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Reading: आपातकाल को हमेशा काले अध्याय के रूप में ही याद किया जाता रहेगा : अनुराग सिंह
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NavinKadam > रायगढ़ > आपातकाल को हमेशा काले अध्याय के रूप में ही याद किया जाता रहेगा : अनुराग सिंह
रायगढ़

आपातकाल को हमेशा काले अध्याय के रूप में ही याद किया जाता रहेगा : अनुराग सिंह

lochan Gupta
Last updated: June 24, 2025 11:54 pm
By lochan Gupta June 24, 2025
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17 Min Read

रायगढ़। आपातकाल विषय को लेकर आज जिला भाजपा कार्यालय में पत्रकार वार्ता आयोजित की गई जिसमें मुख्य वक्ता छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष एवं भाजपा संगठन में बिलासपुर संभाग प्रभारी अनुराग सिंह देव ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने‘आंतरिक अशांति ’ का बहाना बनाकर भारत पर आपातकाल थोप दिया। यह निर्णय किसी युद्ध या विद्रोह के कारण नहीं, बल्कि अपने चुनाव को रद्द किए जाने और सत्ता बचाने की हताशा में लिया गया था। कांग्रेस पार्टी ने इस काले अध्याय में न केवल लोकतांत्रिक  संस्थाओं को रौंदा, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की निष्पक्षता और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलकर यह स्पष्ट कर दिया कि जब-जब उनकी सत्ता संकट में होती है, वे संविधान और देश की आत्मा को ताक पर रखने से पीछे नहीं हटते। आज 50 वर्ष बाद भी कांग्रेस उसी मानसिकता के साथ चल रही है, आज भी सिर्फ तरीकों का बदलाव हुआ है, नीयत आज भी वैसी ही तानाशाही वाली है।
मार्च 1971 में लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीतने के बावजूद इंदिरा गांधी की वैधानिकता को चुनौती मिली। उनके विपक्षी उम्मीदवार राज नारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनाव को भ्रष्ट आचरण और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आधार पर चुनौती दी। देेश की अर्थव्यवस्था मंंदी केे दौर सेे गुुजर रही थी, जिससेे जनता में असंंतोष बढ़ता जा रहा था। देश पहले से ही आर्थिक बदहाली, महंगाई और खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। बिहार और गुजरात में छात्रों के नेतृत्व में नवनिर्माण आंदोलन खड़ा हो चुका था। 8 मई 1974 को जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में ऐतिहासिक रेल हड़ताल ने पूरे देश को जकड़ लिया। इस आंदोलन को रोकने के लिए 1974 में गुजरात में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। यही राष्ट्रपति शासन 1975में लगने वाले आपातकाल की एक शुरुआत था। इसके साथ ही बिहार में कांग्रेस सरकार के खिलाफ असंतोष बढऩे लगा और 1975 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। 12 जून 1975 को कोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में दोषी ठहराया और उन्हें 6 वर्षों तक किसी भी निर्वाचित पद पर रहने से अयोग्य करार दिया। इसके बाद राजनीतिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी, जिससे घबराकर इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को ‘आंतरिक अशांति ’ का हवाला देकर राष्ट्रपति से आपातकाल लगा दिया। रातों रात प्रेस की बिजली काटी गई, नेताओं को बंदी बनाया गया और 26 जून की सुबह देश को तानाशाही की सूचना रेडियो के माध्यम से दी गई। संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग कर लोकतंत्र को रौंदा गया, संसद और न्यायपालिका को अपंग बना दिया गया।यह सिलसिला किसी युद्ध या बाहरी हमले से नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के कुर्सी खोने होने के भय से शुरू हुआ और पूरे राष्ट्र को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया।1975 में।