रायगढ़। विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर आज कृषि विज्ञान केन्द्र के सभाकक्ष तथा विकासखण्ड तमनार के ग्राम-पडिग़ांव में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जिसमें कृषि महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं के बीच वाद-विवाद प्रतियोगिता के साथ ही पडिग़ांव में कृषक संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें 50 से अधिक प्रगतिशील किसान एवं विद्यार्थी शामिल हुए।
कार्यक्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी. एस. राजपूत ने अपने संबोधन में कहा कि अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता लगातार प्रभावित हो रही है। इसलिए मृदा परीक्षण के अनुसार जैविक खाद एवं जीवांश पदार्थों का उपयोग जरूरी है। डॉ.के.के. पैकरा ने वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित उर्वरक मात्रा के अनुसार ही उपयोग करने पर जोर देते हुए कहा कि जैव उर्वरक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संगोष्ठी का मुख्य संदेश ‘मिट्टी एवं पानी-जीवन के स्त्रोत’ की थीम पर केंद्रित रहा। वैज्ञानिकों ने बताया कि असंतुलित रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक एवं खरपतवारनाशक के अत्यधिक उपयोग से मृदा स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है। किसानों को फसल अवशेष न जलाने के लिए प्रेरित किया गया तथा इफको, जिला रायगढ़ के सहयोग से वेस्ट डीकम्पोजर का वितरण कर फसल अवशेषों को कार्बनिक खाद में बदलने की वैज्ञानिक विधि समझाई गई।
विशेषज्ञों ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, मोनो ऑक्साइड एवं ब्लैक कार्बन जैसी गैसें उत्सर्जित होती हैं, जिनका मानव व मृदा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस समस्या का स्थायी समाधान जैविक एवं प्राकृतिक खेती अपनाना है। कार्यक्रम में बीज उपचार, कतार बोनी, एवं जैव उर्वरकों के महत्व पर भी विस्तृत जानकारी दी गई। कार्यक्रम के अंत में किसानों ने वैज्ञानिक खेती की तकनीकों को अपनाने तथा मृदा संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में कृषि विभाग के श्री उदित नगाइच, इफको प्रबंधक श्री भूपेन्द्र पाटीदार तथा केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. के.के. पैकरा, डॉ. मनीषा चौधरी, डॉ. सी.पी.एस. सोलंकी, डॉ. के.एल. पटेल एवं नीलकमल पटेल उपस्थित रहे।
मृदा स्वास्थ्य दिवस पर कृषक संगोष्ठी का हुआ आयोजन
किसानों को मिला जैविक खेती का संदेश



