रायपुर। कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता भूपेश बघेल को सीनियर ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। जिसको सीनियर ऑब्जर्वर नियुक्त किए जाने पर सियासत भी गरमा गई है। भाजपा ने भूपेश बघेल को राहुल और प्रियंका गांधी का एटीएम कार्ट बताया है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि भूपेश बघेल को बड़ी जिम्मेदारी मिलने पर भाजपा के नेताओं को तकलीफ होती है। दरअसल, भूपेश बघेल पहले भी कई राज्यों में चुनावी पर्यवेक्षक रह चुके हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में जब राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़े थे, तब भी भूपेश बघेल को वहां की जिम्मेदारी दी गई थी। जहां कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। अब उन्हें बिहार जैसे राज्य में भेजा गया है। जहां जातीय समीकरण राजनीति का आधार हैं।
बिहार की राजनीति लंबे समय से जातीय ध्रुवीकरण पर चल रही है। लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और अब नरेंद्र मोदी तक। कांग्रेस अब एक मजबूत ओबीसी चेहरे के जरिए अपनी पकड़ बनाना चाहती है। ऐसे में भूपेश बघेल का ओबीसी नेता होना कांग्रेस के लिए एक बड़ा सोशल-पॉलिटिकल कार्ड है। वे छत्तीसगढ़ में कुर्मी समुदाय से आते हैं, जो बिहार में भी एक प्रभावशाली ओबीसी समूह है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहते हुए भूपेश बघेल को हिमाचल प्रदेश, यूपी, झारखंड, असम और महाराष्ट्र के चुनावों में अहम जिम्मेदारी निभा चुके हैं। हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने 68 में से 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यूपी में कांग्रेस 403 में से महज 2 सीटें ही जीत पाई। असम में 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस को लगातार दोबारा हार का सामना करना पड़ा। झारखंड चुनाव में भी 16 सीटें जीतकर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही। महाराष्ट्र के चुनाव में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में देखना होगा कि भूपेश बघेल की रणनीति से बिहार चुनाव में पार्टी को कितना फायदा होता है। राहुल गांधी और कांग्रेस हाईकमान की नजर में भूपेश बघेल अब एक ऐसे नेता बन गए हैं। जो हर मुश्किल चुनावी हालात में भेजे जाते हैं। रायबरेली की जीत हो या हिमाचल की रणनीति, भूपेश बघेल ने हर बार पार्टी को मजबूती दी है। हालांकि, कांग्रेस ने लंबे समय से ओबीसी लीडरशिप को सामने नहीं रखा था। लेकिन अब भूपेश बघेल को आगे लाकर पार्टी एक नया सामाजिक संतुलन बनाना चाहती है।
इसके अलावा उनकी कार्यशैली जमीनी की मानी जाती है। कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद, लोकल नेटवर्किंग और गठबंधन सहयोगियों से तालमेल उनकी ताकत है। बिहार में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है। वहां क्षेत्रीय दलों का दबदबा है और जातीय समीकरण काफी जटिल हैं। ऐसे में पार्टी चाहती है कि भूपेश बघेल का अनुभव यहां काम आए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जिम्मेदारी होगी कि गठबंधन की सटीक रणनीति बनाना, जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को एक्टिव करना,मजबूत उम्मीदवारों की पहचान करना, हाईकमान तक सही रिपोर्ट देना। भूपेश बघेल को नई जिम्मेदारी मिलने पर राजनीतिक वार-पलटवार का दौर भी शुरू हो चुका है। सांसद संतोष पांडेय ने कहा कि, भूपेश बघेल प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के एटीएम हैं। बिहार में भी कांग्रेस का बंटाधार निश्चित है। वो जिस राज्य के प्रभारी रहे, वहां कांग्रेस हारी है। क्या बिहार जाकर वो छत्तीसगढ़ का शराब घोटाला बताएंगे या किस तरह नौजवानों को सट्टेबाजी की लत लगाने के बारे में बताएंगे। इधर, कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि भूपेश बघेल कई राज्यों के प्रभारी रहे हैं। जब भी उनको बड़ी जिम्मेदारी मिलती है, तो भाजपा के नेताओं को तकलीफ होती है। भूपेश बघेल ने कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर 15 साल की भाजपा सरकार को हटा दिया। इस बार भी सरकारी एजेंसियों की मदद से भाजपा की सरकार आई है। धीरे-धीरे भाजपा का संघर्ष सामने आ रहा है।
भाजपा ने भूपेश को बताया राहुल-प्रियंका गांधी का एटीएम
कांग्रेस बोली- बड़ी जिम्मेदारी मिलने पर भाजपाइयों को तकलीफ