आपातकाल की घोषणा कोई राष्ट्रीय संकट का नतीजा नहीं थी, बल्कि यह एक डरी हुई प्रधानमंत्री की सत्ता बचाने की रणनीति थी, जिसे न्यायपालिका से मिली चुनौती से बौखला कर थोपा गया। इंदिरा गांधी ने ‘आंतरिक अशांति’ की आड़ लेकर अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग किया, जबकि न उस समय कोई युद्ध की स्थिति थी, न विद्रोह और न ही कोई बाहरी आक्रमण हुआ, यह सिर्फ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा की चुनावी सदस्यता रद्द करने के निर्णय को निष्क्रिय करने और अपनी कुर्सी को बचाने की जिद थी। जिस संविधान की शपथ लेकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं, उसी संविधान की आत्मा को कुचलते हुए उन्होंने लोकतंत्र को एक झटके में तानाशाही में बदल दिया और चुनाव में दोषी ठहराए जाने के बाद नैतिकता से इस्तीफा देने के बजाय पूरी व्यवस्था को ही कठपुतली बनाकर रखने का षड्यंत्र रच दिया। कांग्रेस सरकार ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सहित लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को बंधक बनाकर सत्ता के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। प्रेस की स्वतंत्रता पर ऐसा हमला हुआ कि बड़े-बड़े अखबारों की बिजली काट दी गई, सेंसरशिप लगाई गई और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया।आज भी कांग्रेस शासित राज्यों में कानून व्यवस्था का हाल यह है कि वहां विरोध का दमन,धार्मिक तुष्टीकरण और सत्ता का अहंकार खुलेआम दिखता है। यह सब आपातकालीन सोच की ही उपज है।‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज  इंदिरा’ जैसे नारे कांग्रेस की उस मानसीकता को दर्शाते थे।जिसके तहत इंदिरा गांधी ने देश को व्यक्ति -पूजा और परिवारवाद की प्रयोगशाला बना दिया था आपातकाल के दौरान एक परिवार को संविधान से ऊपर रखने वाली कांग्रेस आज भी ‘राहुल-प्रियंका’ के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है और सत्ता की चाबी अब भी सिर्फ खानदानी जेब में रखी जाती है। विपक्षी गठबंधन की बैठकें आज भी कांग्रेस अध्यक्ष के घर होती हैं और यह बताने के लिए काफी
है कि ‘तंत्र’ आज भी परिवार के चरणों में समर्पित है। लोकतंत्र पर हुए आघात पर एक बड़ी चोट संजय गांधी का नीतियों पर निर्णय लेना भी था। एक निर्वाचित और किसी भी संवैधानिक पद पर न रहा व्यक्ति देश की नीतियों पर निर्णय लेने लगा, जो आपातकाल में कांग्रेस की अघोषित सत्ता का असली केंद्र बन चुका था।इंदिरा गांधी ने मीसा जैसे काले कानूनों के जरिए एक लाख से अधिक नागरिकों को बिना किसी मुकदमे के जेलों में ठूंस दिया, जिनमे श्री जयप्रकाश नारायण, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री मुरली मनोहर जोशी और श्री राजनाथ सिंह सहित तमाम वरिष्ठ विपक्षी नेता, पत्रकार तो शामिल थे ही, लेकिन  कांग्रेस शासन ने छात्रों तक को जेल में सडऩे पर मजबूर कर दिया था। आपाताकाल के इस काले दौर में कांग्रेस ने न्यायपालिका पर कभी न भरने वाले घाव किए। इंदिरा गांधी ने जस्टिस एच.आर. खन्ना जैसे ईमानदार जज को सीनियर होने के बावजूद मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया, क्योंकि उन्होंने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया था।इंदिरा गांधी नेअपनी सत्ता को महफूज रखने के लिए संविधान में 39वाँ और 42 वाँ जैसा क्रूर और अलोकतांत्रिक संशोधन किया जिसके तहत प्रधानमंत्री और अन्य शीर्ष पदों को न्यायिक समीक्षा से परे कर दिया, ताकि इंदिरा गांधी को अदालत में घसीटा न जा सके। इसके अलावा इंदिरा गांधी की सरकार ने 38 वें संशोधन के तहत आपातकाल की घोषणा को न्यायपालिका की जांच से बाहर कर दिया, इन मनमाने संशोधनों के तहत इंदिरा गांधी ने सीधे-सीधे तानाशाही के लिए रास्ता खोल दिया था। एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान कांग्रेस सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आपातकाल के दौरान यदि किसी नागरिक को गोली मार दी जाए, तब भी उसे अदालत में जाने का अधिकार नहीं है। यह कांग्रेस का संविधान के प्रति सम्मान था और यही कांग्रेस आज संविधान की झूठी दुहाई देती फिर रही है।