रायगढ़। छत्तीसगढ़ में इसी साल के आखिर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी माहौल तेजी से गहराता जा रहा है। अगर राजनैतिक दलों का नेतृत्व चुनाव को लेकर अपने रणनीति और उम्मीदवारों के चयन प्रक्रिया में जुटा हुआ है तो वहीं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी-अपनी पार्टी से उम्मीदवारी का दावा करने वाले दावेदार भी अपने-अपने गोटा-गणित में उलझे हुए हैं। प्रत्याशियों के चयन को लेकर यह एक परंपरा सी हो गई है कि अंततः प्रत्याशियों का चयन पार्टियों के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा ही किया जाता है उससे पहले उम्मीदवारी के दावेदार राज्य की राजधानी से लेकर दिल्ली दरबार तक आवाजाही करते रहते हैं।
कुछ यही स्थिति छत्तीसगढ़ के पूर्वी सीमांत पर स्थित रायगढ़ जिले की भी है। हालांकि राज्य के विपक्षी दल भाजपा ने जिले की चार सीटों में से दो सीटों पर अपने उम्मीदवारों की अधिकारिक घोषणा कर दी है, लेकिन दो सीट अभी भी बचे हुए हैं। कांग्रेस की ओर से अभी तक किसी भी सीट से उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है। राजनीति के जानकारों का यह कहना है कि जिस तरह जिले के खरसिया और धरमजयगढ़ सीट से भारतीय जनता पार्टी ने दो सर्वथा नये चेहरों को अपना उम्मीदवार घोषित किया है उसी से यह भी कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा ही नहीं कांग्रेस को भी रायगढ़ जिले की सीटों के लिये नये चेहरों की तलाश है। जहां तक रायगढ़ सीट का सवाल है यहां दोनों ही पार्टियों में दावेदारों की लम्बी कतार हैं। जिनमें कुछ नये चेहरे भी शामिल हैं। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में रायगढ़ सीट पर अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी और प्रकाश नायक रायगढ़ के विधायक चुने गये थे जबकि भाजपा प्रत्याशी रोशनलाल अग्रवाल को अपनी ही पार्टी में हुई बगावत की वजह से हार का सामना करना पड़ा था। इस बार उनके पुत्र गौतम अग्रवाल रायगढ़ सीट के दावेदारों की कतार में शामिल हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में गौतम के पक्ष में एक सहानुभूति लहर भी बह रही है। ऐसी परिस्थितियों में अगर भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व गौतम के दावे पर अपनी मुहर लगा दे तो आश्चर्य नहीं होगा जबकि कांग्रेस में शामिल नये चेहरों में एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसे चुनावी राजनीति के लिहाज से प्रभावशाली माना जाये। तब हो सकता है कि कांग्रेस नेतृत्व मजबूरी में मौजूदा विधायक प्रकाश नायक को ही दोहराये।
अब जहां तक अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित लैलूंगा सीट की बात हैं तो वहां पिछले चुनाव में जीत दर्ज करने वाले कांग्रेस प्रत्याशी चक्रधर सिंह सिदार का समुचा कार्यकाल क्षेत्र में हुए विकास कार्यों के लिहाज से काफी पीछे रहा है। विधायक चक्रधर सिंह सिदार ने इस बार भी पार्टी टिकट के लिये दावा जरूर ठोंका है लेकिन उनके खिलाफ भी बड़ी संख्या में दावेदारी सामने आई है जिसे देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व लैलूंगा सीट से सिदार को दोहराने की जोखिम नहीं उठाना चाहेगा और उनकी जगह किसी युवा और नये चेहरे को अगर उम्मीदवार चुना जाता है तो अचरज जैसी बात नहीं होगी। इसी सीट से भारतीय जनता पार्टी को भी नये चेहरे की तलाश है। पिछले चुनाव में भाजपा को लैलूंगा सीट से पराजय का सामना करना पड़ा था। हालांकि पराजित प्रत्याशी सत्यानंद राठिया और उनकी पत्नी सुनीति राठिया दोनों ने ही अपनी दावेदारी पेश की है लेकिन बताया जाता है कि जिला स्तर से उम्मीदवारों के नाम के भेजे गये पैनल में राठिया दम्पत्ति का नाम ही नहीं है। इन्हीं सूत्रों के मुताबिक लैलूंगा से जिन दो नामों का पैनल भेजा गया है उसमें भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष सुषमा खलखो के अलावे अरूण राय का नाम है। सुषमा खलखो पिछले बीस वर्षों से भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय रही हैं। उन्होंने इस दौरान उन्हें दी गई जिम्मेदारियों का पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ निर्वहन किया है। बेहद सौम्य, सरल और सुशिक्षित सुषमा खलखो पिछले कई वर्षों से लैलूंगा क्षेत्र में भी पार्टी के कार्यक्रमों को लेकर सक्रिय रही हैं। इसकी तुलना में अरूण राय अपने आप में अजनबी से हो जाते हैं। इसलिये ऐसा माना जा रहा है कि अगर ऐन वक्त पर कोई बड़ा सियासी पेंच न आ जाये तो लैलूंगा सीट से भाजपा प्रत्याशी सुषमा खलखो ही हो सकती है और इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।
अभी जबकि दोनों ही पार्टियों में उम्मीदवारों की चयन की प्रक्रिया अपने प्रारंभिक चरण में ही है इसलिये दांवे के साथ किसी प्रत्याशी के नाम को लेकर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।