रायगढ़। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव जी का अपना एक विशिष्ट महत्व है। भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है। भैरव बाबा उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं। भैरव बाबा को काले कुत्ते की सवारी करते हुए दिखाया जाता है। विख्यात ज्योतिषाचार्य व वास्तु विशेषज्ञ डॉ0 सुमंत शर्मा ने बताया कि काल भैरव जयंती का पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है, इसे कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। आज 22 नवंबर 2024 को काल भैरव जयंती की शुरुआत शाम 6 बजकर 7 मिनट पर अष्टमी तिथि से शुरू होगी। और अष्टमी तिथि कल 23 नवंबर की रात्रि 7 बजकर 56 मिनट तक रहेगी। लेकिन भैरों जी की पूजा निशीथ काल, अर्धरात्रि में विशेष फलदायी माना गयी है। अत: आज रात को निशीथ काल मे भैरों जयंती मनाना ही विशेष फलदायी होगा। मान्यता है इस दिन भगवान काल भैरव प्रकट हुए थे। कालभैरव को समय और मृत्यु का देवता कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव का अपमान किया, तो शिव के क्रोध से कालभैरव की उत्पति हुई। कालभैरव को काशी का रक्षक माना जाता है और उनकी पूजा से भय, बुराई और नाकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इस दिन भक्त पूजा-पाठ और व्रत रखते हैं। वहीं तंत्र विद्या सीखने वाले साधक काल भैरव भगवान की विशेष आराधना करते हैं। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा की जाती है। इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भैरव बाबा बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और अपने सभी भक्तो के जीवन से दुख, दरिद्रता, और परेशानी दूर करते हैं।
ज्योतिष शोधकर्ता सुमंत शर्मा जी ने कहा कि इस दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना बहुत शुभ होता है। बाबा भैरवनाथ के मंदिर में दीप जलाएं। उनको पूजा में चने-चिरौंजी, पेड़े, काली उड़द और उड़द से बने मिष्?ठान्न इमरती, दही बड़े, पान, शराब, काला चना, दूध और मेवा का भोग लगाना बहुत लाभकारी माना जाता है इससे भैरव प्रसन्न होते है। जिन भक्तों को सिद्धि प्राप्त करनी हो वे लोग ऐसे मंदिर में उनकी पूजा करें जहां कम लोग जाते हों। लेकिन वे यह कार्य बिना गुरु के मार्गदर्शन के करने की कोशिश बिल्कुल भी ना करें। गृहस्थ लोगों को नहा धोकर, घर के मंदिर को साफ करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके भगवान शिव और कालभैरव की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाना चाहिये। कालभैरव अष्टक, भैरों चालिसा आदि पढ़ें या उनकी स्तुति करें। ‘ओम काल भैरवाय नम:’ मंत्र को 108 बार बोलें। शाम के समय शमी वृक्ष के नीचे, सरसों के तेल का दीपक लगाकर 21 बेल पत्रों पर चंदन से ‘ ओम नम: शिवाय‘ लिखें और फिर इन्हें शिवलिंग पर अर्पित करें। यथाशक्ति ? ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।। मंत्र का जाप करें। प्रसाद का भोग लगाकर काले कुत्ते को भी रोटी दें। ऐसा करने से रोग, भय और सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा समस्त सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है।
आज है काल भैरव जयंती : डॉ. सुमंत शर्मा
परम कृपालु कलयुग के जागृत देवता, काशी कोतवाल है सर्व दु:खनाशक
