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NavinKadam > रायपुर > प्रदेश की सबसे बड़ी आर्थिक कार्रवाई, डिजिटलाइजेशन के बाद खुलासा
रायपुर

प्रदेश की सबसे बड़ी आर्थिक कार्रवाई, डिजिटलाइजेशन के बाद खुलासा

lochan Gupta
Last updated: August 2, 2025 12:06 am
By lochan Gupta August 2, 2025
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7 Min Read

रायपुर। साल 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन से जब छत्तीसगढ़ बना तो कर्मचारियों का बंटवारा हुआ। उसी समय दोनों प्रदेशों ने कर्मचारियों की पेंशन दायित्वों को भी आपस में बांटा गया। तय हुआ कि जो कर्मचारी छत्तीसगढ़ आए हैं, जब वे रिटायर होंगे तो उनकी अविभाजित मध्यप्रदेश में जितने साल की सेवा होगी उसकी पेंशन में 73.38 फीसदी हिस्सा मध्यप्रदेश देगा बाकी 26.62 प्रतिशत छत्तीसगढ़ दिया करेगा। बाकी जितनी सेवा छत्तीसगढ़ में की है, उसका पूरा छत्तीसगढ़ सरकार देगी। यह भी तय हुआ कि रिटायर होने पर कर्मचारी की पहली पेंशन कोषालय के माध्यम से मिलेगी, बाकी बैंक के माध्यम से दी जाएगी। कर्मचारियों को पेंशन मिलने के बाद बैंक को राशि छत्तीसगढ़ सरकार देगी। मप्र अपने हिस्से की राशि महालेखाकार के माध्यम से छत्तीसगढ़ कोष को भेज दिया करेगा। भाजपा सरकार बनने के बाद वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विभागीय समीक्षा की तो उन्होंने?पेंशनर्स रिकॉर्डस को डिजिटलाइज करने का निर्देश दिया। जब रिकॉर्डस चेक करना शुरू हुए तो पहली बार यह पकड़ में आया कि मध्यप्रदेश तो अपना हिस्सा छत्तीसगढ़ को भेज ही नहीं रहा है। यह बात कभी कोई पकड़ नहीं पाया इसलिए इससे जुड़े पत्राचार भी नहीं मिले। पहली बार जब यह गलती पकड़ में आई तो छत्तीसगढ़ शासन ने मध्यप्रदेश सरकार को पत्र लिख 2024-25 के लिए पेंशन का अंशदान 1685 करोड़ रुपए देने की मांग की। हाल ही में यह राशि मप्र सरकार ने छत्तीसगढ़ कोष में जमा करवा दी है। विभाग की मानें तो अब हर साल इतनी राशि तो छत्तीसगढ़ सरकार की बचेगी।
1986- मध्यप्रदेश में पेंशन संचालनालय बनाया गया। इससे पहले महालेखाकार सीधे सभी कर्मचारियों की पेंशन जारी करता था। 1991- पांच साल तक महालेखाकार और संचालनालय बंटवारा कर पेंशन देते रहे। 1992 में सभी कर्मचारी संचालनालय के पास आ गए। 1996- रायपुर, बिलासपुर में ज्वाइंट डायरेक्टर नियुक्त हुए और यहीं से पेंशन पेमेंट ऑर्डर (पीपीओ) जारी होने लगे। छत्तीसगढ़ बनने पर दुर्ग, सरगुजा और बस्तर में भी जेडी ऑफिस बने। 2011- बैंकों में सेंट्रलाइज सिस्टम चालू हुआ। छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों की पेंशन के लिए 8 सरकारी बैंकों को अनुमति दी गई।
