रायगढ़। रायगढ़ में स्थित रियासतकालीन श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर आज भक्ति, श्रद्धा और सांस्कृतिक उल्लास से सराबोर रहा। अवसर है महाप्रभु श्री जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा के देवस्नान महोत्सव का, जो हर वर्ष रथयात्रा से पूर्व मनाया जाता है।
प्रात: काल, मंदिर के गर्भगृह से तीनों विग्रहों को विशेष वैदिक विधि द्वारा स्नान मंडप पर लाया गया। 108 पवित्र कलशों में संग्रहित जल, जो श्री महावीर हनुमान जी की अभिरक्षा में अभिमंत्रित किया गया जाता है, इनसे तीनों विग्रहों का विधिपूर्वक स्नान संपन्न हुआ। स्नान उपरांत भगवान को पुरी से मंगाए गए वारूणी वस्त्र पहनाए गए तथा पाटनी वस्त्रों से सज्जित कर पुष्पों से भव्य श्रृंगार किया गया।
भोग का विशेष आयोजन
इस अवसर पर श्री किरण पंडा जी द्वारा अर्पित छप्पन भोग महाप्रभु को समर्पित किया गया। पूरे मंदिर परिसर में जय जगन्नाथ और हरी बोल के गगनभेदी घोष से वातावरण गूंज उठा। हजारों श्रद्धालु इस अद्भुत दर्शन के साक्षी बने और महा-आरती पश्चात भगवान के महाप्रसाद का वितरण हुआ।
भक्ति की धारा में सराबोर शाम
उड़ीसा के बोरझरिया ग्राम से आए भजन मंडली द्वारा प्रस्तुत मधुर कीर्तन और नृत्य ने पूरे परिसर को भक्तिरस में डुबो दिया। संध्या समय गुरु श्रीमती सुजाता मजूमदार जी के नेतृत्व में उनकी शिष्याओं दृ जनिशा विश्वाल, जागृति नायक, अभ्या श्री, निधि परासर, आराध्या महाराणा एवं प्रियांशी मिश्रा ने मंगला चरण नृत्य की प्रस्तुति दी। आराध्या महाराणा द्वारा ष्कीड़े छंद जानेलो सहीष् पर अभिनय एवं सुजाता जी द्वारा मधुराष्टकं पर ओडिशी नृत्य नाटिका की प्रस्तुति ने दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
अनसर काल का आरंभ
देव स्नान के पश्चात भगवान 15 दिनों के अनसर में चले जाते हैं, जिसमें मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। यह काल भगवान के अस्वस्थ होने का प्रतीक होता है। इस अवधि के बाद (26 जून) आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को नेत्रोत्सव मनाया जाता है और अगले दिन (27 जून) से रथयात्रा का शुभारंभ होता है।
रथोत्सव की प्रथा रायगढ़ राजपरिवार की परंपरा अनुसार छेरापहरा के बाद भगवान रथ पर आरूढ़ होंगे और नगर भ्रमण पर निकलेंगे। तृतीया को महाप्रभु मौसी घर (गुंडिचा मंदिर) प्रस्थान करेंगे जहाँ वे 8 दिवस विश्राम करेंगे। दशमी (5 जुलाई) कोमहाप्रभु का रथ वापस मंदिर आएगा और 6 जुलाई को होगा सोनाभेष दर्शन कृ जब भगवान को स्वर्णाभूषणों एवं दिव्य आयुधों से अलंकृत किया जाता है। यह दर्शन वर्ष में केवल एक बार होता है।
कार्तिक तक विराम
इसके पश्चात भगवान चार माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस काल में विवाह सहित अन्य शुभ कार्य वर्जित रहते हैं, जो देव उठनी एकादशी से पुन: आरंभ होते हैं शुभ कार्य। श्री जगन्नाथ मंदिर रायगढ़ न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, अपितु हिंदू संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक भी है। यह देवस्नान उत्सव न केवल महाप्रभु के स्नान का पर्व है, अपितु आंतरिक शुद्धि, भक्ति और समर्पण का महापर्व भी है।
देवस्नान से प्रारंभ हुआ श्री जगन्नाथ रथोत्सव का पावन पर्व
