सारंगढ़। गोरक्षा को लेकर आम जनमानस, प्रशासनिक अधिकारी से लेकर राजनेता भी खूब चर्चा करते हैं। चुनावी मौसम में गाय माता शब्द जनता से वोट बटोरने का हथियार बन जाता है। वास्तविक रूप से गोमाता के कष्ट में होने पर अधिकांश लोग उसके पास नहीं फटकते। बिरले ही लोग गाय माता की दवा व सेवा आदि कर उनके सच्चे सपूत बनने साहस कर पाते हैं। शहर में भी कुछ ऐसे हैं जो बीमार और घायल गाय माता की खिदमत में सहर्ष जुट जाते हैं।
अमूमन लोग दुधारू गाय की सेवा करते हैं ज्यादातर ऐसी गायों को ही भरपेट भोजन मिलता है। गोष्ठी, कार्यशाला य फिर राजनीतिक मंच हो, हर जगह गो संरक्षण पर खूब बातें होती है लेकिन जब वास्तव में गाय माता कष्ट में होती है तो बिरले लोग ही इसकी सेवा के लिए आगे आते हैं। अपने शहर में भी कुछ लोग हैं जो वास्तव में गौ सेवा करते हैं। सेवा फाउंडेशन अध्यक्ष गो सेवा सदन व शोध संस्थान के सचिव और समाजसेवी सतीश यादव को जब भी किसी घायल या बीमार गाय की जानकारी मिलती है, सहर्ष वे उसकी सेवा के लिए तत्पर हो जाते हैं चाहे गाय किसी व्यक्ति विशेष की हो या फिर अन्ना। रायपुर रोड तिराहे पर एक गाय को ट्रक ने टक्कर मार दी थी।
जिससे उसके दोनों पैर खराब हो गए थे। उसकी दवा के लिए कोई आगे नहीं आया। सेवा फाउंडेशन एवं सेवा भारती के अध्यक्ष ने बताया कि वह चल नहीं पाती थी, इस कारण गाय के नीचे गद्दा बिछवाया ताकि उसका शरीर और घायल न हो। बाजार से दवाएं खरीदकर उसका इलाज करवाया लेकिन आठ दिन बाद गाय माता को बचाया नहीं जा सकता। इसी प्रकार पुरानी बाजार में एक गाय को टक्कर मार की ट्रक भाग गया। यह वाक्या समाजसेवी सतीश यादव ने देखा। उन्होंने ट्रक का पीछा किया लेकिन अंतत: ट्रक नहीं पकड़ा जा सका। सतीश यादव ने इसकी अधिकारी को दी। घायल गाय को किराए के वाहन से मुख्य पशु चिकित्सा पहुंचाया गया तब जाकर उसका इलाज हो सका। एक हफ्ते बाद वह गाय स्वस्थ हो गई। इसी प्रकार कचेहरी परिसर में ही एक घायल बछड़े का इलाज इन लोगों ने कराया। वह भी ठीक हो गया। एक गाय पुलिया में किसी वाहन की टक्कर से गंभीर रूप से घायल हो गई थी। उसका पेट फट गया था। उसे वाहन से लदवाकर अमेठी गौशाला स्थित गौ सेवा सदन में लाकर एक माह तक इलाज कराया गया। अंतत: एक माह बाद वह गाय नहीं बची। अब तक आधा सैकड़ो घायल गोवंश का इलाज करवा चुके हैं। इनमें एक दर्जन से अधिक स्वस्थ हो चुकी हैं। तमाम गायों को नहीं बचा पाए।