रायपुर। सरकारी अस्पताल डीकेएस में डॉक्टरों ने 9 साल की बच्ची की आंख से होते हुए दिमाग में घुसी घंटी का सफल ऑपरेशन कर उसकी जान बचा ली। साथ ही बच्ची की आंख भी सही सलामत है। दरअसल, बिलासपुर की 9 साल की काव्या दिवाली की शाम खेलते-खेलते मुंह के बल गिर गई। जिस घंटी से वह खेल रही थी, उसका ऊपरी हिस्सा बाई आंख में घुसकर सीधे दिमाग तक पहुंच गया। परिवार ने तुरंत उसे सिम्स, बिलासपुर पहुंचाया। जहां डॉक्टरों ने बच्ची की गंभीर हालत देखकर डीकेएस रायपुर रेफर कर दिया। डीकेएस पहुंचने पर सीटी स्कैन में साफ दिखा कि घंटी का हैंडल आंख की हड्डी (ऑर्बिट) पार कर ब्रेन टिशू तक चला गया है। मामूली गलती जानलेवा साबित हो सकती थी।
बिलासपुर के सिविल लाइन इलाके में रहने वाले बच्ची के पिता दीपक ने बताया कि दिवाली की रात उनका परिवार पूजा की तैयारी कर रहा था। उसी समय उनकी 9 साल की बेटी काव्या खेल रही थी। खेलते-खेलते दौड़ते वक्त उसका पैर किसी चीज से टकरा गया और वह मुंह के बल गिर गई। जिस घंटी से वह खेल रही थी, उसका ऊपरी हिस्सा उसकी आंख में जा घुसा। बच्ची की जोरदार चीख सुनकर माता-पिता दौड़े तो देखा कि उसकी आंख से खून बह रहा था। वे तुरंत उसे इलाज के लिए सिम्स अस्पताल लेकर पहुंचे। वहां शुरुआती इलाज के बाद एक्स-रे और सीटी स्कैन किया गया, जिसमें पता चला कि घंटी उसकी आंख की झिल्ली पार कर दिमाग तक पहुंच गई है। हालत गंभीर होने के कारण डॉक्टरों ने उसे तुरंत रायपुर के डीकेएस अस्पताल रेफर कर दिया।
दिवाली की रात थी, कई डॉक्टर छुट्टी पर थे, लेकिन जैसे ही मामला सामने आया, अस्पताल की टीम तुरंत एक्टिव हो गई। न्यूरोसर्जन डॉ. राजीव साहू ने सर्जरी की जिम्मेदारी संभाली। उनके साथ डॉ. लवलेश राठौड़, डॉ. नमन चंद्राकर, डॉ. प्रांजल मिश्रा और एनेस्थीसिया एक्सपर्ट डॉ. देवश्री की टीम पूरी रात ऑपरेशन में जुटी रही। डॉक्टर्स के अनुसार यह ऑपरेशन दूरबीन से किया गया, ताकि दिमाग के ऊत्तकों को कम से कम नुकसान पहुंचे। सुप्राऑर्बिटल (भौंह के ऊपर) जगह पर चीरा लगाया गया। ट्रांसऑर्बिटल में (आंख के रास्ते) एंडोस्कोप की मदद से दिमाग में घुसे हुए फॉरेन बॉडी (घंटी के हैंडल) को चारों ओर से सावधानी से अलग किया गया।
ये टुकड़ा लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर अंदर तक दिमाग में घुसा हुआ था। इस सर्जरी में डॉक्टरों ने घंटी को धीरे-धीरे निकालना शुरू किया। हर मिलीमीटर पर सटीकता और धैर्य की जरूरत थी। आखिरकार जब घंटी का हिस्सा सुरक्षित रूप से बाहर निकाला गया, तो ओटी रूम में मौजूद सभी डॉक्टरों ने राहत की सांस ली। इसके बाद दिमाग की बाहरी परत (ड्यूरा) को रिपेयर किया गया। सर्जरी करीब 4 घंटे चली। पोस्ट-ऑपरेशन में जब बच्ची ने दोनों आंखों से साफ देखा और मुस्कुराई, तो पूरा ओटी भावुक हो गया। यह न सिर्फ एक मेडिकल सफलता थी, बल्कि इंसानी जज्बे और हिम्मत की मिसाल भी थी।
डॉक्टरों के अनुसार, जिस दिशा में घंटी गई थी, उससे ब्रेन हैमरेज, मिर्गी के दौरे, पैरालिसिस और रौशनी जाने का का खतरा था। लेकिन घंटी इस तरह से उसके आंख और दिमाग के अंदर गई थी कि बच्ची के ब्लड वेसल्स और नर्व्स को कोई गंभीर नुकसान नहीं हुआ। डीकेएस अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इतनी कम उम्र में आंख के रास्ते दिमाग में घुसी वस्तु को निकालने की यह प्रदेश की पहली सर्जरी है। फिलहाल, बच्ची को ऑब्जर्वेशन में रखा गया है और उसकी हालत स्थिर है। न्यूरोसर्जन डॉ. राजीव साहू ने बताया कि हमने तय किया कि ऑपरेशन दूरबीन (एंडोस्कोपी) तकनीक से करेंगे ताकि दिमाग को न्यूनतम नुकसान पहुंचे। घंटी का हिस्सा धीरे-धीरे बाहर निकाला गया। जब आखिरी टुकड़ा सुरक्षित रूप से बाहर आया, तो पूरी टीम ने राहत की सांस ली।
आंख से होकर दिमाग तक घुसा घंटी का नुकीला सिरा
डीकेएस में 4 घंटे चली सर्जरी, डॉक्टर्स ने बच्ची और आंख दोनों को बचाया



