रायगढ़। मानसून की पहली हल्की बूंदाबांदी ने लैलूंगा के बहुचर्चित लैलूंगा-बाकरुमा रोड की असलियत को उजागर कर दिया है। मात्र छह महीने पहले करोड़ो रूपये की लागत से बनी यह सडक़ आज इतनी जर्जर हालत में पहुंच चुकी है कि जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो गई है। डामरीकरण के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर सडक़ पर करोड़ों खर्च कर दिए गए, लेकिन गुणवत्ता नाम की कोई चीज नजर नहीं आ रही।
गांवों को जोडऩे वाली यह प्रमुख सडक़ आज एक जानलेवा रास्ता बन गई है। हल्की बारिश से ही सडक़ पर फिसलन और कीचड़ जमा हो गया है, जिससे दोपहिया वाहन चालकों का गुजरना मुश्किल हो गया है। बाकरुमा, राजपुर, चौरंगा सलखिया, लैलूंगा आने जाने वाले किसान, छात्र और ग्रामीण जान हथेली पर रखकर इस सडक़ से गुजरने को मजबूर हैं। सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल जाने वाले बच्चों और मरीजों को हो रही है।
स्थानीय ग्रामीणों और किसानों ने आरोप लगाया कि सडक़ निर्माण के दौरान घटिया सामग्री का प्रयोग किया गया और पूरी प्रक्रिया में जिम्मेदार अधिकारियों ने आंखें मूंद ली। ‘छह महीने में ही रोड का यह हाल है तो आने वाले दिनों में इससे बड़े हादसे होंगे,’ यह कहना है राजपुर के किसान का, जिनका कहना है कि यह सडक़ अब हादसों की दावत बन गई है।
स्थानीय नागरिकों ने व्यंग्य में कहा कि यह पहचानना मुश्किल है कि सडक़ में गड्ढे हैं या गड्ढों में सडक़। कई जगहों पर गड्ढे इतने गहरे हैं कि दोपहिया वाहन , और छोटी कार पूरी तरह फंस जाएं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि रात के समय इन गड्ढों में गिरकर लोग घायल हो चुके हैं, लेकिन आज तक न तो लोक निर्माण विभाग (च्ॅक्) ने मरम्मत करवाई, न ही किसी अधिकारी ने स्थल निरीक्षण किया।
सडक़ निर्माण के लिए कई किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई थी, लेकिन हैरानी की बात है कि आधे से ज्यादा प्रभावित किसानों को आज तक मुआवजा नहीं मिला है। किसान ने बताया कि उनकी जमीन रोड में चली गई, खेत का रास्ता बंद हो गया, लेकिन आज तक कोई अधिकारी सुनवाई करने नहीं आया। ‘सरकारी तंत्र सिर्फ सडक़ बनाने के नाम पर फोटो खिंचवा लेता है, लेकिन असली पीडि़त को कुछ नहीं मिलता,’ उन्होंने दुख प्रकट किया।
ग्रामीणों ने सीधे तौर पर च्ॅक् विभाग और ठेकेदार पर मिलीभगत कर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि मानक के अनुसार कार्य न कर सिर्फ पैसा लूटा गया। जांच होनी चाहिए कि किस गुणवत्ता की सामग्री लगी और किस अधिकारी ने तकनीकी स्वीकृति दी थी।
इस पूरे मामले में जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी चर्चा का विषय बनी हुई है। जनता पूछ रही है कि जब सडक़ इतनी जल्दी खराब हो गई, तो स्थानीय विधायक और पंचायत प्रतिनिधियों ने अब तक सवाल क्यों नहीं उठाया? क्या उनका ध्यान सिर्फ चुनाव के समय ही जनता पर जाता है?
ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि इस सडक़ निर्माण कार्य की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषी ठेकेदारों व अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही किसानों को तत्काल मुआवजा प्रदान किया जाए ताकि उन्हें दोहरी मार से राहत मिल सके।
लैलूंगा-बाकरुमा रोड न केवल निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि यह सिस्टम की लापरवाही और भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण बन गया है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह सडक़ किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है।
लैलूँगा-बाकारुमा रोड की खुली पोल
6 माह में ही जर्जर, जगह-जगह गड्ढे, किसानों को नहीं मिला मुआवजा