इस केस में जस्टिस एच.आर. खन्ना अकेले जज थे जिन्होंने सरकार के खिलाफ निर्णय दिया और इसी कारण इंदिरा गांधी ने उन्हें सजा स्वरूप मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया था।गरीबों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लडऩे का नाटक रच रहे राहुल गांधी यह कैसे भूल जाते हैं कि उनकी दादी इंदिरा ने दिल्ली की तुर्कमान गेट पर अपने घरों को बचाने के लिए गुहार लगाने वाले गरीबों पर गोलिया चलवाई थी। कांग्रेस इस तरह गरीबी हटाओ के नारे को चरितार्थ कर रही थी।आपातकाल की जांच के लिए  गठित शाह आयोग ने 6 अगस्त 1978 को अपनी फाइनल रिपोर्ट में साफ लिखा था कि आपातकाल लगाने का कोई संवैधानिक औचित्य नहीं था और यह सिर्फ इंदिरा गांधी का व्यक्तिगत राजनीतिक षड्यंत्र था। 1980 में दोबारा कांग्रेस सरकार बनने पर इंदिरा गांधी इस आयोग की रिपोर्ट को भी नष्ट करवा दिया था। कांग्रेस सरकार ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया तक को भंग कर दिया, ताकि कोई संस्थान उनकी सेंसरशिप और मीडिया पर हमले की आलोचना न कर सके। जो कांग्रेस एक समय प्रेस पर सेंसरशिप थोपती थी, वही आज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरें फैलाने वालों को खुला संरक्षण देती है और वैचारिक विरोधियों की आवाज दबाने के लिए मुकदमे दर्ज कराती है। कांग्रेस ने यह सुनिश्चित किया कि जो भी अधिकारी या जज उनके।इशारों पर न चले, उन्हें या तो हटा दिया जाए या उसका ट्रांसफर कर दिया जाए।कांग्रेस न सिर्फ अपनी सत्ता को बचाने के लिए बल्कि वैचारिक एजेंडे थोपने के लिए भी संविधान के साथ खिलवाड़ किया। संविधान में संशोधन करके‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ जैसे शब्द जोड़े गए,ताकि कांग्रेस अपने वैचारिक एजेंडे को राष्ट्र पर थोप सके। इसी संंशोधन सेे आपातकाल की अवधि बढ़ा दी गई और राष्ट्रपति को संंसद की पूूर्ववमंंजूूरी केे बिना भी आपातकाल घोषित करने का अधिकार मिल गया।इंदिरा गांधी ने मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी की परंपरा को तोड़ते हुए सभी निर्णय एक व्यक्ति के इशारे पर लेना शुरू कर दिया। मंत्रियों को कैबिनेट बैठकों में भी सिर्फ ‘हा’ कहने के लिए बुलाया जाता था, उनकी भूमिका रबर स्टैम्प तक सीमित रह गई थी।कांग्रेस शासन में लोकतंत्र का ऐसा पतन हुआ कि जेलों में बंद लोगों को अपने परिजनों की अंतिम क्रिया में शामिल होने तक की अनुमति नहीं दी गई और इन लोगों में वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह तक शामिल थे। उन्होंने खुद खुलासा किया है कि उन्हें उनकी माताजी की अंत्येष्टि में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई। विरोधियों को जेलों में मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गईं, किसी को दवा नहीं दी गई, किसी को गर्मी में बिना पंखे के बंद रखा गया। महिला कैदियों के साथ भी अमानवीय व्यवहार हुआ,उन्हें न तो समुचित चिकत्सा दी गई, न ही उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया गया।.कांग्रेस सरकार ने आरएसएस, जनसंघ, एबीवीपी और कई अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर यह सिद्ध कर दिया कि वह कि सी भी विरोधी स्वर को बर्दाश्त नहीं कर सकती। जनसंघ और आरएसएस ने भूमिगत रहकर पूरे देश में सत्याग्रह, पर्चा वितरण और सूचना संप्रेषण के माध्यम से कांग्रेस की तानाशाही को उजागर कि केया।