते हैं ।उनके लिए महानदी गंगोत्री की तरह है ।
“महानदी “ संग्रह के अलावा उनके अन्य संग्रहों में भी महानदी से संबंधित  कई कविताएँ अलग-अलग संदर्भों में हैं ।यह विस्तृत विवेचन का विषय है ।
इस परंपरा और  कल्पना का जो संवहन  इस अंचल के अन्य कवियों ने अपनी -अपनी रचनाओं के माध्यम से किया  है,वह अन्यतम है ।जो महानदी घाटी संस्कृति -साहित्य के रुप में वृहत् शोध का विषय है ।
डॉ. मीन केतन प्रधान जी  की “महानदी “ कृति
केवल जल -धाराओं का भौतिक रूप नहीं है,
यह जीवन और सामाजिक चेतना की भी नदी है
जहाँ उत्थान -पतन की अनेक धाराएँ बह रही हैं ।प्रकृति की विपदा से संबंधित ये पंक्तियाँ भी देखिए-
“बारिश में भयंकर बाढ़
बहा ले जाती सब कुछ
गाँव-दर -गाँव
ऊभ-चूभ
नज़र भर
यहाँ से वहाँ तक
पानी ही पानी
गरजती -नाचतीं धाराएँ
पगलायीं सी।”
उन्होंने  महानदी शीर्षक कविता तथा इसी संग्रह में पिता से सम्बन्धित कई कविताओं में करूणा के भावों की  अभिव्यक्ति को  जो ऊँचाई दी है,उसमें सारा जन मानस समाहित हो जाता है । इन कविताओं  में एक ओर जहाँ अत्यंत ही मार्मिकता  है वहीं दूसरी ओर राजनैतिक -सामाजिक विसंगतियों का  कसैला यथार्थ भी है ।
“ जुगाड़-दस “ कविता में राजनैतिक विसंगतियों के  चित्र देखिए-
“पंचायत से संसद तक
समझ में आता
कौन
कितने गहरे पानी में है ?
मगर उनकी गहराई नापने
जनता के पास
कोई जुगाड़ नहीं होता ।”
इस संकलन में विविध विषयों पर कविताओं का फलक बहुत ही विस्तृत है। संग्रह की सतहत्तर कविताएँ महानदी के  प्रवाह की संवेदना, दायित्वबोध, मानवीय मूल्यों के प्रति सहज सतर्कता से सृजित हैं।
उनकी कविताओं में सामाजिक,राजनीतिक और वर्तमान तकनीकी युग के भी विभिन्न परिदृश्य हैं ।
“ठग “ कविता की इन पंक्तियों में देखिए आज के ऑनलाइन सिस्टम की ठगी का नमूना —-
“वह अच्छा दिखता
मीठा बोलता
हिसाब-किताब पक्का
कब ठग देगा
नहीं पता
चेहरे बदले बिना,
अब तो
उसकी भी जरूरत नहीं
‘हैलो’ बोलो
बैंक अकाउंट साफ
और भी नायाब तरीके
बिना कुछ किए
एक से एक डकैती ‘ऑनलाइन’
हवा में उड़ती ।”
वर्तमान समय के डिजीटल युग को वे अभूतपूर्व  विकास के रूप में देखते तो हैं किन्तु उसके दुरूपयोग से उपजे परिणामों को भी दर्शाते हैं।स्थिति यह है कि लोगों के बात करने के प्रयास से ही बैंक अकाउंट का खाली हो जाना ,समाज को किस तरह एक दूसरे से दूर करने की प्रवृत्ति है ।जो साधन जीवन के लिए उपयोगी है, उसका ऐसा दुरूपयोग हो रहा है कि
समाज में अमानवीयता बढ़ रही है ।जबकि विज्ञान और तकनीकी विकास से जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में हमारे वैज्ञानिक अपना जीवन खपा दे रहे हैं । इन रचनाओं में दुनिया की  गति के साथ भारत की प्रगति की कामना करता है कवि ।
इसी तरह उनकी “मकसद” कविता की ये पंक्तियाँ भी दृष्टव्य हैं—-
“सफर में
आते-जाते
वक्त गुजर जाता
रास्ता सबका
अलग-अलग होता
चले साथ होते
कोई आगे
कोई पीछे होता
मकसद सबका
अपना-अपना होता ।”
जीवन की कड़वी  सच्चाई को बयान करती ये पंक्तियाँ हैं ।आज भौतिकता के दबाव में व्यक्ति कितना आत्म केंद्रित होता जा रहा है,इस कविता से स्पष्ट है ।
मैं  श्रद्धेय शिवमंगल सिंह  सुमन जी से लिए गये साक्षात्कार का यह अंश ‘साक्षात्कार ‘ पत्रिका अंक सितंबर , उन्नीस सौ तिरियानव्वे से उद्धृत कर रहा हूँ।सुमन जी से प्रश्न किया गया –
‘ आपने अपनी एक कविता में लिखा है-मैं कालीदास की शेष कथा कहता हूँ। ‘
इसके जवाब में सुमन जी ने कहा—
“ कालिदास मेरे लिए एक व्यक्ति ,एक सर्जक ही नहीं, एक परंपरा भी हैं । एक व्यक्ति या एक सर्जक चाहे वह कितना ही बड़ा और प्रतिभाशाली क्यों न हो , अपने सम्पूर्ण समय को शब्द दे नहीं  पाता है । विपुल और सारे महत्वपूर्ण लेखन के बाद भी बहुत कुछ छूट ही जाता है। उस छूटे हुए को अगली पीढ़ी  या उसके समकालीन व्यक्त करने की कोशिश करते है। इसी से परंपरा निर्मित होती है। मैं भी कालीदास की ही परंपरा की एक कड़ी हूँ।”
इसी तरह डॉ .मीनकेतन प्रधान जी को मैं मुकुटधर पाण्डेय जी की निर्मित परंपरा की अगली कड़ी मानता हूँ।
आखिर में यह कि हिन्दी भाषा -साहित्य के विकास की दिशा में स्वयं तथा अन्य अनेक सहयात्रियों सहित विगत कई वर्षों से डॉ.मीनकेतन प्रधान जी समर्पित हैं । उनकी इस तपस्या से हिन्दी जगत् समृद्ध हो रहा है ।“महानदी” और “ करु काल “ रचना के लिए कवि को बधाई ।

