सारंगढ़। ग्राम पंचायत हिर्री में बहुत ही धूमधाम से मनाया गया भोजली का त्यौहार(पर्व)। यह ग्राम हिर्री में 18 सितंबर 23 सोमवार को मनाया गया, जिसमें गांव के बहुत सारे जनमानसों द्वारा काफी संख्या में उपस्थित होकर यह प्राचीन पर्व अथवा त्यौहार मनाया गया तथा इसमें जिसकी भी भोजली की उपज सबसे ज्यादा और अच्छी रही उसको पुरस्कृत भी किया गया। भोजली का त्यौहार मनाने से पूर्व गांव में सभी ग्रामीणों को यह सूचना दिया गया था कि इस बार जिसकी भी भोजली सबसे ज्यादा, अच्छी, मनमोहक रहेगी उसको पुरस्कार स्वरूप इनाम दिया जाएगा और गांव में विधिवत छगकी परंपरागत प्राचीन वाद्य यंत्रों जैसे मांदार खंझनी इत्यादि को बजाते और लोकगीत गाते हुए भोजली यात्रा करते हुए पूरे गांव में विधिवत घूमाते हुए तालाब में विसर्जित कर कार्यक्रम संपन्न किया गया। जिसमें गांव की सभी महिला ने भाग लिया एवं बड़ी संख्या और तादाद में गांव के बड़े बुजुर्ग भी उपस्थित रहे साथ ही साथ पंच-सरपंच भी उपस्थित रहे जिन्होंने अंतिम समय में निर्णय कर प्रथम आने वाले तीन लोगों को सम्मान स्वरूप इनाम दिया। यह छग की लोक सांस्कृतिक, परंपराओं की धरोहर है भोजली। छग में इसे पर्व के रूप में मनाया जाता है।
बहुत सारे जाति व जनजाति छग में इसे भोजली त्यौहार के रूप में मनाते आ रहे हैं यह परंपरा, लोक धरोहर तथा लोक संस्कृति है। बहुत सारे लोगों का कहना है कि – यह तब के समय से मनाते आ रहे हैं कि- इस वह भी नहीं जानते हैं अत: यह कहा जा सकता है की यह प्राचीन परंपराओं द्वारा चली आ रही एक पर्व है। भोजली छग में मनाया जाने वाला एक पर्व है जो बहुत सारे जाति और जनजातियों में अलग- अलग प्रकार से मनाया जाता है मान्यता है कि – भोजली को सावन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को घर में टोकरी अथवा किसी पात्र में उगाने के लिए गेहूं के दाने को भीगोकर बोया जाता है, बहुत से लोग इस पर धान भी लगाते हैं, चूंकि धान लगाने का सिद्धांत यह है कि – छग को धान का कटोरा भी कहा जाता है। यहां उसकी फसल एवं पैदावार काफी अच्छी होती है और लोगों की मान्यता और आस्था से भी धान जुड़ा हुआ है धन को बहुत सारे शुभ कामों जैसे पूजा पाठ में भी इसका उपयोग किया जाता है, क्योंकि इसे माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। इसे सात दिन तक विधि-विधान से पूजा अर्चना कर भोजली की सेवा की जाती है तथा हल्दी लगा हुआ पानी भी इसमें डाला जाता है। इसमें भोजली माता की पूजा होती है।? इसलिए इसे भोजली पर्व कहते हैं।
छग में तीजा पर्व एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में मनाया जाता है यह प्राचीन मान्यताओं के हिसाब से बहुत पहले से चली आ रही एक पर्व है, जिसे पूरे भारत में बहुत सारे जगह पर मनाया जाता है और इसे छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व के नाम से जाना जाता है। इसे अन्य लोग तीज के नाम से जानते हैं यह तीजा पर्व छग में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह तीज 18 सितंबर को मनाई गई। इस दिन सुहागन महिलाएं हरतालिका तीज पर अपने पति की लंबी आयु व सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. यह व्रत निर्जला होता है, जिसमें व्रती पानी भी नहीं पीते। इस दिन महिलाएं पूरी तरह से श्रृंगार कर शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। इस तीज का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है।