रायगढ़। बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर जब बसंती परिधान में रायगढ़ के साहित्यकार सूर्या विहार मे स्वाति पण्या जी के निवास एकत्रित हुए तो ऐसा लगा मानों बसंत यहीं छा गया हो। काव्य वाटिका के मासिक गोष्ठी सह सम्मान समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार आ. साधना मिश्रा जी का सम्मान अपने आप में अभूतपूर्व है। शहर के वरिष्ठ साहित्यकार आ. प्रोफेसर के. के. तिवारी, कमल बोहिदार, श्रेष्ठ कथाकार श्याम नारायण श्रीवास्तव की गरिमामयी उपस्थिति से कार्यक्रम को जहाँ ऊंचाई मिली वहीं बासंती बयार की काव्य धारा बहाती वरिष्ठ साहित्यकार अरुणा साहू ने सजल पढ़ी अपरिम मिला प्यार आखे सजल हैं, खुशी मिल रही देखकर सब कुशल हैं। घनाक्षरी के मर्मज्ञ अरविंद सोनी ‘सार्थक’ मगन होकर घनाक्षरी पढ़ी आनंद में सराबोर बसंत की प्यारी भोर, रंगारंग खुशियों से जग भर जाय रे।
सुधा देवांगन ‘सुचि’ ने पढ़ी गेहूँ की बालियाँ दे रही तालियाँ, सरसों के पीले फूल हँस रहे झूल झूल। साधना मिश्रा पढ़ी ‘अरुणिम तरुणाई प्रकृति प्रांगण छाई’ मां सरस्वती के आव्हान में लीशा पटेल कहती हैं ‘जयति जय हे मातु वीणावादिनी हे शारदे’ सुशीला साहू कहती हैं। माँ शारदे तेरी चरणों में शीश झुकाएँ हम धनेश्वरी ‘धरा’ ने माघ मास को ध्येय कर पढ़ी माघ मास का मोद, मुदित करता है तन मन। शारदे की वंदना मे कृष्णा पटेल कहतीं हैं। ज्ञान दे ताल दे,शारदे जीत दे। राग दे रागिनी,नेह को वार दे। रजनी वैष्णव कहती हैं मां शारदे तेरे सुमिरन का वरदान जो मिल जायेअनुराधा कहती है तेरी पाती जब जब आती स्वाति पण्या जी ने कहा दिल ही दिल बिक रहे प्यार का चढ़ा खुमार। राजकुमारी डनसेना ने सरस्वती वंदना की अंत में काव्य वाटिका की संस्थापिका आशा मेहर ‘किरण’ ने आयोजन का आभार व्यक्त किया और एक घनाक्षरी सुनाई सुर सरिता सी बहे, गति लय ताल सजे युवा कवि गुलशन खम्हारी ने अपनी ओजपूर्ण पंक्तियों से सफल संचालन किया। मनोज श्रीवास्तव ने समीक्षात्मक पहलुओं पर चर्चा करते हुए आभार व्यक्त कर समापन की घोषणा की।
बासंती बहार आई काव्य वाटिका में सम्मानित हुई साधना मिश्र, निशांत
