रायगढ़। विकास के नाम पर ठगे गए केराखोल ग्रामवासियों को आखिरकार एक ऐसा आयोजन मिला, जिसमें न योजना की जरूरत , न अनुमति की। तमनार-घरघोड़ा सीमा पर स्थित इस गांव में बुधवार को भव्य खुडख़ुडिय़ा जुआ महोत्सव का आयोजन किया जाना है। यह आयोजन इतना सुरक्षित बताया जा रहा है कि इसमें जुआ खेलने वालों के चेहरे पर शिकन नहीं, मुस्कान होगी। कारण साफ है कि पुलिस का विशेष संरक्षण प्राप्त होगा?..
गांव में जब कोई धार्मिक उत्सव या सामाजिक मेला होता है, तो ग्रामवासी अनुमति, सुरक्षा और सहयोग के लिए दर-दर भटकते हैं। लेकिन खुडख़ुडिय़ा के लिए कोई समस्या नहीं आई है। सूत्रों के मुताबिक, मेले की व्यवस्था एक मुख्य दलाल ( लाईजेनर ) के जिम्मे होती है, जिसका काम आयोजकों, पुलिस और ग्रामीण प्रतिनिधियों के साथ खिलाडिय़ों को मैनेज करता है। गॉव के हमारे सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि जुआरियों की सुविधा के लिए पहले से ही अप्रत्यक्ष रूप से पुलिस कि उपस्थिति होती है ताकि कोई पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता या ‘नैतिकता प्रेमी’ आयोजन में खलल न डाल सके।
केराखोल गांव के एक बुजुर्ग निवासी ने बताया, जब सडक़, स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी जरूरतों पर प्रशासन की आंखें मूंद जाती हैं, तब ऐसा कोई आयोजन ही गांव को रौशन करता है। पुलिस आई, टेंट लगा, चाय-पानी हुआ, भीड़ जुटी है, अब तो यही लगता है कि आगे भी खुडख़ुडिय़ा होनी चाहिए। गांव-गांव में चल रहे खुडख़ुडिय़ा के चश्मदीद लोगों ने बताया कि यहां जुए को ‘खेल भावना’ के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। नियम भी बनाए गए हैं हारने पर मुस्कुराइए, जीतने पर पुलिस को मिठाई दीजिए, और पत्रकारों से बचिए। किसी ने इन नियमों का उल्लंघन नहीं किया है।
घरघोड़ा- तमनार अंचल में चल रहे मेला की आड़ में खुडख़ुडिया जुआ का प्रचलन यह स्पष्ट करता है कि जब कानून व्यवस्था की नकेल ढीली हो और वर्दीधारी ही मेले के ‘संरक्षक’ बन जाएं, तब ऐसे आयोजनों की सफलता स्वाभाविक हो जाती है। सवाल यही है कि क्या अब जुए को विकास का पर्याय मान लिया जाए? या फिर चुपचाप यह मान लें कि प्रशासन अब सिर्फ उन्हीं आयोजनों में जागता है, जहां ‘लाईजेनर मॉडल ’ लागू हो?
पुलिसिया साये में महफिल-ए-जुआ
केराखोल ‘खुडख़ुडिय़ा मेला’ में खुला आमंत्रण
