प्रह्लाद ने भगवान से माँगा की हे प्रभु मैं यह माँगता हूँ कि – मेरी माँगने की इच्छा ही ख़त्म हो जाए। कुंती ने भगवान से माँगा कि – हे प्रभु मुझे बार बार विपत्ति दो ताकि आपका स्मरण होता रहे। भक्ति के बिना गुण और सुख ऐसे फीके लगते हैं, जैसे नमक के बिना बने विविध प्रकार के व्यंजन। भजन विहीन सुख किस काम का, यह विचार कर पक्षीराज काकभुशुण्डि जी बोले – यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो हे शरणागतों के हितकारी, कृपा के सागर व सुख के धाम कृपा करके मुझे अपनी भक्ति प्रदान कीजिए। गोस्वामी तुलसी दास ने मांगा की एक घड़ी आधों घड़ी, आधों से पुनी आध, तुलसी चर्चा राम के कटैय कोटि अपराध, फकीरी जिंदगी जीने वाले कबीरदास ने मांगा कि – मांगत मरण समान है, मती मांगो कोई भीख, मांगत से मरना भला यही सद्गुरु की सीख।
महाराज पृथु ने भगवान से माँगा कि हे प्रभु मुझे दस हज़ार कान दीजिये ताकि में आपकी पावन लीला का गुणानुवाद अधिक से अधिक रसास्वादन कर सकूँ, और हनुमान जी तो बड़ा ही सुंदर कहते हैं कि अब प्रभु कृपा करो एही भाँती। सब तजि भजन करौं दिन राती ॥भगवान से माँगना दोष नहीं मगर क्या माँगना ये होश जरूर रहे। पुराने समय में भारत में एक आदर्श गुरुकुल हुआ करता था, उसमें बहुत सारे छात्र शिक्षण कार्य किया करते थे, उसी गुरुकुल में एक विशेष जगह हुआ करती थी जहाँ पर सभी शिष्य प्रार्थना किया करते थे, वह जगह पूजनीय हुआ करती थी।
एक दिन एक शिष्य के मन में जिज्ञासा का भाव उत्पन हुई, तो उस शिष्य ने गुरु जी से पूछा – हम प्रार्थना करते हैं, तो होंठ हिलते हैं पर आप के होंठ कभी नहीं हिलते, आप पत्थर की मूर्ति की तरह खड़े हो जाते हैं। आप कहते क्या हैं अन्दर से क्योंकि – अगर आप अन्दर से भी कुछ कहेंगे तो होठों पर थोड़ा कंपन तो आ ही जाता है। चेहरे पर बोलने का भाव आ ही जाता है, लेकिन आपके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं आता। गुरु जी ने कहा मैं एक बार राजधानी से गुजरा और राजमहल के सामने द्वार पर मैं सम्राट व एक भिखारी को खड़े देखा, वह भिखारी बस खड़ा था, फटे-पुराने वस्त्र थे उसके शरीर पर, जीर्ण – जर्जर देह थी जैसे बहुत दिनो से भोजन न मिला हो, शरीर सूखकर कांटा हो गया। बस आंखें ही दीयों की तरह जगमगा रही थीं, बाकी जीवन जैसे सब तरफ से विलीन हो गया हो, वह कैसे खड़ा था यह भी आश्चर्य था, लगता था अब गिरा तब गिरा।
सम्राट उससे कहने लगे कि बोलो क्या चाहते हो? उस भिखारी ने कहा अगर आपके द्वार पर खड़े होने से मेरी मांग का पता नहीं चलता तो कहने की कोई जरूरत नहीं क्या कहना है, मै आपके द्वार पर खड़ा हूं, मुझे देख लो मेरा होना ही मेरी प्रार्थना है। गुरुजी ने कहा कि – उसी दिन से मैंने प्रार्थना बंद कर दी, मैं परमात्मा के द्वार पर खड़ा हूं, वह देख लेगें अगर मेरी स्थिति कुछ नहीं कह सकती, तो मेरे शब्द क्या कह सकेंगे। अगर वह मेरी स्थिति नहीं समझ सकते, तो मेरे शब्दों को क्या समझेंगे ? अत: भाव व दृढ विश्वास ही सच्ची परमात्मा की याद के लक्षण हैं, यहाँ कुछ मांगना शेष नही रहता, आपका प्रार्थना में होना ही पर्याप्त है, अर्थात जो प्राप्त है वहीं पर्याप्त है।
सूर्यकांत शुक्ला
जिला प्रबंधक नाआनि रायगढ़
भगवान से प्रार्थना में क्या मांगूँ : शुक्ला
