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NavinKadam > रायगढ़ > डॉ.मीनकेतन प्रधान की अध्यक्षता में ऑनलाइन अन्तर्राष्ट्रीय परिचर्चा और काव्य -पाठ का आयोजन पटना में सम्पन्न
रायगढ़

डॉ.मीनकेतन प्रधान की अध्यक्षता में ऑनलाइन अन्तर्राष्ट्रीय परिचर्चा और काव्य -पाठ का आयोजन पटना में सम्पन्न

lochan Gupta
Last updated: June 18, 2025 8:55 pm
By lochan Gupta June 18, 2025
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6 Min Read

रायगढ़। मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच के तत्त्वावधान में 16 जून 2025 को अन्तर्राष्ट्रीय ऑनलाइन परिचर्चा सह काव्य पाठ का गरिमामय आयोजन राष्ट्रीय अध्यक्ष सुधीर सिंह सुधाकर (नोएडा) के मार्गदर्शन, विभा रानी श्रीवास्तव पटना इकाई(बिहार )के संयोजन एवं रायगढ़ छत्तीसगढ़ के डॉ.मीनकेतन प्रधान पूर्व प्रोफेसर,पूर्व अध्यक्ष-अध्ययन मंडल हिंदी-शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। डॉ मीनकेतन प्रधान ने बताया कि आयोजन में  गोपाल बघेल मघु(कैनेडा),कारमेन सुयस्वी जानकी देवी(सूरीनाम ),वंदना कुँअर(डॉ.कुँअर बेचैन की सुपुत्री,ग़ाजिय़ाबाद), विकेश निझावन (अम्बाला ), रीता शेखर (बेंगलूरु),डॉ. गीता पाण्डे अपराजिता, रायबरेली? की गरिमामयी संलग्नता रही। कार्यक्रम के आरम्भ में संयोजक विभा रानी श्रीवास्तव, पटना ने आयोजन के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए देश-देशांतर से जुड़े रचनाकारों का परिचय दिया। तदन्तर वंदना कुँअर ने  सरस्वती वंदना तथा ऋता शेखर ‘मधु’ ने राष्ट्र गीत -‘वंदे मातरम‘ का गायन किया।आयोजन के प्रथम सोपान में मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुधीर सिंह ‘सुधाकर’ ने संस्था के बहुआयामी उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए विगत पन्द्रह वर्षों से संचालित इस संस्था से अब तक दुनिया भर से अनेक साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों के जुडऩे एवं आगामी वार्षिक कार्यक्रम ऋषिकेश में होने की जानकारी दी। उन्होंने परिचर्चा  की पृष्ठभूमि रखते हुए आज के समय में साहित्य – सृजन की सार्थकता को ‘मैं’ की वैयक्तिकता से ऊपर उठकर ‘हम‘ की सामूहिक चेतना में देखने का आह्वान किया। परिचर्चा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ.मीनकेतन प्रधान (रायगढ़) ने इक्कीसवीं सदी के 25 वें वर्ष – पूर्ति  के अवसर पर विषयवस्तु को केन्द्र में रखकर हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं का सूक्ष्म विश्लेषण किया। उन्होंने इस बात पर विशेष ज़ोर डाला कि आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिन्दी तथा अन्य सभी भारतीय भाषा -साहित्य का व्यापक सरोकार पूरी ईमानदारी के साथ मानवीय मूल्यों की बढोत्तरी और सामाजिक जीवन की बेहतरी के लिए होना चाहिए।डॉ.प्रधान ने वैश्वीकरण  के नकारात्मक पहलुओं को उद्घाटित करते हुए कविता, उपन्यास, कहानी आदि विधाओं के वर्तमान स्वरूप पर दृष्टिपात किया तथा  विविध विमर्शों की मूल अवधारणा को व्यापक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में विवेचित  किया। उन्होंने विज्ञान और तकनीकी विकास को समसामयिक परिस्थितियों के अनुकूल संतुलित रखने और रचनाकार की राष्ट्रीय-सामाजिक जि़म्मेदारियों पर विस्तार से प्रकाश डाला।