अंचल के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कान्हा शास्त्री ने बताया कि काशी के प्रमुख पञ्चांगों में 31 अक्टूबर को लगभग 15:12 बजे अमावस्या का आरम्भ, व 1 नवम्बर को 15:13 बजे समाप्ति हो रही है। अमावस्या का कुल मान लगभग 26 घण्टे प्राप्त हो रहा है।अहोरात्र या तिथि के आठवें भाग को एक याम या एक प्रहर कहते हैं। अत: उपर्युक्त अमावस्या मान के 8 भाग करने पर 26 घण्टे / 8 = 3 घण्टे 25 मिनट एक याम के रूप में प्राप्त हो रहा।अत: सायंकाल लगभग 6:30 से अमावस्या के दर्श भाग का प्रारंभ होगा,जो कि रात्रि लगभग11:10 तक होगा।पुन:अमावस्या के कुहु भाग का आरंभ होकर अगले दिन 1 नवंबर को सायंकाल 5:13 तक व्याप्त रहेगा। दूसरे दिन यानी 1नवम्बर की रात्रि (प्रदोष) में दर्श की प्राप्ति नहीं हो रही है क्योंकि दर्श 1 नवंबर को 11:41 बजे ही समाप्त हो जा रहा है। इसलिए दूसरे दिन 1 नवंबर में न होकर पहले दिन 31 अक्टूबर में ही सुखरात्रि (दीपावली) शास्त्रसम्मत होगी। पहले दिन 31 अक्टूबर के प्रदोषकाल में दर्श का एक घटी से अधिक का योग प्राप्त हो रहा है, जिससे 31 अक्टूबर को ही दीपावली शास्त्रसम्मत होगी। धर्मसिन्धु के अनुसार- अथाश्विनामावास्यायां प्रातरभ्यङ्ग: प्रदोषे दीपदानलक्ष्मीपूजनादि विहितम्। तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकाधिकरात्रिव्यापिनि दर्शे सति न सन्देह:। आश्विन की अमावास्या (अमान्त मास पक्ष से, उत्तरभारत में कार्ति्तक अमावस्या)में प्रात:काल अभ्यंगस्नान, प्रदोष में दीपदान और लक्ष्मीपूजा आदि कहा है। इसमें सूर्योदय को व्याप्त करके और सूर्यास्त के बाद रात्रि में एक घटी से अधिक दर्श हो तो उस दिन दीपावली होने में कोई संदेह नहीं है। राजमार्तण्ड के अनुसार – दण्डैकंरजनी प्रदोषसमये दर्शो यता संस्पृशेत्।कर्त्तव्या सुखरात्रिकात्र विधिना दर्शाद्यभावे तदा।।पूज्या चाब्जधरा सदैव च तिथि: सैवाहनि प्राप्यते। कार्या भूतविमिश्रिता जगुरिति व्यासादिगर्गादय:। यदि रात्रि को प्रदोष के समय एक दण्ड (घटी) भी दर्श का स्पर्श हो रहा हो, तो उस दिन रात्रि में दर्श आदि के अभाव में भी विधिपूर्वक सुखरात्रि करे। लक्ष्मी की पूजा सदैव उसी दिन करनी चाहिए जिस दिन प्रदोषव्यापिनी तिथि (दर्श) की प्राप्ति होती हो, यह चतुर्दशी मिश्रित अमावस्या में भी करनी चाहिए ऐसा व्यास,गर्ग आदि ऋ षियों का कथन है। अत: 31/10/2024 दिन गुरुवार को ही मनाया जाना शास्त्रसम्मत और श्रेयस्कर होगा।
जानें कहां होती है गड़बड़ी
तिथियों की गणना के लिए काशी या फिर उज्जैन के पंचांग की ही मान्यता है। अब कई जगहों पर लोग ऑनलाइन पंचांग या अन्य पंचांग से तिथियों की गणना कर लेते हैं। काशी या उज्जैन के पंचांग और अन्य दूसरे पंचांगों में तिथियों के प्रारंभ एवं समापन के समय में अंतर होता है, जिसकी वजह से त्योहारों की तारीखों को लेकर दुविधा की स्थिति पैदा हो जाती है। उन पंचांग में स्थान के अनुसार सूर्योदय की मानक गणना बदल जाती है, जिससे यह समस्या उत्पन्न होती है। हर शहर या स्थान के सूर्योदय काल में अंतर होता है। जब भी आपको व्रत और त्योहार के लिए तिथि देखनी हो तो काशी या उज्जैन के पंचांग को देखें।
दीपावली पूजन के शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजन शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 12 मिनट से 07 बजकर 43 मिनट तक प्रदोष काल रहेगा। लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 05 बजकर 12 मिनट से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा आप 31 अक्टूबर को रात 10:30 बजे तक कर सकते हैं।
दीपावली 31 अक्टूबर को मनाना ही शास्त्रसम्मत : पं.कान्हा शास्त्री
