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NavinKadam > छत्तीसगढ़ > आचार्य विद्यासागर ने ली समाधि, विनयांजलि देने पहुंचे देशभर से संत
छत्तीसगढ़

आचार्य विद्यासागर ने ली समाधि, विनयांजलि देने पहुंचे देशभर से संत

उत्तराधिकारी मुनि समय सागर 22 को पहुंचेंगे चंद्रगिरी, सौंपी जाएगी गद्दी

lochan Gupta
Last updated: February 19, 2024 11:33 pm
By lochan Gupta February 19, 2024
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6 Min Read

राजनांदगांव। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज 17 फरवरी की रात 2:35 बजे महासमाधि में लीन हो गए हैं। इसके बाद सोमवार को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ में विनयांजलि सभा हो रही है। इसमें योग सागर जी महाराज पहुंच चुके हैं। वहीं श्री विद्यासागर जी महाराज के उत्तराधिकारी बनाए गए मुनि समय सागर महाराज रावल वाड़ी पहुंच गए हैं। वे 43 साधुओं के साथ पैदल यात्रा कर 22 फरवरी को बालाघाट से डोगरगढ़ पहुंचेंगे। साथ ही प्रमाण सागर महाराज कोलकाता शिखर जी क्षेत्र से आ रहे हैं। इनके अलावा इंदौर, नागपुर, छत्तीसगढ़, भोपाल सहित देश के बड़े ट्रस्टों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे रहे हैं। जैन चंद्रगृह तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष किशोर कुमार जैन और प्रतिभा स्थली के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जैन ने बताया कि देश भर से सभी संत पद यात्रा कर आ रहे हैं।
जमीन में गाड़ा जाएगा अस्थि कलश
मुनि समय सागर महाराज के पहुंचने के बाद आगे का कार्यक्रम तय होगा। जैन धर्म में अस्थियों को जल में विसर्जित नहीं किया जाता है। इसलिए आचार्य विद्यासागर जी की अस्थि संकलन कर कलश में रखकर जमीन में गाड़ा जाएगा। जिस स्थान में अस्थि कलश गाड़ा जाएगा, वहां समाधि बनाई जाएगी।
मुनि समय सागर को गद्दी सौंपी जाएगी
आचार्य श्री विद्यासागर ने 6 फरवरी को मुनि योग सागर से चर्चा करने के बाद आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा की थी। मुनि समय सागर महाराज के चंद्रगिरी तीर्थ पहुंचने के बाद विधिवत तरीके से उन्हें आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी। जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने ली समाधि डोंगरगढ़ के चन्द्रगिरि में अंतिम संस्कार, छत्तीसगढ़- मध्यप्रदेश में आधे दिन का राजकीय शोक आचार्य विद्या सागर महाराज की पार्थिव देह को अग्निकुंड में पंच तत्व में विलीन किया गया। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु मौजूद थे। आचार्य विद्या सागर महाराज की पार्थिव देह को अग्निकुंड में पंच तत्व में विलीन किया गया। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु मौजूद थे। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने शनिवार 17 फरवरी को देर रात 2:35 बजे शरीर त्याग दिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में अंतिम सांस ली। उन्होंने पिछले 3 दिन से उपवास और मौन धारण कर लिया था। आचार्य विद्यासागर के अंतिम शब्द आचार्यश्री के मुंह से निकला?, सिर हल्का सा झुका और महासमाधि में लीन हो गए 17 फरवरी रात 2:35 बजे आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में महासमाधि में प्रवेश करने से पहले सिर्फ ‘?’ शब्द कहा। सिर हल्का सा झुका और महासमाधि में लीन हो गए। ये बात 20 साल से आखिरी क्षण तक आचार्यश्री के साथ रह रहे बाल ब्रह्मचारी विनय ने बताई।
जैन संतों ने रखा निर्जला उपवास
आचार्यश्री की महासमाधि के अवसर पर पूरे देश में जहां जैन प्रतिष्ठान बंद रहे। वहीं, पूरे देश में विहार कर रहे मुनिश्री सहित सभी जैन संतों ने निर्जला उपवास रखा। बच्चों ने एकासन व्रत किया। कई जैन साधकों के घरो में चूल्हा नहीं जला। इसके अलावा टीवी पर ही कई लोग आचार्यश्री का अंतिम संस्कार देखते रहे। इस दौरान मप्र, राजस्थान से कई लोग डोंगरगढ़ के लिए भी रवाना हो गए थे। इस दौरान कुछ भक्तों की आंखों में आंसू नहीं थम रहे थे।
नाड़ी वैद्य ने बताया था अब उम्र ज्यादा नहीं
आचार्य श्री की इलाज सेवा में नौ लोग थे। इसमें दो नाड़ी वैद्य भी थे। आचार्य श्री ने वैद्य की ओर देखकर पूछा कितना वक्त है तो उन्होंने बताया कि नाड़ी बता रही कि अब उम्र ज्यादा नहीं है। यह बातचीत नाड़ी वैद्य और उनके बीच 6 फरवरी को हुई थी। उसके बाद आचार्य श्री ने कुछ निर्णय लेते हुए उसी दिन साथ के मुनि राजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रवण मुनि योग सागर जी से चर्चा की और संघ संबंधित कार्यों से निवृत्ति ले ली थी। उसी दिन उन्होंने आचार्य पद का त्याग भी कर दिया। आचार्य समय सागर जी महाराज को आचार्य पद दिया। इसके बाद आचार्य श्री गुरुदेव ने वसंत पंचमी के दिन से विधिवत सल्लेखना धारण कर ली थी। पूर्ण जाग्रत अवस्था में रहते हुए उपवास ग्रहण किया। उन्होंने आहार और संघ को छोड़ दिया था। साथ ही अखंड मौन भी धारण कर लिया था। 2004 में आश्रम और मंदिर बनाने का काम शुरू हुआ। इसके बाद 2011 में आचार्य विद्यासागर महाराज आए, तो उन्होंने यहां भूमि पूजन किया। तब से यहां निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। आचार्य विद्यासागर महराज ने यहां 2011 और 2013 में चातुर्मास किया, जिसमें पूरे देश के संत यहां से जुड़े।

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