रायगढ़। जिले में घरघोड़ा से छाल तक फैली सडक़ को मौत की सडक़ कहा जा रहा है, जो ग्रामीणों के लिए हर दिन हादसों का डर बन गई है। देउरमाल गांव के ग्रामीणों ने एक साल पहले इसी सडक़ पर हुए एक हादसे में अपने एक साथी की मौत के बाद खुद ही सडक़ के गड्ढों को भरने का फैसला किया।
रायगढ़ जिले में सालों से बदहाल पड़ी एक सडक़ अब ग्रामीणों की बेबसी का जीता-जागता सबूत बन गई है। घरघोड़ा से छाल तक फैली यह श्मौत की सडक़श् सिर्फ रास्ता नहीं, बल्कि हर दिन हादसों का डर है. गड्ढों से छलनी इस सडक़ पर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही ने ग्रामीणों के सब्र का बाँध तोड़ दिया है। जब सिस्टम ने आँखें मूँद लीं और गुहारें बेअसर रहीं। तो आखिरकार देउरमाल गाँव के ग्रामीणों ने अपनी और अपनों की जिंदगी बचाने के लिए खुद ही रापा और गैंती थाम ली। उनकी यह पहल सिर्फ गड्ढे भरने की नहीं, बल्कि उस दर्द और बेबसी का जवाब है, जहाँ एक साल पहले इसी सडक़ ने उनके एक साथी की जान ले ली थी. यह तस्वीर दिखाती है कि जब व्यवस्था सो जाए, तो जनता को अपनी सुरक्षा के लिए खुद ही जागना पड़ता है।
ग्राम पंचायत देउरमाल के करीब 15 ग्रामीणों ने अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हुए सडक़ पर उतरकर बड़े-बड़े गड्ढों को भरना शुरू कर दिया. उनके इस कदम के पीछे सिर्फ सडक़ की खराब हालत ही नहीं, बल्कि एक दर्दनाक याद भी है. एक साल पहले इसी सडक़ पर हुए एक हादसे में देउरमाल के एक ग्रामीण की मौत हो गई थी. इस घटना ने पूरे गांव को शोक में डुबो दिया था और तब से लोगों के मन में यह डर बैठ गया था कि कहीं अगला शिकार उनका कोई अपना न हो जाए।
हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते
ग्रामीणों का कहना है कि वे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहकर किसी और की बलि नहीं चढऩे दे सकते। उनकी यह पहल सिर्फ गड्ढे भरने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकार और सिस्टम को जगाने का एक मजबूत संदेश भी है। उनका मानना है कि जब व्यवस्था सो जाती है, तो जनता को अपनी एकजुटता से चमत्कार कर दिखाना पड़ता है। यह घटना न सिर्फ प्रशासन की लापरवाही पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि लोगों में अपने गाँव और परिवार की सुरक्षा के लिए खुद आगे आने का साहस है। देउरमाल के इन ग्रामीणों की मिसाल बताती है कि जनभागीदारी से बड़े-बड़े संकटों का समाधान संभव है।
मौत बांटती सडक़ पर गांव के युवाओं ने दिखाया दम
सरकार की बेरुखी पर खुद ही उठाया मरम्मत का जिम्मा
