रायगढ़. रविवार को खरना छठ के दौरान शहर सहित अंचल के घर-घर में छठी मईया के पारंपरिक गीत कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत… से गूंजयमान रहा। इस दौरान केलो नदी सहित तालाबों के घाट पर व्रति महिलाओं ने खरना पूजा किया, इसके बाद घर जाकर खीर का प्रसाद तैयार कर चंद्र दर्शन के बाद ग्रहण किया। वहीं सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा और 28 अक्टूबर को अरुणोदय काल में अघ्र्य के साथ पर्व का समापन होगा।

उल्लेखनीय है कि सूर्य की उपासना छठ महापर्व करने वाली व्रती महिलाओं ने रविवार को पूरे दिन निर्जला व्रत रख कर शाम को केलो नदी सहित अन्य तालाबों के घाट पर खरना पूजा कर सूर्यदेव की अराधना उत्साह के साथ शुरू कर दिया है। इस दौरान व्रतियों ने रविवार को सुबह मिट्टी से बाल धोकर पूरे दिन निर्जला व्रत रहीं। वहीं शाम को नदी व तालाबों में स्नान कर घाट पर खरना पूजा किया। इसके बाद गुड़-चावल का खीर एवं पूड़ी का प्रसाद तैयार कर रात में चंद्र दर्शन के बाद प्रसाद को ग्रहण किया। इस व्रत को रखने वाले लोग चार दिनों तक संयम-नियम का पालन करते हैं। व्रतियों का कहना है कि छठ मईया के नियमों के विरूद्ध रहकर पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी नहीं होती। इसलिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ पवित्र नियमों का ख्याल रखते हुए करते हैं। वहीं सोमवार शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। इससे रविवार को पूरे दिन पूजा सामान व फल सहित अन्य सामानों की खरीददारी हुई। इससे बाजार में देर शाम तक गहमा-गहमी का माहौल रहा। इस बार बाजार में छठ पूजा के लिए कलकत्ता से भारी मात्रा में नारियल और डोब नीबू मंगाया गया है, जिसकी जमकर बिक्री हुई है।
यह है मान्यता
षष्ठी तिथि के दिन भगवान सूर्य को देवी के रूप में पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय में भगवान परशुराम के पिता जमदगनी ऋषि जगंल में भ्रमण कर रहे थे। उस समय सूर्य की तपन काफी तेज थी। उसी दौरान परशुराम की मां रेणुका तुलसी चबूतरा में पूजा कर रही थी जो सूर्य की तपन बेहाल हो रही थीं। यह देखकर जमदगनी ऋषि को सूर्य पर क्रोध आ गया और उन्होंने सूर्य को श्राप देते हुए कहा कि तुम भी एक दिन के लिए स्त्री बन कर पूजे जाओगे, तब तुम्हे स्त्रियों का कष्ट समझ में आएगा। तभी से कार्तिक मास के षष्ठी तिथि के दिन सूर्य भगवान को छठ मईया के रूप में पूजा की जाती है। साथ ही जो भी महिला-पुरुष पूरे विधि-विधान से छठ मईया की पूजा करते है उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
मौसमी फलों से सजा बाजार
छठ महापर्व को देखते हुए पूजन सामग्रियों व मौसमी फलों से बाजार पूरी तरह से सज गया है। छठ पूजा में उपयोग होने वाले विशेष रूप से गन्ना, डोब, कच्चा नारियल, कच्चा सिंघाड़ा, केला, शकरकंद, कच्चा हल्दी, कच्चा अदरक, मुली, मखना, लौकी सहित अन्य मौसमी फलों की पूरे दिन जमकर खरीददारी की गई। इस दौरान बाजार में पूरे दिन महिला व पुरुषों की भीड़ लगी रही।
सज-धज कर तैयार हुआ घाट
शहर के जूटमिल स्थित केलो नदी, बुढ़ीमाई मंदिर तालाब, निकले महादेव मंदिर तालाब सहित शहर के अन्य जगहों पर छठ पूजा के लिए तैयारी की गई है। इसके लिए निगम द्वारा सभी जगह सफाई लगभग पूरी कर दी गई है। वहीं कुछ जगहों पर बचा हुआ है, जिसे सोमवार को अल सुबह पूरी कर ली जाएगी। साथ ही घाट जाने के लिए निगम की तरफ से सडक़ों की की साफ-सफाई जारी है, क्योंकि इस पर्व पर जो भी लोग घाट जाते हैं वह बगैर चप्पल के ही जाते हैं, इसको देखते हुए सडक़ों की भी सफाई बेहतर तरीके से की जा रही है, ताकि लोगों को समस्या का सामना न करना पड़े।
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छठ मइया की उपासना सूर्य आराधना और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक-सीएम साय
रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सूर्य उपासना के महापर्व छठ पूजा की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि छठ पूजा आस्था, पवित्रता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पर्व है, जो सूर्यदेव और छठ मइया की उपासना के माध्यम से मानव और प्रकृति के मधुर संबंध का संदेश देता है। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि छठ पर्व का प्रत्येक अनुष्ठान -अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से लेकर उदीयमान सूर्य की आराधना तक -जीवन में अनुशासन, संयम और स्वच्छता के महत्व को दर्शाता है। यह पर्व समाज में सामूहिकता, पवित्रता और पारिवारिक एकता की भावना को सशक्त बनाता है। उन्होंने प्रदेशवासियों से अपील की है कि इस अवसर पर सूर्योपासना के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण, जलस्रोतों की स्वच्छता और समाज में सद्भाव बनाए रखने का संकल्प लें।