2018: छत्तीसगढ़ में आभार पोर्टल की शुरुआत हुई। इसके बाद सभी पेंशन के प्रकरण ऑनलाइन होने लगे। पहले के प्रकरण भी डिजिटाइज किए गए। 2012 में जब बैंकों को सेंट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेंटर बनाया गया तो कर्मचारियों को सीधा नाता संचालनालय से नहीं रहा। पेंशन संचालनालय केवल पहली पेंशन कर्मचारियों को देता था और दूसरी बैंक से सीधे आने लगी। 9 सरकारी बैंकों को सेंटर बनाया गया उन सभी की मुख्य ब्रांच भोपाल में थी। 80 प्रतिशत कर्मचारियों का खाता एसबीआई में है। अब बैंकों को एक शीट बनानी थी जिसमें दोनों प्रदेशों के शेयर का जिक्र होता, लेकिन बैंकों ने ऐसा नहीं किया। छत्तीसगढ़ सरकार पूरी पेंशन की राशि भेजती और वह सीधे पेंशनर्स को ट्रांसफर कर दी जाती। 2022 में इन बैंकों के सेंटर रायपुर में आए। जांच में जब बैंकों से शीट मांगी गई तो उनके पास नहीं मिली। यहीं से गलती पकड़ में आई।
रामप्रकाश ने 30 साल नौकरी की। इसमें से 20 साल वे मध्यप्रदेश में रहे। विभाजन के समय छत्तीसगढ़ आ गए। जब रिटायर हुए तो उनकी पेंशन 30 हजार रुपए तय हुई। इसमें से 21,996 रुपए मध्यप्रदेश से आने थे और बाकी 8,004 रुपए छत्तीसगढ़ कोष से जाना था। लेकिन पूरी 30 हजार पेंशन छत्तीसगढ़ सरकार बैंक को देती गई और मध्यप्रदेश से अंशदान आया ही नहीं।
अब बैंकों में सुधार होने के बाद मध्यप्रदेश सरकार को हर महीने उनके अंशदान की राशि की डिमांड भेज दी जा रही है। अप्रैल से लेकर जून तक के तीन महीने की पेंशन में ही छत्तीसगढ़ सरकार को 600 करोड़ रुपए की बचत हुई है। छत्तीसगढ़ पेंशन संचालनालय की जांच टीम अभी पुराने सालों का रिकॉर्ड भी चेक रही है। सूत्रों की मानें तो मध्यप्रदेश से करीब 25000 करोड़ की देनदारी निकल सकती है। पेंशन संचालनालय के संचालक रितेश अग्रवाल बताते हैं कि हमें डेटा को डिजिटलाइज कर इस गलती को पकडऩे में चार महीने लग गए। पहले करीब 1.4 लाख लिगेसी ऑफलाइन पेंशन भुगतान आदेशों (पीपीओ) का स्कैनिंग और डिजिटाइजेशन किया गया। ये रिकॉर्ड, 2000 में राज्य विभाजन के बाद मैनुअल रजिस्टरों, जिला कोषागारों और 9 बैंकों (अब 8) के अभिलेखागारों में बिखरे थे। हमने दोनों राज्यों के बीच तय हुए पेंशन अनुपात मेंं एकीकृत डेटाबेस बनाया। हर महीने 1.25-1.50 लाख पीपीओ के लेनदेन को अनुपात में बांटकर समझना चुनौतीपूर्ण था।
हमने डेटा को सरल करने में एआई तकनीक का उपयोग किया। बैंकों ने 2011-12 से लेकर 2024-25 तक के डेटा को पेंशन के अनुपात में बांटकर तैयार किया गया। इसके बाद सहायक खाता बही संशोधित की गई और इसे महालेखाकार कार्यालयों ने सत्यापित किया। अब हर महीने 150 से 200 करोड़ रुपए की स्थायी बचत सरकार को होगी।
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि इच्छाशक्ति, डेटा और तकनीक का सही प्रयोग हो तो इतिहास भी सुधारा जा सकता है। पेंशन विभाग और संचालनालय का 1685 करोड़ रुपए वापस लाना प्रेरणा स्त्रोत है। इसका छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
कोष लेखा एवं पेंशन विभाग के संचालक रितेश अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और सचिव के सतत मार्गदर्शन एवं संचालनालय, संयुक्त संचालनालय कोषालयों की टीम के अथक परिश्रम से ही यह हो पाया है। बैंक, महालेखाकार और मध्यप्रदेश से समन्वय कर डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से तकनीकी त्रुटि का सुधार कम समय में संभव हुआ।

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