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NavinKadam > रायगढ़ > यूनियन का खाता होने के बावजूद क्यों निजी खाते में जुटाई गई चंदे की राशि
रायगढ़

यूनियन का खाता होने के बावजूद क्यों निजी खाते में जुटाई गई चंदे की राशि

मामला मीडिया में आने के बाद एक प्रभावित को डेढ़ साल बाद दी गई बकाया राशि, झूठी जानकारी देकर मीडिया सहित प्रशासन को कर रहे है गुमराह, 10 महीने बाद भी चंदे की राशि को यूनियन के खाते में नही किया गया है ट्रांसफर

lochan Gupta
Last updated: May 31, 2024 12:19 am
By lochan Gupta May 31, 2024
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5 Min Read

रायगढ़। जिला ट्रेलर एसोसिएशन के संरक्षक द्वारा अपने निजी बैक खाते (गूगल/फोन पे) में जरूरतमंद लोगों के सहायतार्थ चंदे द्वारा जुटाई हजारों लाखो रुपए की राशि का विवाद में नई और हैरत कर देने वाली जानकारी सामने आई है जिससे साफ पता चलता है कि एक पूर्व निर्धारित हिडन एजेंडे के तहत चंदा वसूली के पूरे खेल कथित ईमानदार संरक्षक द्वारा अंजाम दिया गया और जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए सदस्यों व अन्य लोगों से जुटाई गई चंदे के भारी भरकम रकम का झोलझाल किया गया है।
बता दें कि दो दिन पूर्व मंगलवार 28 मई को जब संरक्षक सतीश के बचाव में ट्रेलर एसोसिएशन का एक प्रतिनिधिमंडल एसएसपी दिव्यांग पटेल से मिलने और ज्ञापन देने एसपी ऑफिस पहुंचा था तब एसएसपी दिव्यांग पटेल को ज्ञापन सौंपकर इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी साथ ही कथित संरक्षक को पाक साफ बताते हुए यह भी कहा गया था कि एसोसिएशन को कमजोर करने की कोशिश की रही है और इस दौरान एसपी ऑफिस से निकलकर जब प्रतिनिधिमंडल एसपी ऑफिस परिसर में ही मीडिया से रूबरू हुआ तब संस्था की ओर से पत्रकारों को कहा था कि 19 जुलाई 2023 वाली घटना में पीडि़त परिवार की सहायता हेतु सतीश चौबे द्वारा खुद के निजी गूगल/फोन पे अकाउंट का उपयोग इसलिए किया गया था क्योंकि उस समय तक एसोसियशन का बैंक अकाउंट नहीं था जबकि हकीकत इससे बिल्कुल भी इत्तेफाक नहीं रखती है क्योंकि इस घटना के 10 महीने पूर्व ही 17 अक्टूबर 2022 को एसोसिएशन का बैंक अकाउंट खुल चुका था।
इस जानकारी के सामने आने के बाद साफ हो जाता है कि एसोसिएशन के जिम्मेदार सदस्य संरक्षक सतीश चौबे के बचाव में न सिर्फ स्थानीय मीडिया को झूठी और भ्रामक जानकारी दे रहे हैं बल्कि पुलिस प्रशासन को भी गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं करीब दो साल पूर्व के एक मामले में प्रभावित हुई महिला व उसकी बच्ची की आर्थिक सहायता हेतु सार्वजनिक चंदे से जुटाई गई बड़ी रकम को भी पीडि़ता को एक बार में न देकर उसका भुगतान किश्तों में किया गया और तो और जब 27 मई को खबर प्रसारित हुई तो आनन फानन में 40 हजार रुपए की राशि पीडि़ता के बैंक अकाउंट में एक दूसरे व्यक्ति के खाते से ट्रांसफर कराया गया, जबकि अगर एसोसिएशन अध्यक्ष की मानें तो पीडि़ता को बतौर सहायता दी जाने वाली कुल राशि उसी समय करीब दो साल पहले ही जुटा ली गई थी ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एसोसिएशन के संरक्षक और उनके समर्थक सदस्यों द्वारा शातिराना तरीके से संस्था के नाम पर चंदा की राशि जुटाई जा रही है और जिसका सीधा लाभ पीडि़त परिवार को तात्कालिक रूप से नही दिया जा रहा है…?
वहीं संस्था से जुड़े दो पूर्व पदाधिकारियों ने नाम न लेने की शर्त पर बताया कि एसोसिएशन के खाते में सदस्यता शुल्क 2500 रुपए के अलावा उनके पास मौजूद कुल ट्रेलर के हिसाब से मासिक शुल्क ही लिया जाता है जबकि सार्वजनिक आयोजन एवं दूसरे अन्य क्रियाकलापों के नाम से कई ट्रांसपोर्टरों और अन्य लोगों से जुटाई गई लाखों करोड़ों की राशि को एसोसिएशन के खाते में जमा ही नहीं कराया जाता है ताकि कच्चे पक्के के हिसाब को अलग अलग मेंटेन किया जा सके… वहीं कल तारीख 29 मई 2024 तक एसोसिएशन के नाम पर खोले गए बैंक खाते के क्लोजिंग बैलेंस की राशि 14,73,995 रूपये है जबकि भिन्न भिन्न आयोजनो और आंदोलन के नाम पर जुटाई गई लाखों रुपए की राशि का भी इसमें कोई प्रॉपर एंट्री (ट्रांजेक्शन) नहीं है जो प्रथम दृष्टया ही किसी बड़े आर्थिक झोलझाल की ओर इशारा कर रहा है ऐसे में पुलिस प्रशासन को दोनों पक्षों द्वारा दिए गए आवेदन के आधार पर पूरे प्रकरण की सूक्ष्मता से जांच सुनिश्चित कराना चाहिए ताकि पूरे मामले का सच सामने आ सकें और यदि संस्था से जुड़ा कोई पदाधिकारी अथवा सदस्य दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ विधिसम्मत कार्यवाही करने का मार्ग प्रशस्त हो सकें..ताकि भविष्य में ऐसे अवांछित क्रियाकलापों की पुनरावृत्ति न हो।

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