समीक्षक-
लिंगम चिरंजीव राव

You Might Also Like

सर्पदंश से किशोर की मौत

सीआईएसएफ ने भारत के हाईब्रिड बंदरगाह सुरक्षा मॉडल को निर्मित करने की शुरुआत की

जनसुनवाई में कार्यकर्ताओं ने डिप्टी सीएम से की अफसरों की शिकायत, डिप्टी सीएम ने कॉल करके दिये निर्देश

रेवंत रेड्डी होंगे तेलंगाना के अगले मुख्यमंत्री

मां-बेटी की हत्या, घर के बरामदे में मिली लाश

Share This Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp Telegram Email
Previous Article स्वच्छता में प्रथम रैंक लाने वाले नगरीय निकाय को मिलेगा एक करोड़ का पुरस्कार
Next Article सूपा मंडल भाजपा ने निकाली भव्य तिरंगा यात्रा, भरा देशभक्ति का जज्बा

खबरें और भी है....

सीएम साय पहुंचे बनोरा अघोर गुरुपीठ, गुरु दर्शन कर लिया आशीर्वाद
धर्म व सम्प्रदाय पर गलत टिप्पणी करने वाले अमित बघेल गिरफ्तार
खाना बनाने के विवाद पर पत्नी की हत्या
10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षा के प्रश्न पत्र पैटर्न में बदलाव
शादीशुदा-महिला से चाकू की नोक पर रेप

Popular Posts

सीएम साय पहुंचे बनोरा अघोर गुरुपीठ, गुरु दर्शन कर लिया आशीर्वाद
डेंगू से निपटने निगम और स्वास्थ्य की टीम फील्ड पर,पिछले 5 साल के मुकाबले इस साल केसेस कम, फिर भी सतर्कता जरूरी
जहां रकबे में हुई है वृद्धि पटवारियों से करवायें सत्यापन-कलेक्टर श्रीमती रानू साहू,मांग अनुसार बारदाना उपलब्ध कराने के निर्देश
मेगा हेल्थ कैंप का मिला फायदा, गंभीर एनीमिया से पीड़ित निर्मला को तुरंत मिला इलाज
स्कूल व आंगनबाड़ी के बच्चों का शत-प्रतिशत जारी करें जाति प्रमाण पत्र,कलेक्टर श्रीमती रानू साहू ने बैठक लेकर राजस्व विभाग की कामकाज की समीक्षा

OWNER/PUBLISHER-NAVIN SHARMA

OFFICE ADDRESS
Navin Kadam Office Mini Stadium Complex Shop No.42 Chakradhar Nagar Raigarh Chhattisgarh
CALL INFORMATION
+91 8770613603
+919399276827
Navin_kadam@yahoo.com
©NavinKadam@2022 All Rights Reserved. WEBSITE DESIGN BY ASHWANI SAHU 9770597735
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?