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Reading: कांग्रेस के क्लीन स्वीप को क्या रोक पाएगी भाजपा
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NavinKadam > रायगढ़ > कांग्रेस के क्लीन स्वीप को क्या रोक पाएगी भाजपा
रायगढ़

कांग्रेस के क्लीन स्वीप को क्या रोक पाएगी भाजपा

2018 के चुनाव में जशपुर से सारंगढ़ तक आठों सीट पर कांग्रेस का लहराया था परचम, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की गोमती साय ने दी थी पटखनी

lochan Gupta
Last updated: October 29, 2023 12:37 am
By lochan Gupta October 29, 2023
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9 Min Read

रायगढ़। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के मध्य नजर कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों में सियासी घमासान तेज होता जा रहा है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आएगी, इसके और जोर पकडऩे की आशंका है। कांग्रेस सत्ता में बने रहने को लेकर जोर आजमाइश में है तो भाजपा फिर से सत्ता में लौटने की रणनीति पर काम कर रही है, लेकिन मतदाता के मन में क्या चल रहा इसे समझने की जरूरत है। रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के आठों विधानसभा सीट पर कब्जा जमाए कांग्रेस को 2018 के चुनाव में अपने प्रदर्शन को दोहराने की जहां चुनौती है वही 2019 के रायगढ़ लोकसभा चुनाव को अपने पाले में कर चुकी भाजपा को इस बार 2023 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। हालांकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मुद्दे अलग होते हैं, परंतु करीब छह महीने के भीतरी परिणाम उलट आ जाते हैं। इस बार 2023 के विधानसभा में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के आठों विधानसभा सीट कौन भारी पड़ेगा, इसे लेकर अलग-अलग कयास लग रहे हैं।

रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में रायगढ़ जिला की चार विधानसभा सीट के अलावा जयपुर जिले की तीन सीट और सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले की सारंगढ़ सीट शामिल है। इस साल विधानसभा चुनाव को लेकर बात की जाए तो इन आठों विधानसभा सीट को लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच फिलहाल सीधे मुकाबले के आसार हैं। बिते 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए आठों सीट पर अपना कब्जा जमा लिया था। वोटो की बात करें तो इन आठों सीटों पर कांग्रेस के हिस्से में 6 लाख 80 हजार 91 वोट आए थे। इस तरह रायगढ़, खरसिया, लैलूंगा, धरमजयगढ, जशपुर, कुनकुरी, पत्थलगांव और सारंगढ़ सीट पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। इसके करीब 6 महीने बाद ही होने वाले रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में भाजपा के हिस्से में जीत आई, भाजपा की गोमती साय ने कांग्रेस के लालजीत सिंह राठिया को 66 हजार से अधिक मतों से पराजित कर लोकसभा सीट पर भाजपा की जीत को बरकरार रखा। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में महज 6 महीने के भीतर मतदाता का रुझान बदल जाता है। इसे लेकर राजनीति के जानकारों में अलग-अलग कयास लगाते हैं। परंतु बीते दिनों चुनाव का इस बार के चुनाव में किस तरह का प्रभाव रह सकता है, इसे लेकर भी कयासों का दौर शुरू हो गया है। विधानसभा वार अलग-अलग दावे सामने आ रहे हैं, लेकिन वास्तव की स्थिति क्या हो सकती है? फिलहाल कुछ भी पूख्ता तौर पर कह पाना मुश्किल ही लगता है। मतदाताओं का इस विधानसभा चुनाव को लेकर क्या रुख होगा, मतदाता किन मुद्दे को लेकर अपना विश्वास किस पर जताएंगे? इसके लिए मतदाता अभी कुछ भी कहने से गुरेज करते नजर आते हैं, लेकिन यह भी तय है कि मतदाता इस चुनाव में भी किसी एक न एक मुद्दे पर भारी पड़ेंगे और वही चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा।
प्रत्याशी बदलने का कितना होगा लाभ
चुनाव में प्रत्याशी बदलने का भी बड़ा असर होता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही प्रत्याशी बदल दिए थे। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से लगातार तीन चुनाव जीत चुके सांसद विष्णुदेव को प्रत्याशी बनाया गया था। कांग्रेस से आरती सिंह चुनाव मैदान में रहीं। इस चुनाव में 53.16 प्रतिशत वोट दर्ज कर भाजपा के विष्णुदेव साय ने 2लाख 16 हजार से भी अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। कांग्रेस की आरती सिंह को 35. 77 फ़ीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2019 के चुनाव में दोनों ही दलों ने प्रत्याशी बदल दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा का वोट प्रतिशत 2014 के चुनाव के मुकाबले गिरकर 48.76 प्रतिशत पर आ गया। हालांकि भाजपा की गोमती साय चुनाव जीत गई थी। परंतु इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 43.87 प्रतिशत पहुंच गया, लालजीत सिंह राठिया कांग्रेस के वोटिंग प्रतिशत को बढ़ाने में सफल रहे। इस तरह प्रत्याशी बदलने पर वोट का प्रतिशत भी प्रभावित होते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में इसका क्या असर होगा, यह देखने वाली बात होगी। इस चुनाव में भाजपा ने लोकसभा क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी इस बार बदल दिए हैं। जबकि कांग्रेस ने आठ में 7 सीटों के प्रत्याशियों को रिपीट किया है। सिर्फ लैलूंगा सीट से चक्रधर सिंह सिदार के बदले विद्यावती सिदार को प्रत्याशी बनाया है। प्रत्याशी बदलने और रिपीट करने का किसको कितना नफा नुकसान होगा, इस पर भी लोगों की नजर रहेगी।
कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए चुनौती
2018 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा 2019 के चुनावी आंकड़ों पर नजर डाले तो मामला स्पष्ट हो जाता है कि चुनाव बदलते ही परिणाम कैसे तेजी से बदल जाते हैं। रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटों पर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां भाजपा से 1लाख 97 हजार 434 वोट की बढ़त दर्ज की थी। वहीं लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से 66 हजार से ज्यादा वोट पाकर सीट जीत तो लिया, लेकिन विधानसभा चुनाव में मिले कुल मतों के आंकड़ों से पीछे ही रही। कहने का तात्पर्य यह है कि भाजपा ने लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने के बाद भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले वोटो में से 21 हजार 756 से पीछे रही बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या 16 लाख के करीब रही है इस तरह भाजपा लोकसभा चुनाव में भी वोट के नजरिए से 21000 से भी अधिक वोटो को साधने में सफल नहीं हो पाई। यह भाजपा के लिए इस चुनाव में खतरे की घंटी मानी जा सकती है। दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव को कांग्रेस के हिस्से में आए वोटो की बात करें तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां कल 6 लाख 80 हजार 91 वोट आठों सीटों पर दर्ज किया था। लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी लालजीत सिंह राठिया के हिस्से में 5 लाख 92 हजार 308 वोट ही आ पाए। इसे कांग्रेस के लिए चिंताजनक की स्थिति मानी जा सकती है। इस लिहाज से अपने वोट बैंक को संभाले रखने की कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए बड़ी चुनौती मानी जा सकती है।
जातीय समीकरण हो सकता है हावी
इस चुनाव में जातीय समीकरण को साधने की कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दल पूरी रणनीति से जुटे नजर आते हैं । राजनीति के जानकारों की माने तो अलग-अलग विधानसभा सीट पर राजनीतिक दल अपने-अपने जातीय समीकरण बैठा रहे हैं। रायगढ़ लोकसभा सीट को इन आठों विधानसभा सीट में से जशपुर, कुनकुरी, पत्थलगांव, धरमजयगढ़ और लेलूंगा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। जबकि रायगढ़-खरसिया दोनों सामान्य और सारंगढ़ सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बताया जाता है कि रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र की आठों विधानसभा क्षेत्र में कुल 85.79 प्रतिशत ग्रामीण आबादी है। इसके अलावा जाति आधार पर इन आठों क्षेत्रों में आदिवासियों की संख्या 44 फ़ीसदी और अनुसूचित जाति 11.7 प्रतिशत है। इस तरह ओबीसी और सामान्य वर्ग का हिस्सा करीब 55. 7 प्रतिशत बताया जाता है इस दृष्टि से जाति आधार पर वोटो के बंटवारा होने का अनुमान लगाया जाता है। विधानसभा स्तर पर जातीय समीकरण भी अलग-अलग है। इस स्थिति में राजनीतिक पार्टियां भी इसे साधने की तैयारी में है। टिकट बंटवारे में पार्टियों की रणनीति भी सामने आ चुकी है। अब इस पर मतदाताओं को निर्णय लेना है कि इस चुनाव में जातीय समीकरण हावी रहेगा या क्षेत्र के विकास रोजगार सडक़, बिजली, पानी, सिंचाई और खेती-किसानी जैसे मुद्दे भारी पड़ेंगे।

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