जो संविधान बाबा साहेब अंबेडकर ने जनता को अधिकार देने के लिए बनाया था, कांग्रेस ने उसी को हथियार बनाकर जनता के अधिकार छीन लिए। आपातकाल के 21 महीनों में कांग्रेस ने हर आलोचक, हर असहमति और हर विपक्षी विचार को ‘देशद्रोह’ का तमगा देकर कुचल डाला।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी उस समय साधारण कार्यकर्ता हुआ करते थे और उनके जैसे लाखों समर्पित स्वयंसेवकों ने रातों-रात रेलों में पर्चे बांटे, संदेश पहुंचाए और कांग्रेस की सच्चाई हर गांव और गली तक पहुंचाई। कांग्रेस की तानाशाही का विरोध केवल राजनीतिक नहीं था, यह भारत की आत्मा की रक्षा का आंदोलन था जिसमें राष्ट्रवादियों ने जान की बाजी लगाई।कांग्रेस ने लोकतंत्र के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया लेकिन आज भी वह अपने किए के लिए न तो माफी मांगती है और न ही पछतावा प्रकट करती है। आज ‘संविधान बचाओ’ का नारा देने वाली कांग्रेस वही पार्टी है जिसने संविधान को सबसे पहले और सबसे गहराई से रौंदा था।
इंदिरा गांधी की तानाशाही का सबसे भयावह चेहरा यह था कि उन्होंने अपने पुत्र के माध्यम से सत्ता को वंशवाद की जकड़ में पूरी तरह कैद कर लिया और सत्ता की लोलुपता में कांग्रेस ने लोकसभा का कार्यकाल 5 से बढ़ाकर 6 साल कर दिया, ताकि जनता को मतदान का अवसर न मिले।आपातकाल गांधी परिवार की उस सोच का परिचायक था, जिसमें स्पष्ट हो गया था कि उनके लिए पार्टी और सत्ता परिवार के लिए होती है, देश और संविधान के लिए नहीं। आजादी के बाद देश में पहली बार ऐसा हुआ था कि सरकार ने राष्ट्र को शत्रु नहीं, बल्कि अपनी जनता को ही बंदी बना लिया था।आज कांग्रेस में चेहरे बदल गए हैं, लेकिन तानाशाही की प्रवृत्ति और सत्ता का लोभ जस का तस है। 50 वर्ष बाद आज आपातकाल को याद करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि यह इतिहास की एक घटना मात्र नहीं बल्कि कांग्रेस की मानसिकता का प्रमाण भी है।इंदिरा गांधी की यही तानाशाही मानसिकता आज के कांग्रेस नेतृत्व में दिखाई देती है। आज भी कांग्रेस शासित राज्यों में पत्रकारों पर मुकदमे होतेहैं, सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारी हो जाती हैऔर एक्टिविस्टों पर पुलिस कार्रवाई होती है। आज इस प्रेस वार्ता में जिला भाजपा अध्यक्ष अरुणधर दीवान, मीसा बन्दी रहे सुगम चंद फरमानिया,गुरुपाल सिंह भल्ला,श्रीकांत सोमावार,विवेक रंजन सिन्हा, बृजेश गुप्ता, सतीश बेहरा, कमल गर्ग, कौशलेश मिश्रा, सुभाष पांडे, सुरेंद्र पांडे, अनुपम पाल,अरुण कातोरे, शीला तिवारी,सनत नायक, मनीष शर्मा उपस्थित रहे। अनुराग सिंह देव जी के कर कमलों से हुआ जिला भाजपा कार्यालय में आपातकाल विषय की प्रदर्शनी का लोकार्पण जिला भाजपा कार्यालय में आपातकाल विषय को लेकर प्रदर्शनी लगाई गई है जिसका विधिवत लोकार्पण आज गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष एवं बिलासपुर के संगठन के प्रभारी अनुराग सिंह देव जी ने किया।कार्यक्रम के प्रभारी अनुपम पाल ने बताया की आपातकाल की विभीषिका को दर्शाती यह जीवंत प्रदर्शनी उस समय हुए अत्याचार की दास्तां बयां करती है।अनुपम पाल ने सभी जनमानस से निवेदन किया है कि जिला भाजपा कार्यालय में लगी इस प्रदर्शनी का अवलोकन जरूर करे।
ये रहें है रायगढ़ के मीसा बंदी
आपातकाल के समय हमारे जिले से भी कई लोग मीसा बन्दी में जेल में निरुद्ध रहे थे जिनमें से एम एस लांबट, पी के तामस्कर, पूर्णचंद गुप्ता, दयाराम ठेठवार,कृष्णचंद मिश्रा, देवी प्रसाद अग्रवाल, लखनलाल चौबे, जयदयाल अग्रवाल, युधिष्ठिर पंडा, अमरीक सिंह संसौरा, राजकिशोर सिंह,प्रमोद सराफ, सुगमचंद फरमानिया, संजय तामस्कर, प्रताप कुकरेजा, ओमप्रकाश केडिया, बाबूलाल अग्रवाल, मांगेराम अग्रवाल, रामभगत गुप्ता, मुंशीराम अग्रवाल, कार्तिकेश्वर पंडा, डॉ एन एम ब्रह्मा,लखीराम अग्रवाल, जमीसिंह भाटिया, लखपति प्रधान जी रहे थे।

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