बिलाईगढ़। तहसील बिलाईगढ़ के अंतर्गत नपं व इसके आस-पास के क्षेत्रों में अवैध रूप से संचालित पत्थर क्रेशर उद्योग स्थानीय निवासियों के लिए गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य के लिए संकट बन चुका है। इन क्रेशर संचालकों द्वारा खुले आम पर्यावरण, खनन और नपा अधिनियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जिसका खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। अवैध क्रेशरों से उडऩे वाली धूल के गुबार ने क्षेत्र की हवा को जहरीला बना दिया है। स्थानीय निवासियों, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों में सांस संबंधी बीमारियाँ जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और आंखों में जलन की समस्याएँ आम हो गई हैं। क्रेशरों से उत्पन्न होने वाला कानफोड़ू शोर ध्वनि प्रदूषण की सभी सीमाओं को लांघ रहा है, जिससे लोगों में तनाव, अनिद्रा और श्रवण संबंधी परेशानियाँ बढ़ रही हैं। धूल की मोटी परत घरों, खेतों और वनस्पतियों पर जम गई है, जिससे कृषि उपज प्रभावित हो रही है, क्षेत्र की हरियाली भी नष्ट हो रही है। भारी वाहनों की अनियंत्रित आवाजाही से सडक़ें जर्जर हो चुकी हैं और दुर्घटनाओं का खतरा भी मंडराते रहता है।
विदित हो कि – अवैध क्रेशर संचालकों द्वारा कई महत्व पूर्ण कानूनों और विनियमों का घोर उल्लंघन किया जा रहा है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण और सुधार के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है। अवैध क्रेशर संचालक इस नियम के विभिन्न प्रावधानों जैसे कि – पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन श्वढ्ढ्रअधिसूचनाओं की अनदेखी करते हैं। वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1981 एवं जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 अधिकांश अवैध क्रेशर बिना छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल सीईसीबी से अनिवार्य स्थापित करने की सहमति ष्टशठ्ठह्यद्गठ्ठह्ल ह्लश श्वह्यह्लड्डड्ढद्यद्बह्यद्ध – ष्टञ्जश्व और संचालित करने की सहमति (ष्टशठ्ठह्यद्गठ्ठह्ल ह्लश ह्रश्चद्गह्म्ड्डह्लद्ग – ष्टञ्जह्र) प्राप्त किए बिना ही संचालित हो रहे हैं। ये धूल उत्सर्जन, ध्वनि प्रदूषण और जल प्रदूषण के निर्धारित मानकों का पालन नहीं करते। खनन और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 तथा छत्तीसगढ़ गौण खनिज नियम यदि क्रेशर संचालक अवैध रूप से पत्थरों का खनन कर रहे हैं, तो वे इन खनन कानूनों का भी उल्लंघन कर रहे हैं, जिसके लिए उचित खनन पट्टे और पर्यावरणीय अनुमतियाँ आवश्यक हैं।
ज्ञातव्य हो कि – छग नपा अधिनियम 1961 नपं सीमाओं के भीतर औद्योगिक गतिविधियों, भूमि उपयोग व सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के संबंध में इस अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन किया जा रहा है। क्रेशरों की स्थापना के लिए निर्धारित ज़ोनिंग नियमों और आबादी क्षेत्र से दूरी के मानकों की भी अवहेलना की जा रही है।
अन्य पर्यावरणीय मानक धूल शमन के उपाय (जैसे पानी का छिडक़ाव, विंड ब्रेकर दीवारें, हरित पट्टी का विकास) और अपशिष्ट निपटान के उचित तरीकों का पालन न करना भी आम है।
प्रशासनिक उदासीनता और कार्यवाही की मांग सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि – संबंधित विभाग – नपं बिलाईगढ़, जिला प्रशासन, छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल और खनिज विभाग – इस गंभीर समस्या पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे रहे हैं। स्थानीय नागरिकों द्वारा बार-बार शिकायतें करने के बावजूद, इन अवैध इकाइयों के खिलाफ कोई ठोस और प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा रही है। यह समय की मांग है कि – प्रशासन अपनी चुप्पी तोड़े और एक संयुक्त जांच दल गठित कर बिलाईगढ़ क्षेत्र में संचालित सभी पत्थर क्रेशरों की गहन जांच करे। जो भी इकाइयां अवैध रूप से या निर्धारित मानकों का उल्लंघन करते हुए पाई जाएं उन्हें तत्काल बंद किया जाए और संचालकों के विरुद्ध नियमों के तहत कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए। जनस्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए यह नितांत आवश्यक है। यदि शीघ्र ही इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है, जिस का दीर्घकालिक दुष्प्रभाव इस क्षेत्र की जनता और पर्यावरण को झेलना पड़ेगा।
अवैध क्रेशरों का कहर नियमों की अनदेखी, लोगों के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर मंडरा रहा संकट