आयोजन के दूसरे सोपान में काव्य -विविधा की शुरुआत करते हुए विकेश निझावन (अम्बाला)ने ‘वह बारूद कौन बिछा गया’ जैसे युगीन भाव-बोध की कविता का पाठ किया। कैनेडा से जुड़े आध्यात्मिक चेतना के कवि गोपाल बघेल ‘मधु‘ ने आध्यात्मिक और प्राकृतिक अनुभूतियों से युक्त  ‘मधु गीति‘ — ‘अभिभूत मैं हूँ अपनी सृष्टि!‘ तथा ‘अनवरत तपस्या में लगे!‘ की सस्वर प्रस्तुति की। यथा- ‘‘अभिभूत मैं हूँ अपनी सृष्टि, सुषुमा निहारे, प्रकृति की हरेक कृति को लखे, दृष्टि प्रसारे!’’ काव्य पाठ की अगली कड़ी में 125 वर्ष पूर्व अपने परदादा के सूरीनाम में प्रवासी होने की जानकारी देते हुए भारत वंशी कवयित्री कारमेन जानकी सुयश्वि ने प्रवासी जीवन की व्यथा की मार्मिक अनुभूतियों को अपने गीतों में उकेरा। ऋता शेखर ‘मधु’ (बेंगलूरु) ने ‘नव वर्ष उपहार’ शीर्षक कविता का पाठ किया-
‘‘धरती की ज्वाला ठंडी हो, नदियों में वह धार कहाँ? एक बात जो सर्व सम्मत हो, अब वैसा स्वीकार कहाँ?’’ प्रतिष्ठित गीतकार वंदना कुँअर (ग़ाजिय़ाबाद) ने ‘एक शहीद की पत्नी ‘ शीर्षक गीत की अत्यंत मार्मिक प्रस्तुति की- बिन तुम्हारे अधूरा है संसार ये, तुम ही तो मेरे प्यारे परम मीत हो। तुम न हो तो है सूना ये जीवन मेरा तुम ही तो मेरी शाश्वत अमर प्रीत हो। इस क्रम में डॉ. गीता पाण्डे अपराजिता(रायबरेली?) ने ‘परोपकार’ शीर्षक कविता का पाठ कर सामाजिक विषमता और भेदभाव मिटाने का आह्वान किया। काव्य -पाठ के अंतिम कवि -चिंतक सुधीर सिंह सुधाकर ने वृद्ध माता- पिता और संतान के रिश्तों में टूटन और अमानवीकरण की प्रवृत्तियों का जीवंत चित्रांकन अपनी रचना में किया- मेरा घर कब तेरा हो गया, मैं तो जान ही नहीं पाया। कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.मीनकेतन प्रधान की सारगर्भित संक्षिप्त समीक्षा से आयोजन का समाहार हुआ। आयोजन की परंपरागत गरिमा को ध्यान में रखते हुए उनके द्वारा मंच संचालक  विभा रानी श्रीवास्तव के एक हाइकु में  पीढिय़ों के अन्तराल की खाई को मानवीय मूल्यों से पाटने विषयक भावबोध से युक्त पंक्तियों का वाचन किया- नानी के नुस्ख़े / माता से मुझे मिले / कलमी  आम। कार्यक्रम अध्यक्ष ने आयोजन को वर्तमान साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में सार्थक निरूपित किया। अंत में सामूहिक राष्ट्र गान के साथ ही मंच संचालक विभा रानी श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
उक्त अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन में अध्यक्षीय आसंदी के सफलतम दायित्व निर्वहन के लिए डॉ.मीनकेतन प्रधान (पूर्व प्रोफेसर) संस्थापक -विश्व हिन्दी अधिष्ठान, रायगढ़ को डॉ.करुणा पाण्डेय (लखनऊ), लिंगम चिरंजीव राव (इच्छापुरम आन्ध्रप्रदेश), डॉ.ज्ञानेश्वरी सखी सिंह (पुणे), डॉ.बेठियार सिंह साहू (छपरा बिहार), सौरभ सराफ (दिल्ली), तथागत श्रीवास्तव (कोलकाता)डॉ.मौना कौशिक (कैनेडा),मनीष पांडेय (नीदरलैंड), अनुसूया साहू (सिंगापुर)अमित सदावर्ती, प्रो. आर .के. पटेल, डॉ. विद्या प्रधान, शशिभूषण पंडा (सम्बलपुर ओडिशा), वाई.के. पंडा, जगदीश यादव, पंकज रथ शर्मा,हरिशंकर गौराहा तथा मोहन पटेल में बधाई दी है।

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