सारंगढ़। सारंगढ़ विकासखण्ड अंतर्गत शासकीय प्राथमिक शाला दहिदा में पदस्थ सक्रिय एवम ऊर्जावान प्रधान पाठक,राज्यपाल सम्मान से सम्मानित शिक्षिका प्रियंका गोस्वामी जिले की पहिली शिक्षिका हैं, जिन्होंने नवीन पाठ्यक्रम को कठपुतली कला के माध्यम से जोड़ा। गोस्वामी द्वारा अपने यू ट्यूब चैनल वीडियो के द्वारा और स्कूल में कक्षा के वातावरण में नवीन पाठ्यक्रम की विषयगत अवधारणाओं को कठपुतली कला के द्वारा अधिक रुचिकर और मनोरंजनात्मक अंदाज़ में प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे विद्यार्थी लाभान्वित हो रहे हैं, कहानी सुनाने, सामाजिक-भावनात्मक कौशल, भाषा विकास, रचनात्मकता और आत्म-सम्मान को बढ़ावा देने का एक शक्तिशाली और मनोरंजक माध्यम है। इसके द्वारा शिक्षिका बच्चों के लिए सीखने का जीवंत और आकर्षक माहौल बना रहीं हैं, मुश्किल विषयों पर बातचीत को प्रोत्साहित कर रहीं हैं और पारंपरिक भारतीय कथाओं व ज्ञान को छात्रों तक पहुँचा रहीं हैं।
प्राथमिक शिक्षा में कठपुतली के उपयोग के लाभ
भाषा और संचार कौशल: कठपुतली के माध्यम से बच्चे नई शब्दावली सीखते हैं, कहानियों को बेहतर ढंग से समझते हैं और खुद कहानी सुनाने में रुचि लेते हैं। सामाजिक और भावनात्मक विकास: कठपुतली छात्रों को काल्पनिक खेल खेलने, साझा करने, बारी-बारी से काम करने और संघर्षों को सुलझाने में मदद करती है, जिससे उनके सामाजिक कौशल बढ़ते हैं। रचनात्मकता और कल्पना शक्ति: कठपुतलियों का उपयोग करके बच्चे पात्रों का निर्माण करते हैं और नाटकीय प्रदर्शन करते हैं, जिससे उनकी रचनात्मक सोच और कल्पना शक्ति बढ़ती है। संज्ञानात्मक विकास: कठपुतलियाँ बच्चों की आँख-हाथ के समन्वय, स्थानिक जागरूकता और दृश्य बोध को मजबूत करती हैं, साथ ही समस्या-समाधान की क्षमता भी विकसित करती हैं। आत्म-सम्मान में वृद्धि: जब बच्चे कठपुतली के रूप में अपनी बात रखते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
आकर्षक शिक्षण:
्र्रकठपुतलियाँ सीखने के माहौल को मजेदार और यादगार बनाती हैं, जिससे बच्चे विषयों से बेहतर तरीके से जुड़ पाते हैं। गोस्वामी द्वारा कठपुतली का उपयोग करके शैक्षिक आलेख तैयार किया जा रहा है,शिक्षिका कठपुतली कला के माध्यम से पाठ्यक्रम के विषयों पर शैक्षिक आलेख और कार्यक्रम प्रस्तुत कर कहानियाँ सुनाना: कठपुतलियों का उपयोग करके कहानियाँ सुनाती हैं, मुश्किल मुद्दों पर बात करते हुए कठपुतलियाँ द्वारा छात्रों को अपनी चिंताओं, दोस्ती, बदमाशी और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर बात करने के लिए सुरक्षित और सहज मंच प्रदान कर रहीं हैं। कक्षा गतिविधियाँ: कठपुतली के निर्माण और प्रदर्शन को कक्षा की पढ़ाई के एक अभिन्न अंग के रूप में शामिल किया जा रहा है।
कठपुतली कला की शैलियाँ
बता दें कि भारत में कठपुतली कला की कई शैलियां हैं जैसे- धागा पुतली, छायापुतली, छड़ पुतली, दस्ताना पुतली आदि। धागा कठपुतली कला, इसमें अनेक जोडय़ुक्त अंगों का धागों द्वारा संचालन किया जाता है। वहीं छाया कठपुतली कला में पर्दे को पीछे से प्रदीप्त किया जाता है और पुतली का संचालन प्रकाश स्रोत तथा पर्दे के बीच से किया जाता है। जबकि दस्ताना पुतली को हथेली पुतली भी कहा जाता है। इसके अलावा छड़ कठपुतली कला वैसे तो दस्ताना पुतली का ही अगला चरण है, लेकिन यह उससे काफी बड़ी होती है।
क्या कहतीं हैं प्रियंका गोस्वामी
कठपुतली कला सीमित हो रही है, हालांकि चिंता की बात यह है कि समय के साथ कठपुतली कला को लेकर आकर्षण लोगों में शनै: -शनै: बहुत कम हो गया है। आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लोगों को कठपुतली के बजाय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कार्यक्रम देखना अधिक आकर्षक लगता है। आमतौर पर कठपुतली कला केवल भक्ति और पौराणिक कथाओं तक ही सीमित है। बदलते समय के साथ कठपुतली कला में तकनीकी और पूंजी निवेश भी नहीं हुआ है। कठपुतली कला के प्रदर्शन के मामले में आधुनिकीकरण का अभाव दिख रहा,जबकि कठपुतली कला भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है, यह हमारे देश भारत की प्राचीन और समृद्ध लोक कला है अत: हम सभी को इस विलुप्त होती परम्परा को जीवंत रखने हेतु साथ मिलकर प्रयास करना चाहिए।
प्रियंका द्वारा कठपुतली कला के माध्यम से शिक्षण में नवाचार और नव अनुप्रयोग



